दुर्घटना में मुफ़्त ईलाज की सार्थक नीति 

                   प्रभुनाथ शुक्ल 

भारत में बढ़ते सड़क हादसे चिंता का विषय है।सबसे अहम बात है कि हादसों में सबसे अधिक युवा अपनी जान गवाते हैं। सड़क हादसे आम परिवारों के लिए बेहद पीड़ादायक होते हैं। लेकिन सवाल उठना है कि सड़क हादसे क्यों होते हैं। क्या सड़क हादसों के पीछे यातायात नियम दोषी हैं या फिर सड़कों की खस्ता हाली। दूसरा अहम सवाल है कि सबसे अधिक युवाओं की ही मौत क्यों होती है। सड़क दुर्घटनाओं का विश्लेषण करने से पता चलता है कि वाहनों के संचालन के लिए जो यातायात नियम बने हैं निश्चित रूप से हम उनका अनुपालन नहीं करते। अगर हम यातायात नियमों का पालन करें। वाहनों का मेंटेनेंस और फिटनेस का ख्याल रखें तो सड़क दुर्घटनाओं को कम किया जा सकता है।

गुजरे साल 2024 में हमारे देश में सड़क हादसे में 1.80 लाख लोगों की जान गई। जबकि 30 हजार  लोगों की मौत का कारण हेलमेट बना। क्योंकि वाहन चलाते समय उन्होंने हेलमेट नहीं लगाया था। आंकड़ों का सबसे दु:खद पहलू यह है कि 10 हजार स्कूली बच्चों को, स्कूलों में गलत प्रवेश और एग्जिट प्वाइंट की वजह से अपनी जान गंवानी पड़ी। अपने आप में यह बड़ा सवाल है। साल 2024 में हुई कुल मौतों में  सबसे अधिक संख्या युवाओं की रही है। सड़क हादसों में मरने वाले 66 फीसदी युवा थे जिनकी उम्र 18 से 34 वर्ष के बीच थी। केंद्रीय सड़क राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़ों की माने तो मरने वालों में तकरीबन तीन हजार ऐसे लोग भी शामिल थे जिन्होंने ड्राइविंग लाइसेंस नहीं लिया था। मंत्रालय के अनुसार देश में अभी 22 लाख प्रशिक्षित चालकों की कमी है। केंद्रीय सड़क राजमार्ग मंत्रालय देश भर में 1250 ड्राइविंग लाइसेंस सेंटर खोलने जा रहे हैं। मार्च में इस योजना की शुरुवात होगी। प्रशिक्षण लेने के बाद लोगों जहाँ रोजगार मिलेगा वहीं देश को प्रशिक्षित चालक भी मिलेंगे। निश्चित रूप से राजमार्ग मंत्रालय की यह अनूठी पहल है।  

आम तौर पर देखा गया है कि हम वाहन चलाते समय यातायात नियमों और सड़क पर प्रदर्शित संकेतों का प्रयोग नहीं करते हैं। हमें यात्रा के दौरान वाहनों की स्पीड सीमा को नियंत्रित करना चाहिए। सड़क हादसों से सिर्फ एक व्यक्ति की मौत नहीं होती, कभी-कभी तो पूरा परिवार ही सड़क दुर्घटनाओं का शिकार हो जाता है। वाहनों के संचालन के दौरान वाहनों पर हमारा खुद का नियंत्रण होना चाहिए। नशे की हालत में वाहनों का संचालन कभी नहीं करना चाहिए। लेकिन तमाम कानूनी कवायद के बाद भी हम जिंदगी के प्रति बेहद लापरवाह होते हैं। कभी -कभी ऐसा भी देखा गया है कि खुद सुरक्षित ड्राइविंग करने के बाद भी हम दूसरे की गलती से हादसे का शिकार हो जाते हैं। हमें ऐसी स्थिति से बचना चाहिए।

