राजनीति

लहर मोदी की या भाजपा की?

imagesइकबाल हिन्दुस्तानी जी के आलेख, “मोदी लहर को भाजपा की बताने का मतलब?”

पर मैं टिप्पणी लिख रहा था,पर वह इतनी बड़ी हो गयी कि मुझे उसे स्वतन्त्र आलेख के रूप में भेजना ज्यादा उपयुक्त लगा.

इकबाल हिन्दुस्तानी जी से ऐसे तो साधारणतः मैं सहमत रहता हूँ.पर आज लग रहा है कि इस आलेख ने कुछ ऐसे विवादों को जन्म दिया कि मैं असहमत होने के लिए बाध्य हूँ. उन्होंने यह सही आकलन किया है कि जो भी हवा बह रही है या बहाई जा रही है,वह मोदी के पक्ष में है,न कि भाजपा के पक्ष में ? नमो जब यह कहते हैं कि “आज मैं आपसे अपने लिए वोट मांग रहा हूँ.मेरी अपील है हर गली और कुच्चे से.आका वोट सीधे सीधे मुझे मिलेगा.” थोड़े से फेर बदल से क्या यह नहीं लगता कि मोदी अपने को भगवान कृष्ण के रूप में देख रहे हैं कि मेरी शरण में आ जाओ. जब विज्ञापन आता है अबकी बार मोदी सरकार तो शक की कोई गुंजायश नहीं रहती. क्या कोई बता सकता है कि भारत के इतिहास में कभी ऐसा हुआ है कि एक व्यक्ति जिसने संसद देखा तक नहीं है,यह कहे कि मैं ही सबकुछ हूँ. इंदिरा गांधी के शासन काल का मैं साक्षी रहा हूँ,पर ऐसा तो इंदिरा ने भी नहीं कहा था.प्रधानमंत्री बनने के बाद भी इंदिरा गांधी ने वह नहीं कहा था ,जो नमो संसद में प्रवेश के पहले कह रहे हैं. उन्होंने अपने आलेख का अंत इस जिज्ञासा के साथ किया है,”यह सच दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ है कि आज देश के मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग कांग्रेस का विकल्प तीसरे मोर्चे के नेताओं या केजरीवाल में ना देखकर मोदी की बहुमत की मज़बूत सरकार बनने में ज्यादा देख रहा है यह अलग बात है कि व्यक्तिपूजा और चमत्कार में विश्वास रखने वाला यह बड़ा तबका कितना सही साबित होता है?” देखना तो सचमुच है.इसके साथ यह भी देखना है कि अगर नमो सचमुच प्रधान मंत्री बन जाते हैं,तो क्या क्या गुल खिलाते हैं अब दो बातें सामने आती हैं पहली है गुजरात का दंगा और दूसरी है विकास .मैं, गुजरात ,अस्सी और नब्बे के दशक में गया था.गुजरात उस समय भी दूसरे राज्यों से अच्छा लगा था.खास कर वहां क़ानून व्यवस्था ने मुझे अच्छा प्रभIवित किया था.इसके बावजूद एक बात पर आश्चर्य अवश्य हुआ था कि पूर्ण नशावंदी के बावजूद शराब उपलब्ध था और लोगों के अनुसार आज भी है और शायद आज शराब की उपलब्धि पहले से ज्यादा सहज है. हो सकता है कि मैं गलत होऊं,पर इसे मैं भ्रष्टाचार का मापदंड मानता हूँ.विकास का दूसरा मापदंड या यों कहिये कि सबसे बड़ा मापदंड है,शिक्षा और स्वास्थ्य. पिछले साल नमो से एक प्रश्न पुछा गया था कि गुजरात में इतने बच्चे खासकर बच्चियां कुपोषण की शिकार क्यों है? नमो का उत्तर मेरी निगाह में तो बहुत ही हास्यास्पद था,पर यह तो आपलोगों को विचार करना है कि यह कैसा था.नमो ने उत्तर दिया था,” गुजरात की बच्चियां अपने फिगर के बारे में बहुत जागरूक हैं. वे बचपन से ही खाना कम कर देती हैं,ताकि उनका फिगर ठीक रहे”एक या दो वर्ष की बच्चियों में जहां इतनी जागरूकता आ गयी है,वहां तो विकास होना ही है. टाइम्स ऑफ़ इंडिया के ११ मार्च के दिल्ली संस्करण में एक समाचार छपा है,’Modi’s turf flops on edu,health’ यह समाचार दसवें पृष्ठ पर है और इसमे बहुत से आंकड़े दिए गए हैं.

