राजनीति

राष्ट्रवाद बनाम महा-राष्ट्रद्रोह

लेखक- जयराम दास

देश के छ: राज्‍यों में चुनावी रणभेरी बज चुकी है। चुंकि मुख्यधारा के चार राज्‍यों में मोटे तौर पर भाजपा बनाम कांग्रेस का ही विकल्प है, तो यह सवाल मौजूद है कि आखिर मतदाता किसका समर्थन करें, इस लेखक के नजर में चुनाव के तीन मुख्य मुद्दे इस बार चर्चा में रहना चाहिए वो है राष्ट्रवाद, राष्ट्रवाद और राष्ट्रवाद। हालांकि इसके अलावा भी ढेर सारी भौतिक उपलब्धियां और योजनायें ऐसी है जो जनमत के लिहाज से महत्‍वपूर्ण है लेकिन राष्ट्रवाद तो एक ऐसा मुद्दा है जो जन अस्तित्‍व से जुड़ा हुआ है। और निश्चय ही इसके आगे सारे मुद्दे गौण… नीरज के शब्‍दों में कहूं तो…. जब ना ये बस्ती रहेगी तू कहाँ रह पायेगा।

राष्ट्र नाम के भावनात्‍मकता पर आधारित इस पौराणिक इकाई-जिसे हम भारत के नाम से जानते हैं- को चुनौती है नक्‍सलवाद से, क्षेत्रवाद, जातिवाद, अलगाववाद, आतंकवाद, सम्प्रदायवाद, छद्म-पंथनिरपेक्षता, अल्पसंख्यकवाद आदि विभिन्‍न अवसरवादों से…. कुछ झलकियाँ देखें, नक्‍सलवाद की बात करें।

राष्ट्र नाम के भावनात्‍मकता पर आधारित इस पौराणिक इकाई-जिसे हम भारत के नाम से जानते हैं- को चुनौती है नक्‍सलवाद से, क्षेत्रवाद, जातिवाद, अलगाववाद, आतंकवाद, सम्प्रदायवाद, छद्म-पंथनिरपेक्षता, अल्पसंख्यकवाद आदि विभिन्‍न अवसरवादों से….

देखिये कितना अच्‍छा कर रहे हैं कांग्रेस के लोग? ‘चोर से कहो चोरी कर और साहूकार से कहो जागते रह’….छत्‍तीसगढ़ के आदिवासियों द्वारा शुरू किये अपने प्राण रक्षा के आंदोलन ‘सलवा जुडूम’ को विपक्ष के ही कांग्रेसी नेता द्वारा नेतृत्‍व और दूसरे गुट द्वारा विरोध। यानि चित हुआ नक्‍सलवाद तो सलवा जुडूम को नेतृत्‍व के लिए कांग्रेस का श्रेय, पट्ट हुए आदिवासी तो आप कहो कि हमने तो पहले ही विरोध किया था। और इससे भी मन नहीं भरा तो आंध्रा में जाकर पीडब्‍ल्यूजी से चुनावी समझौता। वाह, कितना प्‍यारा लगता है, मजलूमों-निर्दोषों के खून में सनी कुर्सिंया, करते रहो राजनीति भाई।

न केवल नक्‍सलवाद अपितु देश को तोड़ने वाले कुछ अन्‍य विचारों और घटनाओं का विश्‍लेषण करें। बिहार में आप टेबल पर बैठकर जातियों की सूची बना उसके प्रतिशतता एवं समीकरण के आधार पर चुनावी परिणाम की भविष्यवाणी कर सकते हैं। अभी एक ब्‍लॉग पर एक ‘विद्वान’ लेखक का आलेख पढ़ने को मिला जिसका आशय था कि बिहार में बाढ़ नीतिश कुमार की साजिश थी क्‍योंकि बाढ़ पीड़ित इलाका यादव बहुल है अत: नीतिश ने हिटलर की तरह पानी चेंबर (याद कीजिए गैस चेंबर) का इस्तेमाल कर गोप वंश का सफाया कर दिया। अब आप सोचे…….ऐसे बेहूदे तर्क रखने वाले की मानसिकता कितनी जहरीली होगी? वहाँ पर कांग्रेस की लाश पर पनपे उस लालूवादी भस्मासुर को आप क्‍या कहेंगे। इस तरह की सोच क्‍या किसी भी देशभक्त का हाड़ कंपा देने को काफी नहीं है? उत्‍तरप्रदेश की बात करें एक तरफ दौलत की बेटी मायावती हैं, कितने कसीदे पढ़ा जाय उनके शान में? फिर मुलायम हैं, उनके लिए सिमी से बढ़कर भारत भक्‍त संगठन और कोई नहीं। विस्फोट दर विस्फोट हर आतंकवादी हमले, हर पुलिसिया शहादत के बाद उस कुर्सीभक्‍त की सिमी पर आस्था और मजबूत होती जाती है। अमर रहे बेचारे अबू बशर, जिंदाबाद आजमगढ़। दिल्‍ली को देखें। महान अर्जुन अब जामिया से गिरफ्प्तार आरोपी की पैरवी करवायेंगे… मुशीरूल हसन अब विश्वविद्यालय की गांठ ढीली कर वकीलों की फीस भरेंगे। वाह… कितना प्‍यारा होगा हमारा वह देश…जहाँ किसी विश्वविद्यालय के विद्यार्थी पर लगे हत्‍या, किसी स्कूल के छात्रा पर बलात्‍कार, किसी आफिस क्‍लर्क पर लगे घुसखोरी, आदि सभी तरह के आरोपों का बोझ अब अपनी गाठें ढीली कर संस्थानें उठायेगी। वाह जन्नत बन जायेगा भारत जन्नत और रहने वाले नागरिक ‘स्वर्गवासी’ बन ऐश करेंगे।

