-आरके गुप्ता- 
2014 के लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे निकट आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे केन्द्र की कांग्रेस सरकार व उत्तर प्रदेश की मुलायम-अखिलेश सरकार मुस्लिमों पर विशेष ध्यान दे रही हैं तथा देश व प्रदेश का खजाना देश की सुरक्षा को ताक पर रखकर मुसलमानों पर लुटा रही है। वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने सेना को दिए जाने वाले 7870 करोड़ रुपयों पर रोक लगा दी है ताकि वह उन रुपयों को विभिन्न योजनाओं द्वारा मुसलमानों को बांट सके और उनके वोट प्राप्त कर सके। केन्द्रीय गृहमंत्री शिंदे राज्य सरकारों एवं पुलिस को आतंकवाद में मुस्लिम युवकों को न पकडने का आदेश देते हैं, कपिल सिब्बल मजहबी तालीम के साथ मुसलमानों को रोजगार के अवसर देने की बात करते है। उत्तर प्रदेश सरकार तो समय-समय पर मुसलमानों पर प्रदेश का खजाना लूटा रही है। जिसमें चाहे वह दसवीं पास करने वाली सिर्फ मुस्लिम छात्राओं को 30 हजार रुपये दिए जा रहे हो, कब्रिस्तानों की चारदिवारी, साम्प्रदायिक हिंसाओं में मुसलमानों को अंधाधुध मुआवजा और अब इन सबसे आगे बढ़ते हुए लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर प्रदेश के मदरसों को एक दर्जन से अधिक योजनाओं द्वारा लाभान्वित करने जा रहे। मुलायम-अखिलेश सरकार उर्दू की डिग्री आमिल व फाजिल को स्नातक के बराबर मान्यता देने, मदरसा शिक्षकों जिन के पास परास्नातक व बीएड दोनों डिग्रियां है का मानदेय 12 हजार के स्थान पर 15 हजार रुपये प्रतिमाह व स्नातक मदरसा शिक्षकों को 6 हजार के स्थान पर 8 रुपये देने तथा मदरसा शिक्षक की मौत पर उसके आश्रित को उसके स्थान पर नौकरी देने जैसी दर्जन भर घोषणाएं कर रही हैं।
जिस प्रकार केन्द्र व राज्य सरकार बहुसंख्यक (हिन्दुओं) के अधिकारों का लगातार हनन करते हुए अल्पसंख्यक (मुसलमानों) को लगातार लाभान्वित कर रही हैं, उससे देश में साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ते जा रहे हैं। एक तरफ तो सरकारें साम्प्रदायिकता को देश के लिए खतरा बताती हैं, वहीं दूसरी ओर वह खुद धर्मनिरपेक्षता के नाम पर साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दे रही है। केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा इस प्रकार संविधान की उपेक्षा करते हुए धर्म के आधार (हिन्दू-मुस्लिम) पर भेदभाव करने के कारण देश में आपसी सौहार्द खत्म होता जा रहा है। सिर्फ एक धर्म के लोगों को विशेष सुविधाएं एवं आर्थिक सहायता देने के कारण दूसरे धर्म के लोग अपने आपको ठगा व लुटा-पीटा सा महसूस कर रहे हैं।
बड़े आश्चर्य की बात है कि केन्द्र सरकार देश की सीमाओं की सुरक्षा की अनदेखी कर रही जिससे हमारी सेना संसाधनों के अभाव में कमजोर हो रही है परन्तु वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा देने के लिए तथा एक धर्म विशेष के वोट पाने के लिए उनपर विभिन्न योजनाओं द्वारा धन लुटा रही है। यदि सरकारें इसी प्रकार साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देती रही तो वह दिन दूर नहीं जब एक बार फिर धर्म के आधार पर देश का बंटवार हो जाये। अतः देशभक्त जनता को जागना होगा तथा धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाले नेताओं को वोट न देकर उनका बहिष्कार करते हुए राष्ट्र की रक्षा करनी होगी।

