डॉ घनश्याम बादल
नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी के कार्यकाल को पीछे छोड़कर नेहरू के बाद सबसे ज्यादा समय तक लगातार प्रधानमंत्री पद रहने वाली उसे शख्सियत का नाम है जिसे उनके समर्थक भारत को विश्वगुरु बनाने एक विकसित देश बनाने और बनाना स्टेट से सॉलिड स्टेट तक ले जाने का श्रेय देते हैं.
एक प्रधानमंत्री एवं सरकार के मुखिया के रूप में नरेंद्र मोदी अपने नारे ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ को सच बनाने के लिए दिन-रात जुटे रहने वाले ऐसे शख्स हैं जिनमें निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता है । उन्होंने अपने कार्यकाल में अपने वादे के मुताबिक धारा 370 को हटा दिया, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण पूर्ण हुआ, तीन तलाक और सी ए ए के विवादों से पार पाते हुए वे आगे बढ़े । नोटबंदी के उनके निर्णय का जो कारण उन्होंने बताया, वह था अर्थव्यवस्था से काले धन की समाप्ति और आतंकवाद की कमर तोड़ना. इसी आधार पर उन्होंने ₹1000 का नोट बंद किया लेकिन 3 महीने बाद ही 2000 का नोट चलन में आ गया।
विपक्ष व आलोचकों की नज़र में नरेंद्र मोदी केवल ‘मन की बात’ ही नहीं सुनाते हैं अपितु करते भी केवल मन की ही हैं। उनके आलोचकों का मानना है कि मोदी के अधिकांश निर्णय जल्दबाजी व हड़बड़ाहट में लिए हुए ऐसे निर्णय हैं जिन्हें लोकप्रियता पाने का एक शगल है ।
नरेंद्र मोदी राजनीतिक लाभ लेने के लिए तर्क से लेकर भावनाओं तक किसी का भी इस्तेमाल करने में नहीं चूकते। राम मंदिर, तीन तलाक, धारा 370, ऑपरेशन सिंदूर और अब बिहार के चुनावों से ठीक पहले अपनी मां को दी गई गालियों तथा मणिपुर यात्रा इस तरह के उदाहरण हैं। जब गहराई में जाकर उनके व्यक्तित्व का विश्लेषण करते हैं तो उनकी खूबियां और खामियां दोनों ही सामने आती हैं ।
जब नरेंद्र मोदी पहले कार्यकाल में सफल हो रहे थे तब विपक्ष ने इसे उनके भाग्य की करामात बताई थी। सचमुच भाग्यशाली हैं नरेंद्र मोदी. तभी तो 26 मई 2014 को पहली बार सांसद चुने के बाद ही वें प्रधानमंत्री पद पर आसीन हो गए हैं वैसे ही जैसे पहली बार विधायक चुने जाने के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे ।
एक धुरंधर राजनीतिज्ञ के अपने विशिष्ट अंदाज में उन्होंने संसद भवन की ड्योढ़ी पर माथा टेककर संसद में प्रवेश किया तो भावुक देश को बहुत आशाएं जगी थीं । अपने पहले ही भाषण में नरेंद्र मोदी ने देश को चुनाव में ‘अच्छे दिनों’ के वादे को पूरा करने का विश्वास दिलाया । साथ ही साथ सबका साथ ‘सबका विकास’ का नारा देकर सारी राजनीतिक का कटुता भुलाकर देश के सर्वांगीण विकास की बात की और खुद को प्रधानमंत्री के बजाय ‘प्रधान सेवक’ की संज्ञा दी तथा कहा कि वह एक शासक नहीं बल्कि ‘चौकीदार’ के रूप में देश के हितों की रक्षा करेंगे लेकिन इसी शब्द को लेकर राहुल गांधी और कांग्रेस ने ‘चौकीदार चोर है’ जैसा नारा भी गढ़ा।
नरेंद्र मोदी ने एक से बढ़कर एक योजनाएं देश को दी जिनमें जनधन योजना,उज्ज्वला योजना, अटल पेंशन योजना,महिला कल्याण व स्वच्छ भारत मिशन जैसी योजनाओं के माध्यम से उन्होंने आम आदमी का दिल जीत लिया। जहां विपक्ष ने उन्हें लफ्फाज की संज्ञा दी, वही उन्होंने अपने इस कार्यकाल में नोटबंदी तथा पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक करने जैसे कड़े निर्णय देकर दिखाया कि अपने संकल्प के पक्के हैं।