अब तो आप किसी भी तरह के अपराध करने से पहले किसी वयस्क शिक्षा केंद्र में प्रवेश ले लें….वकीलों के फीस की झंझट से मुक्ति और बोनस में आपके लिए लाबिंग करने का काम आपके उस्तादों पर, मेरा भारत महान। अफजल को जिंदा रखना हमारा मजहब, उसे भारत रत्न की उपाधि दे दिया जाना उचित ताकि यह शस्‍य श्यामला धरती ‘हरी’ भरी रह सके। आखिर बाबर को अयोध्‍या में प्रतिष्ठित कर ही तो नाम कमाया था हमने सहिष्‍णुता, संवदेनशीलता सौमनस्यता का। अभी तो मात्र तीन टुकड़ा में बटा है देश, आजादी से अब तक। कुछ छोटी-छोटी इकाइयाँ और खड़ी हो जाए कश्मीर टाईप तो झंडा उँचा होता हमारा। उड़ीसा में देखें। बड़े आये थे स्वामी बनने हुह! भले ही पांच लाख लोग जुटे हो आपकी अंतिम यात्रा में, इसको आपकी लोकप्रियता का नमूना मान लिया जाए? तो क्‍या आप लाट साहब हो गये?

ईसाई राज की स्थापना के पुण्‍य कार्य में लगे गोरे भोले-भाले लोगों का विरोध करने का साहस किया आपने? 200 साल तक वे हमें सभ्य बनाने की जी तोड़ कोशिश की, फिर भी आपने भगा दिया था उन्‍हें देश से बाहर। इतनी मिहनत से अर्जित राज-पाट की समाप्ति के बाद भी, बेचारे लगे हुए हैं, मसीही राज की स्थापना में और आपकी इतनी हिमाकत, कि वहाँ हिंदू धर्म की बात करें? कौन बरदाश्त करेगा आपको? पश्चिम से ‘धर्म’ लेकर आने वाले आपको मारेंगे ही और धर्म को अफीम मानने वाले माओवादी उसकी जिम्मेदारी लेंगे, उसको बचायेंगे। चलिये अच्‍छा हुआ अब सीख मिली होगी आपके शिष्यों को। भारत में रहकर भारतीय विचार की बात, आदिवासी बंधुओं के बीच विकास के कार्य? आपकी इतनी हिम्मत?

महाराष्ट्र की बात करें। पिट गये बेचारे परीक्षार्थी फिर महाराष्ट्र में, अरे बेवकूफ तुमने मुबंई को भी भारत का ही अंग समझ लिया था? राज के डंडे से तुम्हारा कलम मुकाबला करता वहाँ पर? रेलवे की परीक्षा दोगे तुम? भुर्ता बना देंगे मार-मार के। अभी तक तुमने पढ़ा था, कि स्वस्थ प्रतिस्पर्धा ही सफलता का मूलमंत्र होता है, जिस दीये में जान होगी वो दिया जल जायगा को ही सच मान लिया था तुमने।

कुछ कुत्‍ते बिल्‍ली हैं और शेष बिल्‍ली टमाटर……… जैसे रिजनिंग के सवालों को तुम हल कर लोगे ढिबरी की रोशनी या लालटेन की विलासिता में। हलाल होने जाती मुर्गी के तरह ट्रेनों में जगह भी पा लोगे, लेकिन मुबंई में? क्‍या सोचते हो राज साहब छोड़ देंगे तुम्हें? और विलासराव जी छोड़ने देंगे तम्हें? कुछ कुत्‍ते बिल्‍ली पाल लो अगर जी गये वापस आकर तो, लेकिन मुगालते मत पालो।

खैर! उपरोक्त जैसी ढेर सारी बिडंबनाओं के लिए केवल कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीतियाँ ही जिम्मेदार है। बिजली, पानी, सड़क, अधोसंरचना, गांव, गरीब, किसान इन सबकी बातें अपनी जगह है। सरकारों ने ढेर सारे विकास कार्य किये भी हैं। इस चुनाव की एक मुख्य बात यह है कि मुख्यधारा के इन चार राज्‍यों में कमोवेश द्विदलीय व्यवस्था जैसी ही है। इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि जहाँ भी भाजपा सत्‍ता में है या जहाँ उसका प्रभाव है वहाँ कोई क्षेत्रीय दुर्भावनायें सर नहीं उठा पायी है। केवल राष्ट्रीय दलों का उन-उन राज्‍यों में प्रभुत्‍व भाजपा की सफलता ही कही जाएगी। तो जब भी अब कहीं भी चुनाव हो केवल राष्ट्रवाद ही पब्‍लिक एजेंडा होनी चाहिए और मतदाताओं के चयन का मानदंड भी शायद यही बातें होंगी और इस मायने में भाजपा अपने प्रतिद्वंद्वी से मीलों आगे हैं।

(लेखक छत्‍तीसगढ़ भाजपा के कार्यसमिति के सदस्य एवं पार्टी के मुखपत्र दीपकमल के संपादक हैं)