मुहिम सें ज्यादा जागरूकता जरूरी

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विकासशील से विकसित राष्ट्र की तरफ अग्रसर भारत अपने शिक्षा व बुनियादी ढाचों में लगातार सुधार करता जा रहा है | यह जरुरी भी है कि भारत का विकास हर क्षेत्र में हो चाहे वह शिक्षा हो या फिर औधोगिक | अगर भारत की शिक्षा के क्षेत्र में हुए विकास पर नजर डाला जाय तो शिक्षा के स्तर में काफी सुधार हुआ है | भारत का साक्षरता दर वर्ष 2001 में 65.38 फीसद था जो बढ़ कर वर्ष 2011 में 74.4 फीसद हो गया ,लेकिन लिंगानुपात में अपेक्षाकृत बृद्धि न होना एक चिंता का विषय हैं | भारत कें अगर लिंगानुपात की बात की जाय तों केरल इकलौता ऐसा राज्य है जिसकी साक्षरता दर व लिंगानुपात दोनों में समान बृद्धि हुई हैं | भारत का लिंगानुपात वर्ष 2011 में 940 हैं अर्थात अभी भी 60 लोग कुआरे रहनें को मजबूर हैं | वही केरल का लिंगानुपात 1024 हैं जो आदर्श स्थिति में है | साधन सम्पन्न हरियाणा व पंजाब दो ऐसे राज्य है जो इस क्षेत्र में काफी फिस्सड्डी साबित हुए हैं क्योंकि इनका स्थान देश में क्रमशः 18 वाँ व 19 वाँ हैं | इसी को ध्यान में रखकर प्रधानमंत्री “नरेंद्र मोदी” नें हरियाणा कें पानीपत में दो योजनओं का शुभारम्भ किया , जिनका नाम हैं – “बेटी बचाओं , बेटी पढाओं ” व “सुकन्या समृद्धि योजना ” |अब तो आनें वाला समय ही बताएगा कि यें दोनों योजनायें कन्या भ्रूण हत्या कों रोकने में कितना कारगर साबित होंगी |

अगर भारत में गिरतें लिंगानुपात पर ध्यान दिया जाय तो यह काफी गंभीर समस्या हैं क्योकिं जब बेटी पैदा नहीं करेगें तों बहू कहां से लाएंगे | ये समस्या केवल हरियाणा व पंजाब की ही नहीं हैं वरन पूरे देश की हैं | अगर इसकें लिए हम अशिक्षा अर्थात कम पढ़े लिखें लोगों को जिम्मेदार मानें तो सरासर गलत होंगा क्योकिं अगर केरल सहीत कुछ राज्यों कों छोड़ दे तों जहां शिक्षा का स्तर अच्छा हैं वहीँ इस बीमारी ने अपना ज्यादा पैर फैलाया हैं | उदाहरण के लिएं अगर दिल्ली और छत्तीसगढ़ दोनों की स्थितियों पर गौर किया जाय तो अंतर साफ नजर आएगा | एक तरफ छत्तीसगढ़ 979 लिंगानुपात के साथ देश में दूसरें स्थान पर हैं तों वही दिल्ली 874 लिंगानुपात कें साथ 16 वें स्थान पर हैं जबकि दोनों कें साक्षरता दर में काफ़ी असमानता हैं |एक तरफ दिल्ली की साक्षरता दर 86.34 फीसद हैं तों वहीँ छत्तीसगढ़ की साक्षरता दर 71 .04 फीसद हैं | दिल्ली देश की राजधानी हैं और वहां पर काफी पढ़े – लिखे लोग निवास करते हैं इतना ही नहीं सभी सरकारी योजनओं का केन्द्र भी सबसे पहले दिल्ली रहती हैं वही छत्तीसगढ़ राज्य में सबसे ज्यादा “जनजातियाँ” क्षेत्र हैं | अतः हम कह सकतें है कि छत्तीसगढ़ में बहुत से ऐसे लोग हैं जों आज भी शिक्षा सें कोसों दूर हैं |इसलिए यह कहा जा सकता है कि इसके लिए अशिक्षा नहीं बल्क़ि शिक्षा ही जिम्मेदार हैं |

