वायुसेना को चाहिएं दो सौ अत्याधुनिक लड़ाकू विमान

योगेश कुमार गोयल
एक ओर जहां स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान ‘तेजस’ और हवा से हवा में मार करने वाली
स्वदेश निर्मित ‘अस्त्र’ मिसाइल तथा फ्रांस से मिलने वाले अत्याधुनिक ‘राफेल’ विमान वायुसेना
के बेड़े में शामिल होकर भारतीय वायुसेना को और मजबूत तथा अत्याधुनिक बनाने की दिशा में
अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले हैं, वहीं पिछले दिनों वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल
बी एस धनोआ ने जिस प्रकार वायुसेना के बेड़े में शामिल 44 साल पुराने मिग लड़ाकू विमानों
को लेकर चिंता जाहिर की, उससे वायुसेना में लड़ाकू विमानों की कमी और वायुसेना की जरूरतों
का स्पष्ट अहसास हो जाता है। दरअसल वायुसेना को फिलहाल करीब 200 अत्याधुनिक विमानों
की आवश्यकता है और राफेल तथा स्वदेशी विमानों के वायुसेना के बेड़े में शामिल होने के बाद
भी इस कमी को पूरा करना संभव नहीं दिखता। हालांकि वायुसेना के आधुनिकीकरण और
सशक्तिकरण की दिशा में पिछले कुछ वर्षों में सशक्त कदम उठाए गए हैं लेकिन अभी इस
दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
पिछले दिनों एयर चीफ मार्शल धनोआ ने कहा था कि हमारी वायुसेना जितने पुराने मिग
विमानों को उड़ा रही है, उतनी पुरानी तो कोई कार भी नहीं चलाता। उक्त कथन वायुसेना प्रमुख
ने दिल्ली में ‘भारतीय वायुसेना का स्वदेशीकरण और आधुनिकीकरण योजना’ विषय पर
आयोजित एक सेमिनार में व्यक्त किए थे। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की उपस्थिति में उनका
कहना था कि भारतीय वायुसेना की स्थिति बिना लड़ाकू विमानों के बिल्कुल वैसी ही है, जैसे
बिना फोर्स की हवा। धनोआ का दो टूक लहजे में यही कहना था कि दुनिया को अपनी हवाई
ताकत दिखाने के लिए हमें अभी और अधिक आधुनिक लड़ाकू विमानों की आवश्यकता है। उनके
मुताबिक मिग विमानों का निर्माता देश रूस भी अब मिग-21 विमानों का उपयोग नहीं कर रहा
है लेकिन भारत इन विमानों को अभी तक उड़ा रहा है क्योंकि हमारे यहां इनके कलपुर्जे बदलने
और मरम्मत की सुविधा है। हालांकि उनकी इस टिप्पणी को अगर बहुत पुरानी कारों का
इस्तेमाल न किए जाने से जोड़कर देखें तो उसका सीधा सा अर्थ है कि जब कलपुर्जे बदलकर
मरम्मत के सहारे इतनी पुरानी कार को चलाना ही किसी भी दृष्टि से किफायती या उचित नहीं
माना जाता तो मिग-21 विमानों को कैसे माना जा सकता है?
