डा.वेदप्रकाश
प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी संकल्प से सिद्धि के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने स्वच्छ भारत,एक भारत-श्रेष्ठ भारत, नया भारत, समर्थ भारत, आत्मनिर्भर भारत, विकसित भारत जैसे अनेक संकल्प प्रस्तुत किए हैं। उन्हीं में से गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का संकल्प भी एक बड़ा एवं महत्वपूर्ण विचार है। गुलामी की मानसिकता व्यक्ति,समाज व राष्ट्र को निर्बल और निर्भर बनाती है। यह स्वचिंतन का ह्रास और आत्मबोध की विस्मृति करती है। इससे मुक्ति का विचार भारतवर्ष के पुनर्जागरण का विचार है।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि मंदिर में ध्वजारोहण समारोह में मैंकाले की मानसिकता से मुक्ति का संकल्प प्रस्तुत करते हुए कहा कि 190 वर्ष पूर्व 1835 में एक अंग्रेज ने भारत को उसकी जड़ों से उखाड़ने के लिए गुलामी की मानसिकता के बीज बोये थे…आज जब राम मंदिर पर धर्म ध्वजा के माध्यम से देश अपनी सांस्कृतिक चेतना के एक और उत्कर्ष बिंदु का साक्षी बन रहा है तो इस अवसर पर हमें इस मानसिकता के खात्मे का संकल्प भी लेना होगा। सर्वविदित है कि वर्ष 1835 में गवर्नर जनरल की परिषद के समक्ष संस्कृत-अरबी साहित्य और भारत की समूची शिक्षा व्यवस्था को अप्रासंगिक बताते हुए मैकाले ने कहा था कि- संस्कृत के सभी ग्रंथों से मिला ज्ञान तो हमारे प्राथमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम के समकक्ष है… यहां के रईस अंग्रेजी पढ़ने के लिए फीस भरकर हमारे खजाने में धन डालते हैं… हमें एक ऐसा भारतीय वर्ग तैयार करना है जिसका रंग भारतीय हो, रगों में भारतीय खून दौड़ता हो, लेकिन उसका स्वाद अंग्रेजों जैसा हो। जो नीति और बुद्धि से अंग्रेज हो।
मैकाले ने उक्त विभिन्न बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए जो शिक्षा नीति तैयार की, उससे धीरे-धीरे भारत में भी अंग्रेजी मानसिकता का एक वर्ग तैयार हो गया। यह वर्ग आज भी अंग्रेजी को महान सिद्ध करते हुए हिंदी, संस्कृत और भारतीय भाषाओं को हीन मानता है। क्या यह सत्य नहीं है कि आज भी देश के विभिन्न रईस अंग्रेजी पढ़ने के लिए ब्रिटेन के खजाने भर रहे हैं? क्या आज भी भारत में अनेक लोग ऐसे नहीं हैं जो विदेशी भाषा, भोजन, भेष और जीवन शैली की श्रेष्ठता का प्रचार करते हैं? क्या इस प्रकार की मानसिकता से मुक्ति के बिना विकसित भारत के संकल्प में भागीदारी करने वाली पीढ़ी तैयार हो सकती है? गुलामी की मानसिकता से मुक्ति ऐसे नागरिक तैयार करने का संकल्प है जो नीयत, नीति और बुद्धि में भारतीय हों। वे चाहे कहीं भी रहें लेकिन अपने मूल अथवा जड़ों से जुड़े रहें।
ध्यान रहे भारत में साहित्य, कला, संस्कृति, धर्म, दर्शन और ज्ञान-विज्ञान का समृद्ध भंडार है। इसे जान-समझकर अथवा पकड़कर हम शिखर पर पहुंच सकते हैं। यहां यदि गडरियों के गीत हैं तो श्रेष्ठ जीवन पद्धति बताने वाली वेद की ऋचाएं भी हैं। यह केवल सपेरों का देश नहीं है। यहां चंद्रयान, सूर्ययान, गगनयान और डिजिटल तकनीक में शिखर पर पहुंचे हुए वैज्ञानिक भी हैं। यह भाषा, साहित्य, संस्कृति, भोजन, वेशभूषा व जलवायु आदि विभिन्न विविधताओं से संपन्न भूसांस्कृतिक राष्ट्र है। गुलामी की मानसिकता से मुक्ति के लिए आज हमें अपने सामाजिक व सांस्कृतिक विधि विधानों और प्राचीन आदर्शों का नया निर्माण करना होगा। महर्षि अरविंद ने कहा था- जो कुछ हमारी आवश्यकताओं के अनुकूल तथा भारतीय भावना के अनुरूप है, उस सबको हमें एक प्रबल सृजनशील सात्म्यकरण के द्वारा ग्रहण कर लेना होगा। ध्यान रहे, गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का आवाह्न जन-जन के लिए आंतरिक और बाह्य अन्वेषण और परिष्कार का संदेश है। यूरोपीय आधुनिकतावाद के आक्रमण और भेदभाव की भावना ने भारतीयों के मन-मस्तिष्क को भिन्न-भिन्न प्रकार से संक्रमित करने का काम किया है। मुक्ति का यह आवाह्न उस संक्रमण से भी मुक्त होने का संदेश है।