अगर क़ानूनी रूप सें देखें तों कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए कानून भी बना लेकिन यह कानून भी इस कुरीति को दूर नहीं कर पाया | मध्यप्रदेश राज्य नें वर्ष 2001 में इसके खिलाफ़ एक कानून बनाया गया और पूरे राज्य में लागू किया गया | इस कानून कें आनें के बाद मध्यप्रदेश की स्थिति और भयावह हो गई हैं क्योकिं जहां वर्ष 2001 में मध्यप्रदेश का लिंगानुपात 932 था वही वर्ष 2011 में घट कर 912 पर आ गया और ताजा रिपोर्ट कें अनुसार अगर यही स्थिति रही तों वर्ष 2021 आते –आते यह घट कर 900 पर आ जाएगा | इस बात सें भी इस कुरीति की भयावहता का अनुमान लगाया जा सकता हैं कि मध्यप्रदेश की राजधानी “भोपाल” की स्थिति इसी प्रदेश का आदिवासी बाहुल्य जिला “ बालाघाट”से भी ख़राब हैं | एक तरफ भोपाल का लिंगानुपात वर्ष 2011 में 920 था तों वहीँ बालाघाट का लिंगानुपात वर्ष 2011 में 967 था | अकेले केवल भोपाल की ही ऐसी स्थिति नहीं हैं बल्क़ि सभी बड़े शहरों की स्थितिं भोपाल जैसी ही हैं |अगर प्रधानमंत्रीजी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की स्थितिं कों देखा जाय तो वर्ष 2011 में लिंगानुपात 913 था जों “बालाघाट” जैसे आदिवासी बाहुल्य शहर से काफ़ी कम हैं |

कल प्रधानमंत्रीजी ने इस समस्या का हल ढूढ़ने के लिए सबसे उपयुक्त राज्य हरियाणा का चुनाव किया क्योंकि हरियाणा व पंजाब दों ऐसे राज्य हैं जों आर्थिक रूप से सुदृढ़ होते हुयें भीं इस समस्या से जूझ रहें हैं |भारत सरकार कें तीन मंत्रालयों नें मिल कर इस योजना को सफल बनानें का बीड़ा उठाया हैं |कन्या भ्रूणहत्या कें अगर कारणों पर ध्यान दिया जाय तों दो तथ्य सामने आतें हैं ,पहला जागरूकता की कमी तों दूसरा दहेज़ प्रथा का बढ़ता चलन |अगर दहेज़ प्रथा पर ध्यान दिया जाय तों यह एक ऐसा अभिशाप हैं जो पंजाब , हरियाणा , उत्तर प्रदेश व बिहार कों अपनें आग़ोश में जकड़ रखा हैं |एक सर्वे कें अनुसार इन सभी राज्यों में आज भी औसतन तीन लाख रुपयें दहेज़ कें रूप में लड़की वालों सें लिया जाता हैं , जों कन्या भ्रूण हत्या का मूल कारण साबित हो रहा हैं | इतना ही नहीं रूढ़िवादिता भी इसका एक कारण हैं , जैसें लड़कें व लड़कियों में भेद |आज भी कुछ लोगों का मानना हैं कि लड़का बुढ़ापे का सहारा होता हैं लेकिन एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 50 सालों में सबसे ज्यादा वृद्धाश्रम भारत में खुलें हैं |आज अगर सभी बेटें “श्रवण कुमार” होते तों सुखी बेटों कें रहतें हुए दुखी माँ – बापों की संख्याओं में इतनी तेज़ी सें बृद्धि नहीं होतीं |

हरियाणा में इस समस्या नें इतना व्यापक रूप ले लिया हैं कि हरियाणा में 70 ऐसें गावों को चिन्हित किया गया हैं जहाँ पर पिछले तीन सालों में एक भी बच्ची ने जन्म नहीं लिया हैं | यें स्थितिं उन लोंगो कें लिये काफी शर्मनाक हैं जो अपने आप को 21 वीं सदीं में रहने वालों में देखतें हैं और इस घिनौने कृत्य को अंजाम देतें हैं | खैर अब लगता है कि सरकार इस समस्या से लड़ने का मन बना चुकीं हैं ,जिसका ताजातरीन उदाहरण कल शुरू की गई दोनों योजनाएं हैं |इन दोनों योजनओं कें लिये प्राथमिकता के तौर पर सबसे पहलें 100 जिलों कों चुना गया हैं | “ बेटी बचाओं , बेटी पढाओं ” योजना के अंतर्गत 96 ऐसें वाहनों कों इन जिलों में भेजा जाएगा जों विभिन्न माध्यमों के द्वारा लोगों कों जागरूक करेगें , वहीँ “ सुकन्या समृद्धि योजना ” में लड़कियों की शादियों में आने वाली परेशानियों को ध्यान में रखा गया हैं |इस योजना के अन्तरगत 10 साल से कम उम्र की लडकियों का बैंक खाता खोला जाएगा जिसमें एक हजार से डेढ़ लाख रुपयें तक जमा किया जा सकता हैं | इन पैसों पर कोई भी टैक्स नहीं लगेगा बल्क़ि जमा पैसों पर 9.1 फीसद की दर सें ब्याज मिलेगा | जब लड़कियों की शादी करनी होगीं तों लड़की कें 21वर्ष की उम्र में इसे बैंक सें निकाला जा सकता हैं |इन योजनाओं के द्वारा सरकार नें इस क्षेत्र में एक सकारात्मक कदम उठाया हैं लेकिन यें काफ़ी नहीं होंगा | सरकार कें साथ हमें भी कदम सें कदम मिला कर चलना होगा ताकि हमारा आनें वाला कल अच्छा हों |

नीतेश राय 

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