भारत सरकार और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय सड़क दुर्घटनाओं में मौत के आंकड़े को नियंत्रित करने के लिए एक अच्छी पहल लेकर आया है। भारत में पहली बार सड़क हादसों में घायल व्यक्तियों का कैशलेस इलाज होगा।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय राजमार्ग मंत्रालय के मुखिया नितिन गडकरी की यह अनूठी पहल वाकई काबिले तारीफ़ है। मंत्रालय की इस पहल से लाखों लोगों को इलाज उपलब्ध कराकर घायलों की जान बचाई जा सकती है। घायल व्यक्ति का किसी भी अस्पताल में एक सप्ताह तक मुक्त इलाज होगा। सरकार इस पर 1.50 लाख रूपए का भुगतान करेगी। पीड़ित को इलाज पर आने वाले डेढ़ लाख के खर्च पर कोई अतिरिक्त भुगतान सम्बन्धित अस्पताल को नहीं करना होगा।

अभी तक सड़क हादसों में आमतौर पर यह देखा गया था कि दुर्घटनाओं में घायल व्यक्ति को लोग अस्पताल तक ले जाने में हिचकते थे, लेकिन मंत्रालय ने अब सम्बन्धित घायल को अस्पताल तक पहुंचाने एवं जान बचाने वाले व्यक्ति के लिए ₹ पांच हजार के पुरस्कार की घोषणा की है। निश्चित रूप से इस तरह की योजना घायलों के लिए वरदान साबित होगी। जबकि अब तक लोग पुलिस की कानूनी जाँच पड़ताल की वजह से किसी घायल की मदद के लिए आगे नहीं आते थे। जिसकी वजह से समय पर इलाज न मिलने से घायल व्यक्ति दमतोड़ देता था।

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय देश के कुछ हिस्सों में इस योजना को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लागू किया था। लेकिन अब इस योजना को पूरे देश में मार्च से लागू किया जाएगा। इस योजना की एक और अच्छी विशेषता यह होगी हिट एंड रन जैसे मामले में जान गवाने वाले व्यक्ति के परिवार को दो लाख रुपए की तत्काल सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। हालांकि इस योजना में थोड़े से सुधार की आवश्यकता है। कभी-कभी गंभीर हादसों का शिकार हुआ व्यक्ति कोमा में चला जाता है उस दौरान उसके इलाज पर काफी लंबा खर्च होता है।

मध्यम  एवं कम आयवर्ग के परिवारों के लिए इतने पैसे का भुगतान करना काफी मुश्किल  होता है। लोगों को अपने घर मकान और खेत तक बेचने या गिरवी रखनी पड़ते हैं। ऐसी हालत में सरकार को एक्सीडेंटल हेल्थ बीमा स्कीम लेकर आनी चाहिए। हलांकि निजी क्षेत्र में बीमा कम्पनियां इस तरह की स्कीम लांच किया है। लेकिन उसका प्रीमियम अधिक होने से आम आदमी के लिए यह सम्भव नहीं है। वाहनों को खरीदते समय ही कम पैसे में एक मुश्त आजीवन प्रीमियम भुगतान पॉलसी होनी चाहिए। जिसका लाभ उसे दुर्घटना जैसी विषम स्थिति में मिल पाए। इस तरह की योजना वाहन चालक और सरकार दोनों के हित में होगी। राजमार्ग मंत्रालय को इस तरह की योजनाओं पर विचार करना चाहिए।

केंद्र सरकार इसी योजना के क्रम में देश भर में एक और अवसर लेकर आ रहीं है। जिसमें वाहनों की कबाड़ पॉलसी एवं ड्राइविंग ट्रेनिंग पॉलिसी भी शामिल है। यह भी अपने आप में एक  बेहतरीन पॉलिसी है। सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार देश भर में 1250 नए ड्राइविंग ट्रेनिंग सेंटर के साथ वाहनों के फिटनेस सेंटर खोले जाएंगे। सरकार इस पर साढे चार हजार करोड़ रुपए खर्च करेगी। 25 लाख लोगों को ड्राइविंग लाइसेंस मिलेगा। इससे देश में जहाँ कुशल चालकों की कमी को पूरा किया जाएगा वहीं दूसरी तरफ लोगों को रोजगार भी मिलेगा। केंद्र सरकार एवं राजमार्ग मंत्रालय की इन नीतियों से साफ होता है कि सुरक्षित यात्रा को लेकर सरकार बेहद गंभीर है।

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