स्वतंत्रता के बाद शिक्षा,साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में तत्काल जिन आमूलचूल परिवर्तनों की आवश्यकता थी, उनके अभाव में गुलामी की मानसिकता मजबूत होती चली गई। संविधान में तो लिखा है- हम सभी एक विधान का पालन करेंगे। हिंदी समूचे राष्ट्र की भाषा होगी। फिर ऐसा क्यों नहीं हुआ? हमें पाठ्यक्रमों में शोषकों और आक्रांताओं को महान बताकर पढ़ाया गया। परिणामस्वरूप सामर्थ्य होते हुए भी हम निर्धन, निर्बल और निर्भर बने रहे। विगत कुछ वर्षों में प्रधानमंत्री आवास योजना, मुद्रा योजना, किसान सम्मन निधि, गरीब कल्याण अन्न योजना, स्व निधि, श्रमेव जयते आदि विभिन्न योजनाओं के जरिए निर्धनता और निर्बलता मिटाने के प्रयास हुए हैं तो दूसरी ओर स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया,मेड इन इंडिया, मेक इन इंडिया, नेशनल मैन्युफैक्चरिंग मिशन और स्वदेशी जैसे व्यापक कार्यों से आत्मनिर्भरता को भी बल मिल रहा है। 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने हेतु लगातार नेक्स्ट जेनरेशन रिफॉर्म किए जा रहे हैं। आज दुनिया के कई देश ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में भारत से मदद और साझेदारी ले रहे हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के द्वारा भारत केंद्रित विचार, वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं हेतु योजनाएं एवं नागरिक निर्माण केंद्रित मूल्य आधारित शिक्षा के प्रयास तेज हुए हैं।
लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री का आवाह्न स्पष्ट है- हम अपने जीवन में, हमारी व्यवस्थाओं में, हमारे नियम-कानून परंपराओं में, गुलामी का एक भी कण अब बचने नहीं देंगे। हम हर प्रकार की गुलामी से मुक्ति पाकर के ही रहेंगे। मुक्ति के इस संकल्प में आज यह भी आवश्यक है कि कोई भी व्यक्ति, समाज अथवा राज्य अलग न रहे। संविधान और नवाचार को अंगीकार करते हुए प्रत्येक व्यक्ति दृढ़ता और निष्ठा से इस नवसंकल्प में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करे। स्वामी विवेकानंद ने कहा था- अपने अंत: स्थित ब्रह्म को जगाओ, जो तुम्हें क्षुधा-तृष्णा, शीत-उष्ण सहन करने में समर्थ बना देगा… त्याग करो, महान बनो। कोई भी बड़ा कार्य बिना त्याग के नहीं किया जा सकता।
आज हमें मैं और मेरा की संकुचित भावना को छोड़कर एक देव भारत की पूजा करनी होगी। अपनी पुस्तक हू आर वी? में सैमुअल हटिंगटन कहते हैं कि- जब तक हम यह तय नहीं करते कि हम कौन हैं, तब तक हम यह तय नहीं कर सकते कि हमारी प्राथमिकताएं क्या हो सकती हैं। गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का विचार जन-जन को उनके अतः स्थित ब्रह्म को जगाने, विकसित भारत के लिए हो रहे प्रत्येक कार्य में भागीदार बनने और महानता की ओर अग्रसर होने का आवाह्न और संकल्प है। आज दुनिया के अनेक देश, उनके विद्वान, उनके वैज्ञानिक भारतीय जीवन पद्धति और ज्ञान-विज्ञान को जानने हेतु शोध में लगे हुए हैं। तब यह आवश्यक है कि भारत के युवा भारतीय ज्ञान परंपरा और श्रेष्ठता के बोध हेतु शोध की दिशा में अग्रसर हों।
डा.वेदप्रकाश