कथावाचक, समाज और जातिवाद की राजनीति

राजेश कुमार पासी

हमारे देश में जाति-धर्म का मुद्दा राजनीति करने के लिए नेताओं को खूब लुभाता है । जैसे ही उनको ऐसा अवसर मिलता है वो उसे तुरंत लपक लेते हैं क्योंकि इस मुद्दे पर कुछ नहीं करना होता, सिर्फ लोगों को भड़काना होता है । ऐसा ही एक मुद्दा उत्तर प्रदेश की राजनीति का केंद्रीय मुद्दा बना हुआ है । इसकी वजह शायद यह है कि यूपी में पंचायतों के चुनाव होने वाले हैं । इस मुद्दे को राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने भी लपक लिया है क्योंकि बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं । एक यादव कथावाचक को अपनी जाति छुपाने के कारण अपमानित किया गया है और दूसरे पक्ष का आरोप है कि कथावाचक ने घर की महिला से छेड़छाड़ की थी । कौन सही है और कौन गलत है, ये तो पुलिस की जांच के बाद पता चलेगा लेकिन इस पर जबरदस्त तरीके से राजनीति शुरू हो गई है । इसका कारण यह है कि कथावाचक यादव समाज से आता है और जिस परिवार ने उसको प्रताड़ित  किया है, वो ब्राह्मण समाज से आता है । एक तरह से दो पक्षों की आपसी लड़ाई को यादव बनाम ब्राह्मण बनाया जा रहा है ।

ऐन पंचायत चुनावों के वक्त अखिलेश यादव को जातीय राजनीति करने के लिए सुनहरा अवसर मिल गया है तो वो उसे कैसे छोड़ सकते हैं । दूसरा कोई राजनीतिक दल होता तो वो भी इस मौके को भुनाने की कोशिश करता । अखिलेश यादव तो कोशिश करेंगे कि इस मुद्दे को 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव तक जिंदा रखा जाए, वो उसमें कितने कामयाब होते हैं, ये देखने वाली बात होगी । तेजस्वी यादव भी इस आग में तेल डाल रहे हैं ताकि विधानसभा चुनावों तक इस मुद्दे को जिंदा रखा जाए । भाजपा के लिए ये मुद्दा मुश्किल  खड़ी कर रहा है क्योंकि इसे यादवों तक सीमित न रखकर पिछड़ो और दलितों तक ले जाने की कोशिश की जा रही है क्योंकि पीड़ितों में एक दलित भी शामिल हैं। भाजपा यूपी में यादवों को भी लुभाने की कोशिश कर रही थी. अब लगता है कि भाजपा की यह कोशिश बेकार जाने वाली है। समस्या समाजवादी पार्टी की भी है क्योंकि वो ब्राह्मणों को भाजपा के खिलाफ भड़का रही थी लेकिन अब वो ब्राह्मणों के खिलाफ उतर आई है ।

                 कथा करवाने वाले परिवार का आरोप है कि कथावाचक ने अपनी जाति छुपाई थी और उनके घर की महिलाओं के साथ अभद्रता की थी । सवाल यह है कि अगर कथावाचक ने जाति छुपाई और महिलाओं के साथ छेड़खानी की तो उसे पुलिस के हवाले क्यों नहीं किया गया । कहा जा रहा है कि कथावाचक के पास से दो आधार कार्ड मिले हैं. इसका मामले से क्या मतलब है बाद में पता चलेगा । सवाल यह है कि उसकी शिखा काटने और बाल मूंडने की क्या जरूरत थी । दूसरी बात यह है कि क्या सिर्फ यादव होने के कारण उसके साथ यह व्यवहार किया गया है ।  अगर वो ब्राह्मण समाज से होता तो क्या परिवार उसके साथ ऐसा ही व्यवहार करता।  देखा जाए तो ब्राह्मण परिवार यह बर्दाश्त नहीं कर पाया कि उनके घर एक यादव कथा करने आया था । इसके पीछे यह जातिवादी  सोच नजर आती है कि भागवत कथा करना केवल ब्राह्मणों का अधिकार है । देखा जाये तो दूसरी जातियों के लोग भी यह काम कर रहे हैं और कोई एतराज नहीं करता । साध्वी ऋतम्भरा, साध्वी उमाभारती और बाबा रामदेव भी पिछड़ी जातियों से आते हैं लेकिन पूरा हिन्दू समुदाय उनका सम्मान करता रहा है।  उक्त कथावाचक वर्षों से कथा कर रहा है और लोग करवा रहे हैं.

 यहां यह भी सवाल है कि उसकी जाति का लोगों को कैसे पता नहीं चला । जाति छुपाना गलत है लेकिन हो सकता है कि कथावाचक अपने धंधे में नुकसान के भय से ऐसा कर रहा हो क्योंकि ज्यादातर लोग ब्राह्मणों से ही कथा करवाना पसंद करते हैं । उसके द्वारा जाति छुपाना यजमान परिवार के लिए धार्मिक भावनाएं आहत करने वाला हो सकता है लेकिन इतना नहीं कि कानून हाथ में ले लिया जाए । वास्तव में हिन्दू समाज की जातिवादी सोच खत्म होने का नाम नहीं ले रही है । जातिवाद के कारण भारत हजार साल गुलाम रहा लेकिन फिर भी हिन्दू समाज सुधरने का नाम नहीं ले रहा है । इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता कि जाति के आधार पर ऊंचा होने की सनक ने कुछ लोगों को इतना नीचे गिरा दिया है कि उन्हें इसका अहसास तक नहीं है । आरक्षण को कोसने वाला समाज कभी यह नहीं समझ पाता कि आरक्षण जातिवाद के कारण आया है लेकिन आरक्षण से परेशानी है और जातिवाद से आज भी प्रेम है । हिन्दू समाज को सोचना होगा कि जातिवाद के कारण ही हिंदुओं का धर्म परिवर्तन होता आ रहा है। जब लोगों को अपने ही धर्म में सम्मान नहीं मिलेगा तो वो दूसरे धर्मों की तरफ क्यों नहीं देखेंगे। इस पर हिन्दू समाज को गंभीरता से विचार करना चाहिए कि कहीं इसी जातिवाद के कारण वो एक दिन अपने ही देश में अल्पसंख्यक न बन जाये।

