क्या हैं जीएसटी दरों में कमी के असली निहितार्थ । खास समय पर चलाया गया बहुमारक ब्रह्मास्त्र है जीएसटी की दरों में कमी का कदम।
डॉ घनश्याम बादल
‘मोदी है तो मुमकिन है’ का नारा सत्तारूढ़ दल ऐसे ही नहीं देता बल्कि उसके पीछे मोदी के प्रभामंडल को रेखांकित करना तो होता ही है, साथ ही साथ इस बात का भी इशारा होता है कि उनके पास एक ऐसा नेता है जिसके लिए कुछ भी करना असंभव नहीं है ।
दूसरे शब्दों में बिना कहे ही कहा जाता है कि विपक्ष के पास नरेंद्र मोदी की तोड़ का दूसरा नेता है ही नहीं। पिछले 11 वर्षों से केंद्र की राजनीति को देखा जाए तो निश्चित रूप से यह राजनीति एक ही व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमती दिखती है और उस व्यक्ति का नाम है नरेंद्र मोदी।
इंदिरा गांधी के बाद वे ऐसे अकेले नेता है जो यह जानते हैं कि राजनीति के केंद्र में कैसे रहा जाए. उनके पास हर परिस्थिति के लिए एक मास्टरस्ट्रोक होता है। पहलगाम हमले का जवाब वें ऑपरेशन सिंदूर से देते हैं तो टैरिफ ट्रंप की हवा निकालने के लिए रूस और चीन से आगे बढ़कर हाथ मिला लेते हैं और भारत के निर्यात को बहुमुखी बनाने के लक्ष्य को साधते हुए यूरोपियन यूनियन संघ,ऑस्ट्रेलिया अफ्रीका और यूरेशिया महाद्वीपों को साधने में जुट जाते हैं और जब विपक्ष बिहार में वोट के अधिकार की रैलियों में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के साथ दहाड़ते देखते हैं तभी अचानक अपनी मां को गाली दिए जाने के भावुक मुद्दे के साथ उसके असर को कम करने आ जाते हैं । जब टैरिफ की वजह से भारतीय निर्यातकों का नुकसान होते हुए देखते हैं या देश में महंगाई की मार से हवा का रुख पलटते हुए भांपते हैं, तब जीएसटी की दरें कम करने का ब्रह्मास्त्र चला देते हैं।
अब आम आदमी या राजनीतिक दल इसे किसी भी तरीके से देखें लेकिन इसके पीछे जो अर्थशास्त्रीय एवं राजनीतिक विश्लेषण अचंभित करने वाला है । जीएसटी दरों में कमी के ब्रह्मास्त्र से नरेंद्र मोदी ने एनडीए के लिए बहुत कुछ साधने की चाल चली है।
यदि विश्लेषण करें तो वे जनता को यह संदेश दे रहे हैं कि आम आदमी के कल्याण के लिए उसे राहत देते हुए उनकी वित्त मंत्री सीतारमन ने जीएसटी की दरों को कम किया है ।
अभी तक देश में जीएसटी की चार दरें थी 5% 12% 18% एवं 30% तथा ‘सिन प्रोडक्ट’ माने जाने पदार्थों पर यह दरें और भी ऊंची थी. जब अमेरिकी राष्ट्रपति देश की अर्थव्यवस्था को डैड बता रहे थे और विपक्ष के नेता प्रधानमंत्री और सरकार पर ताबड़तोड़ वार कर रहे थे तब नरेंद्र मोदी की टीम अलग ही विश्लेषण करने में जुटी थी और अचानक ही वित्त मंत्री ने मीडिया में आकर जीएसटी की 12% एवं 30% की दरें समाप्त कर दी यानी अब देश में जीएसटी की केवल दो दरें रहेंगी 5% एवं 18% जो 22 सितंबर से लागू हो जाएंगी।
यदि गहन अध्ययन करें तो पता चलता है कि जीएसटी दरों में कमी एक जटिल मुद्दा है जिसके राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक पहलू हैं। राजनीतिक रूप से यह कदम सरकार की लोकप्रियता बढ़ाने या चुनावी लाभ प्राप्त करने की रणनीति भी हो सकती है।
सरकार की मानें तो जीएसटी दरों में कमी से मुद्रास्फीति कम होगी, व्यापार में वृद्धि और रोजगार के अवसर बढ़ेंगें, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह भारत को आकर्षक निवेश वाला देश बना बनाएगी और इससे निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
