डॉ. मनोज कुमार तिवारी
वरिष्ठ परामर्शदाता
एआरटीसी, एस एस हॉस्पिटल, आईएमएस, बीएचयू, वाराणसी
आज के दौर में स्कूली बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और उस पर ध्यान देना अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है। बच्चे हमारे समाज और राष्ट्र का भविष्य हैं, और एक स्वस्थ भविष्य की नींव उनके शारीरिक और मानसिक कल्याण पर ही टिकी होती है। जिस प्रकार हम उनके शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर सजग रहते हैं, उसी प्रकार उनके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना भी अनिवार्य है।
बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य की चिंताजनक स्थिति
आधुनिक जीवनशैली और प्रतिस्पर्धा के इस युग में बच्चे छोटी उम्र से ही कई तरह के दबावों का सामना कर रहे हैं। आंकड़े इस स्थिति की गंभीरता को और स्पष्ट करते हैं। शोधों से यह पता चलता है कि हर 5 में से 1 बच्चे में कोई न कोई भावनात्मक, व्यवहारिक या मानसिक स्वास्थ्य विकार पाया जाता है। लगभग 10 में से 1 युवा किसी न किसी मानसिक स्वास्थ्य चुनौती से जूझ रहा है। यह एक गंभीर विषय है कि 10 से 15 वर्ष की आयु के कई बच्चे यह महसूस करते हैं कि उनके पास अपनी चिंताओं या उदासी को साझा करने के लिए कोई नहीं है, विशेषकर स्कूल के माहौल में।
यह भी एक स्थापित तथ्य है कि लगभग 50% मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं 14 वर्ष की आयु तक और 75% समस्याएं 24 वर्ष की आयु तक विकसित हो जाती हैं। भारत में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान (निम्हांस) के एक अध्ययन में पाया गया है कि भारत में लगभग 23% स्कूली बच्चे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त हैं। चिंता की बात यह है कि इनमें से अधिकांश बच्चों को समय पर उचित पहचान और इलाज नहीं मिल पाता, जो उनके भविष्य के लिए गंभीर परिणाम पैदा कर सकता है।
संपूर्ण विकास के लिए मानसिक स्वास्थ्य की महत्वपूर्ण भूमिका
स्कूल जाने की उम्र, विशेष रूप से 6 से 14 वर्ष, बच्चों के विकास का एक निर्णायक चरण होता है। इस दौरान उनका शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक, संज्ञानात्मक और शैक्षिक विकास तीव्र गति से होता है। विकास के ये सभी आयाम एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। यदि किसी एक आयाम में भी कोई बाधा आती है, तो उसका नकारात्मक प्रभाव अन्य सभी आयामों पर पड़ता है।
इसे एक सरल उदाहरण से समझ सकते हैं। मान लीजिए, एक बच्चा शारीरिक रूप से कमजोर है। इस कमजोरी के कारण वह अपने हमउम्र बच्चों के साथ खेलकूद में भाग नहीं ले पाता या पिछड़ जाता है। बार-बार हारने या पीछे रह जाने के अनुभव से उसका आत्मविश्वास कम हो जाता है और वह धीरे-धीरे बच्चों के समूह से कटने लगता है। इस सामाजिक अलगाव के कारण उसका भाषा और संवाद कौशल ठीक से विकसित नहीं हो पाता, क्योंकि भाषा एक अर्जित गुण है जो सामाजिक संपर्क से ही निखरता है।
लगातार नकारात्मक भावनाओं (जैसे उदासी, हीन भावना) से घिरे रहने के कारण उसका भावनात्मक विकास भी प्रभावित होता है। ऐसे बच्चे स्कूल में अक्सर अनुपस्थित रहते हैं और जब उपस्थित होते भी हैं, तो सीखने की प्रक्रिया में पूरी तरह से शामिल नहीं हो पाते। चूंकि शिक्षा का माध्यम भाषा है और उनका भाषा विकास पहले से ही कमजोर है, उन्हें पाठ को समझने में कठिनाई होती है, जिससे उनका शैक्षिक प्रदर्शन भी गिर जाता है। भविष्य में खराब शैक्षिक प्रदर्शन के कारण अच्छे करियर के अवसर कम हो जाते हैं, जिसका सीधा असर उनके आर्थिक और पारिवारिक जीवन पर पड़ता है। इस प्रकार, एक साधारण शारीरिक समस्या मानसिक और भावनात्मक चुनौतियों से जुड़कर बच्चे के संपूर्ण विकास को बाधित कर देती है।