              भाजपा के लिए यह मुद्दा तब तक परेशानी नहीं पैदा कर  सकता जब तक यह यादव बनाम ब्राह्मण बना रहता है लेकिन समाजवादी पार्टी इसे आगे लेकर जाना चाहती है । वो इसमें दलितों और अन्य पिछड़ी जातियों को जोड़ना चाहती है । सवाल यह है कि क्या अखिलेश यादव इसमें कामयाब हो सकते हैं । यादव जाति को पीड़ित बताना किसी के गले उतरने वाला नहीं है । यादव जाति यूपी की सबसे दबंग जाति है और आर्थिक रूप से किसी से कमजोर नहीं है । उत्तर प्रदेश में अगर किसी का जातीय आधार पर उत्पीड़न होता है तो वो हैं दलित और अति पिछड़ी जातियां जिनके उत्पीड़न में सवर्ण जातियों के साथ-साथ यादव और मुस्लिम भी शामिल हैं । इसलिए लगता है कि यह मुद्दा अखिलेश यादव को उल्टा भी पड़ सकता है क्योंकि यादव तो उनके पक्ष में पहले ही से एकजुट हैं लेकिन इस मुद्दे के कारण ब्राह्मण समाज उनके खिलाफ एकजुट हो सकता है । समाजवादी अभी तक प्रदेश की भाजपा सरकार को ब्राह्मणों के खिलाफ भड़का रही थी, अब वो खुद ही उनके खिलाफ मोर्चा खोलकर खड़ी हो गई है । यही कारण है कि पक्ष-विपक्ष दोनों ही इस मुद्दे पर संभल कर राजनीति कर रहे हैं ।

भाजपा की परेशानी यह है कि पिछले लोकसभा चुनावों में दलित वोट बैंक उससे छिटक गया था. अगर 2027 के विधानसभा चुनावों में दलित साथ नहीं आते हैं तो भाजपा मुश्किल में फंस सकती है । जैसे मुस्लिम और यादव समाजवादी पार्टी के पक्ष में एकजुट हैं वैसे भाजपा  के पक्ष में दलित और अन्य पिछड़ी जातियां नहीं हैं । इसकी वजह यह है कि समाजवादी पार्टी के शासन में यादवों के हाथ में सत्ता होती है और इसका बड़ा हिस्सा मुस्लिम समाज को भी मिलता है । कुछ दूसरी जातियों के वोट से मामला इधर से उधर हो जाता है । भाजपा का सबका साथ, सबका विकास उसको कोई फायदा नहीं दे रहा है क्योंकि इसमें किसी जाति या धर्म को लक्ष्य करके योजनाओं को लागू नहीं किया जा रहा है । जो सबसे ज्यादा फायदा लेने वाला मुस्लिम समाज भाजपा को वोट देने की जरूरत नहीं समझता तो इस रास्ते पर दलित समाज भी जा सकता है । 

              भाजपा की कमजोरी जातिवादी राजनीति है क्योंकि वो धर्म की राजनीति करती है । इस मुद्दे ने जातियों में नफरत पैदा करने का रास्ता खोल दिया है । भाजपा ने बंटोगे तो कटोगे का नारा लगाया था. अगर यह मुद्दा जोर पकड़ता है तो भाजपा का यह मुद्दा बेअसर साबित हो सकता है । भाजपा ने इस मुद्दे को संभालने में गलती की है क्योंकि शुरू में ही अगर कह दिया जाता कि कथावाचक के साथ गलत किया गया है. सरकार दोषियों को कानूनी रूप से सजा दिलाएगी तो मामला संभल सकता था । सवाल यह भी है कि क्या समाजवादी पार्टी तब इस मुद्दे को छोड़ देती, शायद नहीं । इस मुद्दे ने भाजपा की कमजोरी को एक बार फिर उजागर कर दिया है । पिछले 11 साल से लगातार सत्ता में बैठी पार्टी जमीनी स्तर पर जनता से कटती जा रही है । कांग्रेस वाली  बीमारी  धीरे-धीरे भाजपा  को भी घेर रही है । भाजपा का संगठन बड़ा हो रहा है लेकिन जनता में पकड़ खोता जा रहा है । 

 इस मुद्दे को भाजपा के संगठन ने वैसे नहीं संभाला है जैसे संभालना चाहिए था । उसे पता होना चाहिए कि लगातार दो चुनाव हार चुकी समाजवादी पार्टी उसे सत्ता से हटाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है । समाजवादी पार्टी जानती है कि अगर ये चुनाव भी वो हार गई तो उसके अस्तित्व का सवाल खड़ा हो जायेगा । लोकसभा चुनावों में मिली सफलता से समाजवादी पार्टी को एक नई ऊर्जा मिल गई है और वो भाजपा के खिलाफ पूरा जोर लगाने वाली है । भाजपा की समस्या यह है कि सब कुछ सरकार के भरोसे दिखाई दे रहा है, संगठन काम करता नजर नहीं आ रहा है । भाजपा के लिए संभलने का समय आ गया है ।  

राजेश कुमार पासी

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