आम आदमी के जीवन पर जीएसटी दरों में कमी का सीधा प्रभाव वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में कमी के रूप में दिखाई देने की प्रबल संभावना है । इससे आम उपभोक्ता की क्रय शक्ति बढ़ेगी और जीवन स्तर में सुधार होगा हालांकि दीर्घकालिक प्रभाव सरकार के राजस्व और सार्वजनिक सेवाओं पर निर्भर करेगा।
एक ओर जीएसटी दरों में कमी के आर्थिक प्रभाव होंगे। इससे अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक व सकारात्मक दोनों प्रभाव देखने को मिलेंगे. जीएसटी दरों में कमी का अर्थ है सरकार को अब कर के रूप में करीब 2000 करोड रुपए कम मिलेंगे लेकिन इसकी भरपाई काफी हद तक होने की संभावना जल्दी ही बनती है क्योंकि कीमतें कम होने से उपभोक्ताओं की मांग बढ़ जाएगी जिससे उत्पादन एवं बाजार दोनों नई ऊंचाइयां प्राप्त करेंगे और जब देश में जीएसटी की दर कम होगी तो विदेशी निवेशक भी भारत की ओर एक बार फिर से रुख करना शुरू कर देंगे यानी विदेश का पैसा देश में आएगा जिससे अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा।
लेकिन जीएसटी की दरों को जिस समय कम करने की घोषणा की गई है, राजनीतिक दृष्टि से उसके भी अलग मायने हैं. बिहार और बंगाल के साथ दूसरे राज्यों के विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और ऐसे में सरकार का लोकप्रिय कदम मतदाताओं को उसकी ओर खींचेगा, इसीलिए जीएसटी की दरों में कमी को चुंबक की तरह हवा में उछाल दिया गया है ।
जीएसटी दरें कम करने के पीछे सत्ताधारी दल जो कारण गिना रहा है, उनमें महंगाई नियंत्रण, मुद्रास्फीति पर अंकुश, उपभोग को बढ़ावा और अर्थव्यवस्था में गतिशीलता के साथ,व्यापार को प्रोत्साहन और छोटे उद्योगों को राहत मिलना है. साथ ही टैक्स अनुपालन बढ़ाना व कर चोरी की प्रवृत्ति को रोकने की मंशा भी बताई जा रही है वहीं विपक्ष के अनुसार इसकी असली वज़ह राजनीतिक है और चुनावी समय में जनता में लाभ लेने के लिए सरकार ने यह चाल चली है जबकि असलियत में इसका लाभ मुख्य रूप से उद्योगपति उठाएंगे और आम जनता तक इसका लाभ नहीं पहुंच पाएगा।
लेकिन वित्त मंत्री ने यह कहकर आम आदमी को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि वह इस बात को सुनिश्चित करेंगी कि जीएसटी की घटी हुई दरों का लाभ आम आदमी तक पहुंचे न कि केवल कंपनियां इससे लाभान्वित हों।
उनके अनुसार रोज़मर्रा की वस्तुएँ जैसे दवाइयाँ, कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक वस्तएं सस्ती हो जाएंगी. परिवारों का खर्च कम होने से से उनकी बचत बढ़ेगी और महंगाई का दबाव घटने से जीवन स्तर में सुधार होगा । वें तो इससे इतनी उत्साहित हैं कि देश की अर्थव्यवस्था को अगले कुछ महीनो में ही तीसरे पायदान पर पहुंच जाने की बात कह रही हैं।
निष्कर्ष के तौर पर कह सकते हैं कि जीएसटी दरों में कमी से अल्पकाल में सरकार के राजस्व पर दबाव पड़ सकता है लेकिन दीर्घकाल में यह मांग, उत्पादन, रोजगार और विकास को बढ़ावा मिलेगा और सरकार को आने वाले विधानसभा चुनाव में इसका राजनीतिक लाभ भी यदि मिले तो इसमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए।
डॉ घनश्याम बादल