मानसिक रूप से स्वस्थ छात्र के लक्षण
यह जानना महत्वपूर्ण है कि एक मानसिक रूप से स्वस्थ छात्र कैसा होता है। ऐसा बच्चा न केवल अकादमिक रूप से अच्छा प्रदर्शन करता है, बल्कि जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी संतुलित होता है। कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं:
· तार्किक और विवेकशील चिंतन: वह स्थितियों का सही आकलन कर पाता है और सोच-समझकर निर्णय लेता है।
· समस्या-समाधान की क्षमता: वह चुनौतियों से घबराता नहीं, बल्कि उनका समाधान खोजने का प्रयास करता है।
· सृजनात्मकता: उसमें नए विचारों को सोचने और उन्हें व्यक्त करने का कौशल होता है।
· सीखने की उत्सुकता: वह नई और उपयोगी अवधारणाओं को आसानी से सीखता है।
· समायोजन की क्षमता: वह नई और विषम परिस्थितियों में भी स्वयं को प्रभावी ढंग से ढाल लेता है।
· भावनात्मक संतुलन: वह सकारात्मक भावनाओं को बनाए रखता है और क्रोध, भय या ईर्ष्या जैसी नकारात्मक भावनाओं पर नियंत्रण रखना जानता है।
शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य का गहरा संबंध
छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य का उनके शैक्षिक विकास पर सीधा और गहरा प्रभाव पड़ता है। जब बच्चे नकारात्मक भावनाओं जैसे- भय, क्रोध, घृणा, आत्मविश्वास में कमी या असहायता से ग्रस्त होते हैं, तो उनकी संज्ञानात्मक क्षमताएं (सीखना, याद रखना, सोचना, तर्क करना) ठीक से काम नहीं कर पातीं। उदाहरण के लिए, परीक्षा का अत्यधिक भय याद की हुई चीजों को भी भुला सकता है। इसी तरह, क्रोध की स्थिति में बच्चा अपना नियंत्रण खो देता है और सीखने पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता।
दूसरी ओर, शिक्षा की गुणवत्ता और स्कूल का वातावरण भी छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं। एक सकारात्मक, सहयोगी और सुरक्षित स्कूल का माहौल बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाता है, जबकि एक नकारात्मक या दमनकारी वातावरण उनमें तनाव और चिंता पैदा कर सकता है। शिक्षकों का व्यवहार, उनकी शिक्षण शैली, सहपाठियों के साथ संबंध और स्कूल का अनुशासन, यह सभी कारक मिलकर छात्र के मानसिक स्वास्थ्य को आकार देते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य संवर्धन में विद्यालय की भूमिका
विद्यालय बच्चों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, इसलिए मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में उसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके लिए निम्नलिखित प्रयास किए जाने चाहिए:
1. सकारात्मक वातावरण: स्कूल का भौतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक वातावरण सहयोगी और सौहार्दपूर्ण होना चाहिए, जहां हर बच्चा सुरक्षित और सम्मानित महसूस करे।
2. छात्र-केंद्रित शिक्षण: शिक्षण योजना और विधियों का चुनाव छात्रों की रुचि, योग्यता, उम्र और परिपक्वता के अनुसार किया जाना चाहिए।
3. संतुलित पाठ्यक्रम: पाठ्यक्रम ऐसा हो जो बच्चों पर अनावश्यक बोझ न डाले और उन्हें सीखने के लिए प्रेरित करे।
4. मनोरंजन और सह-पाठयक्रम गतिविधियाँ: खेलकूद, संगीत, नृत्य, कला, एनसीसी, एनएसएस जैसी गतिविधियों का नियमित आयोजन किया जाना चाहिए ताकि बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके।
5. शिक्षकों का आदर्श व्यवहार: शिक्षकों का व्यवहार छात्रों के प्रति सहयोगात्मक, सहानुभूतिपूर्ण और आदर्श होना चाहिए। उन्हें एक मार्गदर्शक की भूमिका निभानी चाहिए।