उल्लेखनीय है कि भारत का सोवियत संघ के साथ वर्ष 1961 में मिग-21 विमानों के
लिए ऐतिहासिक सौदा हुआ था और भारतीय वायुसेना को 1964 में पहला सुपरसोनिक मिग-21
विमान प्राप्त हुआ था। भारत ने रूस से 872 मिग विमान खरीदे थे, जिनमें से अधिकांश क्रैश हो
चुके हैं। हालांकि इन विमानों ने 1971 की लड़ाई से लेकर कारगिल युद्ध सहित कई विपरीत
परिस्थितियों में अपना लोहा मनवाया और बहुत पुराने होने के बावजूद इसी साल फरवरी माह में
पाकिस्तान के एफ-16 लड़ाकू विमान को मार गिराकर इसने अपनी सफलता की कहानियों में
एक और अध्याय जोड़ दिया था। मिग-21 हल्का सिंगल पायलट लड़ाकू विमान है, जो अधिकतम
2230 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से करीब 18 हजार मीटर की ऊंचाई तक उड़ सकता है।
लंबे अरसे तक मिग-21 लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना की शान रहे हैं किन्तु ये विमान अब
इतने पुराने हो चुके हैं कि पिछले कुछ वर्षों में ही कई हादसों में हम अनेक मिग-21 विमान खो
चुके हैं। आंकड़े देखें तो पिछले चार दशकों में हम 872 में से आधे से भी ज्यादा मिग-21 विमान
दुर्घटनाओं में गंवा चुके हैं। यही कारण रहे हैं कि चार दशक से ज्यादा पुराने इन मिग विमानों
को बदलने की मांग लंबे समय से हो रही है किन्तु वायुसेना के लिए लड़ाकू विमानों की कमी के
चलते इनकी सेवाएं लेते रहना वायुसेना की मजबूरी रही है। हालांकि अब निर्णय लिया जा चुका
है कि मिग-21 विमानों को इसी साल दिसम्बर में वायुसेना के लड़ाकू विमानों के बेड़े से बाहर
कर दिया जाए। वायुसेना का कहना है कि मिग बाइसन विमानों को छोड़कर 2030 तक
चरणबद्ध तरीके से अन्य सभी मिग विमानों को भी हटाया जाएगा।
अगर पिछले कुछ दशकों में हुए मिग हादसों और उससे वायुसेना को हुए भारी-भरकम
नुकसान की बात करें तो सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1971 से 2012 के बीच 482 मिग विमानों
की दुर्घटना में 171 फाइटर पायलट, 39 आम नागरिक, 8 सैन्यकर्मी तथा विमान चालक दल के
एक सदस्य की मौत हुई। केन्द्र सरकार द्वारा मार्च 2016 में संसद में जानकारी दी गई थी कि
वर्ष 2012 से 2016 के बीच भारतीय वायुसेना के कुल 28 विमान दुर्घटनाग्रस्त हुए, जिनमें एक
चौथाई अर्थात् 8 मिग-21 विमान थे और इनमें से भी 6 मिग-21 विमान ऐसे थे, जिन्हें अपग्रेड
कर ‘मिग-21 बाइसन’ का दर्जा दिया गया था। इसी वर्ष अब तक कई मिग विमान दुर्घटनाग्रस्त
हो चुके है। कुछ समय पहले तक वायुसेना के पास करीब 120 मिग-21 विमान थे, जिनमें से
अधिकांश क्रैश हो गए हैं और फिलहाल वायुसेना के बेड़े में करीब 38 मिग-21 विमान ही शेष
बचे हैं। मिग-21 के अलावा वायुसेना के पास इस समय सौ से भी ज्यादा मिग-23, मिग-27 और
मिग-29 विमान हैं जबकि करीब 112 मिग बाइसन हैं। मिग बाइसन चूंकि अपग्रेड किए हुए मिग
विमान हैं, इसलिए उनका इस्तेमाल जारी रहेगा लेकिन बाकी सभी मिग विमानों को चरणबद्ध
तरीके से वायुसेना से बाहर किया जाएगा। करीब एक दशक पहले मिग विमानों को बाइसन
मानकों के अनुरूप अपग्रेड करना शुरू कर उनमें राडार, दिशासूचक क्षमता इत्यादि बेहतर की गई
किन्तु अपग्रेडेशन के बावजूद वास्तविकता यही है कि मिग विमानों की उम्र बहुत पहले ही पूरी
हो चुकी है। आज के समय में ऐसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों की जरूरत है, जो छिपकर दुश्मन
को चकमा देने, सटीक निशाना साधने, उच्च क्षमता वाले राडार, बेहतरीन हथियार, ज्यादा वजन