2014 के लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे निकट आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे केन्द्र की कांग्रेस सरकार व उत्तर प्रदेश की मुलायम-अखिलेश सरकार मुस्लिमों पर विशेष ध्यान दे रही हैं तथा देश व प्रदेश का खजाना देश की सुरक्षा को ताक पर रखकर मुसलमानों पर लुटा रही है। वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने सेना को दिए जाने वाले 7870 करोड़ रुपयों पर रोक लगा दी है ताकि वह उन रुपयों को विभिन्न योजनाओं द्वारा मुसलमानों को बांट सके और उनके वोट प्राप्त कर सके। केन्द्रीय गृहमंत्री शिंदे राज्य सरकारों एवं पुलिस को आतंकवाद में मुस्लिम युवकों को न पकडने का आदेश देते हैं, कपिल सिब्बल मजहबी तालीम के साथ मुसलमानों को रोजगार के अवसर देने की बात करते है। उत्तर प्रदेश सरकार तो समय-समय पर मुसलमानों पर प्रदेश का खजाना लूटा रही है। जिसमें चाहे वह दसवीं पास करने वाली सिर्फ मुस्लिम छात्राओं को 30 हजार रुपये दिए जा रहे हो, कब्रिस्तानों की चारदिवारी, साम्प्रदायिक हिंसाओं में मुसलमानों को अंधाधुध मुआवजा और अब इन सबसे आगे बढ़ते हुए लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर प्रदेश के मदरसों को एक दर्जन से अधिक योजनाओं द्वारा लाभान्वित करने जा रहे। मुलायम-अखिलेश सरकार उर्दू की डिग्री आमिल व फाजिल को स्नातक के बराबर मान्यता देने, मदरसा शिक्षकों जिन के पास परास्नातक व बीएड दोनों डिग्रियां है का मानदेय 12 हजार के स्थान पर 15 हजार रुपये प्रतिमाह व स्नातक मदरसा शिक्षकों को 6 हजार के स्थान पर 8 रुपये देने तथा मदरसा शिक्षक की मौत पर उसके आश्रित को उसके स्थान पर नौकरी देने जैसी दर्जन भर घोषणाएं कर रही हैं।
जिस प्रकार केन्द्र व राज्य सरकार बहुसंख्यक (हिन्दुओं) के अधिकारों का लगातार हनन करते हुए अल्पसंख्यक (मुसलमानों) को लगातार लाभान्वित कर रही हैं, उससे देश में साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ते जा रहे हैं। एक तरफ तो सरकारें साम्प्रदायिकता को देश के लिए खतरा बताती हैं, वहीं दूसरी ओर वह खुद धर्मनिरपेक्षता के नाम पर साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दे रही है। केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा इस प्रकार संविधान की उपेक्षा करते हुए धर्म के आधार (हिन्दू-मुस्लिम) पर भेदभाव करने के कारण देश में आपसी सौहार्द खत्म होता जा रहा है। सिर्फ एक धर्म के लोगों को विशेष सुविधाएं एवं आर्थिक सहायता देने के कारण दूसरे धर्म के लोग अपने आपको ठगा व लुटा-पीटा सा महसूस कर रहे हैं।
बड़े आश्चर्य की बात है कि केन्द्र सरकार देश की सीमाओं की सुरक्षा की अनदेखी कर रही जिससे हमारी सेना संसाधनों के अभाव में कमजोर हो रही है परन्तु वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा देने के लिए तथा एक धर्म विशेष के वोट पाने के लिए उनपर विभिन्न योजनाओं द्वारा धन लुटा रही है। यदि सरकारें इसी प्रकार साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देती रही तो वह दिन दूर नहीं जब एक बार फिर धर्म के आधार पर देश का बंटवार हो जाये। अतः देशभक्त जनता को जागना होगा तथा धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाले नेताओं को वोट न देकर उनका बहिष्कार करते हुए राष्ट्र की रक्षा करनी होगी।
आशु जी हिन्दू आतंकवाद क्या है? हिन्दुओं ने कहां बम विस्फोट किये? जरा बतायेंगे? अगर समझौता एक्सप्रेस, मालेगांव की बात कर रहे हो तो तो आपको पता होना चाहिए कि इनमें पहले मुस्लिम पकडे गये थे परन्तु राजनैतिक दबाव में उनको छोड़ दिया गया फिर निर्दोष हिन्दू साधू संतों को पकडा गया। आज तक कोई भी जांच एजेंसी इन पर कोई आरोप साबित नहीं कर पाई है। जबकि ये मुस्लिम पुलिस ने सबूतों के आधार पर पकडे थे।
यदि देश का हिन्दू हथियार उठाले तो आज एक भी इस्लामिक जेहादी आतंकवादी जिंदा नहीं बचेगा, कश्मीर पर पाकिस्तान कभी कब्जा नहीं कर पायेगा।
अकल के अंधे हिंदुत्व आतंकवाद क्या होता है ? जरा तफ्सील से बताओगे ?
देश में हिन्दुत्त्व आतंकवाद का खतरा बढ़ रहा है ये आपको दिखाई
नही देता
अकल के अंधे हिंदुत्व आतंकवाद क्या होता है ? जरा तफ्सील से बताओगे ?