दो या तीन बड़े उद्द्योग पतियों के उद्योग के विस्तार का वर्णन अवश्य आता है और साथ में चमचमाते सड़कों की बात की जाती है,पर मेरे विचार से यह विकास का मापदंड नहीं है.बिजली अवश्य उपलब्ध है,पर वह इतनी महँगी है कि अधिकतर लोग उसका बोझ वहन करने में असमर्थ हैं. एक समाचार के अनुसार गुजरातसरकार के ऊपर कर्ज का बोझ ,जो १९९५ में १० हजार करोड़ था,अब बढ़ कर १,३८,५६२ करोड़ हो गया है.( न्यूज एक्सप्रेस ३० मार्च),ज्ञातव्य हो कि इस मामले में मोदी सरकार केवल ममता सरकार से पीछे है.

रही बात बड़े उद्योगो को बढ़ावा देने की,तो मेरे विचार से बड़े उद्योग कभी भीं रोजगार के ज्यादा अवसर मुहैया नहीं कराते.उसके लिए छोटे और मझोले कद के उद्योगों को बढ़ावा देना ज्यादा आवश्यक है. इसके बारे में विस्तृत जानकारी न होने की वजह से मैं टिप्पणी नहीं कर सकता,पर इसके वृद्धिके सम्बन्ध में कोई समाचार नहीं आने के कारण शंका तो होती ही है.

मेरे विचार से यह सब खेल बाजार की मांग के अनुसार खेला जा रहा है.पहले नमो हिंदुत्व के मैस्कॉट थे.यह रूप वर्षों चला,पर धीरे धीरे उसकी मांग कम होती गयी,क्योंकि कसम राम की खाते हैं,मंदिर वहीँ बनाएंगे वाला नारा लोगों को झूठ लगने लगा. अब एक नया रूप बाजार में लाना आवश्यक था.भाजपा में किसी अन्य नेता की कोई ज्ञातव्य उलपलब्धि तो थी नहीं, गोवा के मुख्य मंत्री मनोहर पणिकर बहुत बातों में रोल माडल बन रहे थे.उनकी सादगी की प्रशंसा भी होती रहती थी,पर वे या तो बहुत जूनियर होने के नाते या धार्मिक कट्टरता कम होने के नाते संघ के फ्रेम में फिट नहीं बैठते थे..नमो इसमें एकदम फिट हो रहे थे,पर अब जब नमो अपने पूर्ण रूप में सामने आ चुके हैं,तो संघ का तो पता नहीं पर भाजपा उनसे डरने लगी है और अब तो देश भी डरेगा,क्योंकि यह तो तानाशाही की तैयारी है.जब व्यक्ति पार्टी या समाज से ऊपर उठ जाता है और स्वयं को ऐसा घोषित भी करने लगता है तो यह स्थिति बहुत भयावह हो जाती है. इस विषय में इस लिंक को देखिये.: https://www.eng.chauthiduniya.com/lessons-for-narendra-modi-from-indira-gandhi-distinct-similarities-crucial-differences/

संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि मोदी की विकास के मामले में ऐसी कोई उपलब्धि नहीं दिखती ,जिसे आश्चर्यजनक कहा जा सके. यह तो एक ऐसा विज्ञापन मात्र है,जिसकी चकाचौंध आम आदमी को अँधा कर रही है, इस चकाचौंध को पैदा करने में हजारों करोड़ रूपये खर्च हो रहे हैं.किसी ने पूछा कि इतना पैसा कहाँ से आ रहा है.यह तो उनलोगों द्वारा निवेश किया जा रहा है,जो बाद में इसे लाभ के साथ वसूल करेंगे और खामिजाना भुगतेगा आम आदमी.