6. समस्या-समाधान का कौशल सिखाना: शिक्षकों को छात्रों की हर समस्या को हल करने के बजाय, उन्हें समस्या को हल करने की प्रक्रिया सिखानी चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर बनें।
7. आत्मविश्वास बढ़ाना: छात्रों को उनकी योग्यता के अनुसार चुनौतीपूर्ण कार्य देकर और उन्हें पूरा करने पर प्रोत्साहित करके उनका आत्मविश्वास बढ़ाना चाहिए।
8. तार्किक अनुशासन: स्कूल का अनुशासन बहुत अधिक सख्त या बहुत अधिक लचीला नहीं होना चाहिए। यह तर्कसंगत और संतुलित हो।
9. तुलना से बचें: हर बच्चा अद्वितीय है। शिक्षकों को छात्रों की एक-दूसरे से अनावश्यक तुलना करने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे उनमें हीन भावना पैदा हो सकती है।
10. परीक्षा का भय दूर करें: छात्रों को परीक्षा को एक अवसर के रूप में देखने के लिए प्रेरित करना चाहिए, न कि एक बाधा के रूप में। साल की शुरुआत से ही तैयारी करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य में माता-पिता की भूमिका
परिवार बच्चे की पहली पाठशाला होता है, और माता-पिता उसके पहले शिक्षक। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को आकार देने में उनकी भूमिका सबसे अहम होती है। घर का वातावरण, माता-पिता का आपसी संबंध और बच्चों के प्रति उनका व्यवहार, ये सभी चीजें बच्चे के कोमल मन पर गहरा प्रभाव डालती हैं। अभिभावकों को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए:
· गुणवत्तापूर्ण समय दें: बच्चों के साथ समय बिताएं, उनसे बात करें, उनकी सुनें और उनकी भावनाओं को समझने का प्रयास करें।
· अवास्तविक अपेक्षाएं न रखें: अपने बच्चों पर अपनी अधूरी इच्छाओं का बोझ न डालें। उनकी क्षमताओं को समझें और उसी के अनुसार उनसे अपेक्षा करें।
· तुलना न करें: अपने बच्चे की तुलना कभी भी दूसरे बच्चों से न करें। इससे उनका आत्मविश्वास कमजोर होता है।
· प्रोत्साहित करें: उनके अच्छे कार्यों और प्रयासों के लिए उनकी सराहना करें। इससे उन्हें बेहतर करने की प्रेरणा मिलती है।
· तार्किक अनुशासन: घर में एक अनुशासित लेकिन प्रेमपूर्ण माहौल बनाएं। नियम तार्किक होने चाहिए और बच्चों को उनके कारण पता होने चाहिए।
· डिजिटल उपकरणों का संतुलित उपयोग: इंटरनेट और स्मार्टफोन जैसी सुविधाएं आवश्यकतानुसार दें, लेकिन उनके उपयोग का समय निर्धारित करें और उनकी ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखें।
एक सामूहिक प्रयास की आवश्यकता
बच्चों का मन कोमल होता है और उनका मस्तिष्क विकास की अवस्था में होता है। उनके प्रति किया गया कोई भी कठोर या असंगत व्यवहार उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक चुनौती बन सकता है। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का संवर्धन किसी एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक समेकित प्रयास की मांग करता है। इसमें माता-पिता, भाई-बहन, शिक्षक, स्कूल प्रशासन और पूरे समाज की महत्वपूर्ण भूमिका है। जब हर स्तर पर बच्चों को एक सकारात्मक, सुरक्षित और प्रेमपूर्ण वातावरण मिलेगा, तभी उनका मानसिक स्वास्थ्य उत्तम होगा। एक मानसिक रूप से स्वस्थ बच्चा ही अपनी पूरी क्षमता का उपयोग कर समाज और राष्ट्र के निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दे पाएगा। जैसा कि कहा गया है, “बच्चे ही राष्ट्र का भविष्य होते हैं,” इस भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए उनके मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करना हमारा सर्वोच्च कर्तव्य है।
प्रस्तुति: उमेश कुमार सिंह