उठाने की क्षमता इत्यादि सुविधाओं से लैस हों जबकि मिग का न तो इंजन विश्वसनीय है और
न ही इनसे सटीक निशाना साधने वाले उन्नत हथियार संचालित हो सकते हैं। रक्षा विशेषज्ञों की
मानें तो मिग विमान 1960 व 1970 के दशक की टैक्नोलॉजी के आधार पर निर्मित हुए थे
जबकि अब हम 21वीं सदी के भी करीब दो दशक पार कर चुके हैं और पुरानी तकनीक वाले ऐसे
मिग विमानों को ढ़ोते रहे हैं, जिनका आधुनिक तकनीक से निर्मित लड़ाकू विमानों से कोई
मुकाबला नहीं है।
हालांकि मिग अपने समय के उच्चकोटि के लड़ाकू विमान रहे हैं लेकिन अब ये विमान
इतने पुराने हो चुके हैं कि सामान्य उड़ान के दौरान ही क्रैश हो जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में ही
मिग विमानों की इतनी दुर्घटनाएं हो चुकी हैं कि अब इन्हें ‘हवा में उड़ने वाला ताबूत’ भी कहा
जाता है। 1960 के दशक में भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल किए गए मिग विमान सोवियत
रूस में बने हैं। रूस में निर्मित इन विमानों के निरन्तर दुर्घटनाग्रस्त होते जाने का प्रमुख कारण
यही बताया जाता रहा है कि ये विमान रूस की पुरानी तकनीक से निर्मित हैं और अब इनके
असली पुर्जे नहीं मिल पाते। रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो सही मायनों में मिग विमानों को 1990
के दशक में ही सैन्य उपयोग से बाहर कर दिया जाना चाहिए था क्योंकि हर लड़ाकू विमान की
एक उम्र मानी जाती है और मिग विमानों की उम्र करीब 20 साल पहले ही पूरी हो चुकी है
लेकिन हम इन्हें अपग्रेड कर इनकी उम्र बढ़ाने की कोशिश करते रहे हैं और तमाम ऐसी कोशिशों
के बावजूद इनकी कार्यप्रणाली प्रायः धोखा देती रही है, जिसका नतीजा मिग विमानों की अक्सर
होती दुर्घटनाओं के रूप में बार-बार देखा भी जाता रहा है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार अपनी
वायुसेना को गंभीरता से लेने वाले देशों में भारत संभवतः आखिरी ऐसा देश है, जो अब तक
मिग-21 जैसे बहुत पुराने लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल करता रहा है।
बहरहाल, अच्छी खबर यह है कि फ्रांस से अत्याधुनिक तकनीक से निर्मित राफेल विमानों
की आपूर्ति शुरू होते ही वायुसेना के बेड़े से मिग विमान हटने शुरू हो जाएंगे लेकिन फिलहाल
भारत को अगले तीन वर्षों के भीतर कुल 36 राफेल विमान ही मिलने हैं जबकि भारतीय
वायुसेना को इस समय अपने बेड़े में करीब 200 अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों की आवश्यकता है।
चरणबद्ध तरीके से मिग विमानों की विदाई होते जाने के बाद वायुसेना की जरूरतों की पूर्ति
करने के लिए सुखोई विमानों के अलावा तेजस विमान भी मिग का स्थान लेंगे किन्तु इनके
वायुसेना के बेड़े में शामिल होने के बाद भी वायुसेना को बड़े पैमाने पर आधुनिक लड़ाकू विमानों
की जरूरत रहेगी, इसलिए संभावना है कि आने वाले समय से आधुनिक विमानों की खरीद के
कुछ और बड़े सौदे हो सकते हैं। इसके अलावा जिस प्रकार रक्षामंत्री द्वारा विदेशी निर्माताओं पर
निर्भरता कम करने की बातें कही जा रही हैं, उससे संभव है कि तेजस जैसे ही कुछ और स्वदेशी
लड़ाकू विमानों के निर्माण की दिशा में तेजी देखने को मिले। ऐसे में आधुनिक विदेशी और
स्वदेशी लड़ाकू विमानों से लैस भारतीय वायुसेना की शक्ति में बढ़ोतरी होगी और कहना गलत
नहीं होगा कि भारत की सैन्य शक्ति ऐसे में बेमिसाल होगी। दरअसल भारत द्वारा जो लड़ाकू
विमान बनाए जा रहे हैं, वे भी अनेक विशेषताओं से लैस अपने आप में बेहतरीन हैं।