उनकी राजनीतिक चतुराई के आगे विपक्षी पूरे कार्यकाल में एक संभ्रम की स्थिति में रहे और राहुल गांधी को तो उन्होंने इस तरह निशाने पर रखा कि वे कभी भी खुद को उनका प्रतिद्वंदी साबित नहीं कर पाए।
ऐसा नहीं कि नरेंद्र मोदी का कार्यकाल एकदम सफल ही रहा हो. उसमें विपक्ष को आलोचना का भी पूरा मौका मिला एवं उन्हें असफलता का भी सामना करना पड़ा । उनके ‘अच्छे दिन’ और 15 लाख रुपए हर भारतीय के खाते में आने की खूब मज़ाक बनी जिसे बाद में अमित शाह ने एक ‘चुनावी जुमला’करार देकर जान छुडाई ।
इस दौरान बेरोजगारी की सर्वोच्च दर 6.28 तक पहुंच गई जो पिछले 45 वर्षों में सबसे अधिक थी। हिंदुओं मुसलमानों के बीच बढ़ती खाई से मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ीं. इस कार्यकाल में उनके कई निर्णय जल्दबाजी में लिए गए साबित हुए ।
2019 में लोकसभा चुनावों में राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान था कि ‘आएंगे तो मोदी ही’ पर उनकी चमक और धमक दोनों कम होगी लेकिन ‘मोदी है तो मुमकिन है’ और ‘इस बार 300 पार’ का नारा खूब चला और भारतीय जनता पार्टी को पहली बार अपने ही बलबूते पर बहुमत मिला । एनडीए की 353 सीटों उसका हिस्सा 303 पर पहुंच गया जो एक बड़ी उपलब्धि थी ।
अपने दूसरे कार्यकाल में नरेंद्र मोदी का आत्मविश्वास आसमान छूता नज़र आया और उन्होंने कई ऐसे निर्णय लिए जिनकी कल्पना भी भारतीय राजनीति में मुश्किल थी । कृषि कानून पर उन्हें यू टर्न लेना पड़ा बेरोजगारी व महंगाई बेकाबू हो गई. दूसरे कार्यकाल में सरकार ने सीबीआई, ई डी और इनकम टैक्स जैसी संस्थाओं का इस्तेमाल विपक्षियों को घेरने और कुचलने में किया। उन पर बडबोलेपन का आरोप तो ख़ैर अब तक लगता है ।
2024 के चुनाव में नरेंद्र मोदी ‘वन मैन आर्मी’ की तरह लड़े और तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भाजपा को सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में वापस लाने में कामयाब रहे भले ही सीटों की संख्या 303 से गिरकर केवल 240 रह गई। जैसी कि आशंका थी कि इस बार के मोदी डरे डरे से मोदी होंगे वैसा नहीं दिखाई दिया और उन्होंने धड़ाधड़ फैसले लेने वाली अपनी शैली को अब तक बरकरार रखा है। पहलगाम हमले के बाद जिस तरह का स्टैंड उन्होंने लिया उसकी उम्मीद पाकिस्तान को भी नहीं थी।
दृढ़ संकल्प के साथ उन्होंने पाकिस्तान को गहरी चोट और सबक दिए हैं. ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से आतंकवादी ठिकानों के साथ-साथ पाकिस्तान के अधिकांश एयर बेस भी नष्ट कर दिए गए हालांकि युद्ध विराम के बाद पाकिस्तान भी वैसा ही जश्न मनाता दिखा जैसा भारत अपनी जीत पर मना रहा है और एकाएक किए गए युद्ध विराम ने मोदी को आज तक उलझा रखा है और इसी बात को लेकर भारत अमेरिका में एक तरीके से टैरिफवार भी चल रहा है।
अभी तो राजनीति बहुत सारी करवटें लेगी, बहुत सारे उतार चढ़ाव आएंगे, इस बात की संभावना कम ही है कि 75 साल के हो रहे मोदी संन्यास ले झोला उठाकर चल देंगे लेकिन यह भी तय है कि उनका इस बार का कार्यकाल विपक्ष आसानी से पूरा न हो, इसकी पूरी कोशिश करेगा।
डॉ घनश्याम बादल