विविधा

हमारी शिक्षा नीति में सुधार की जरूरत

primary schoolअभिषेक कांत पांडेय

किसी देश के विकास का अंदाजा लगाना हो तो उस देश की प्राइमरी शिक्षा व्यवस्था देखकर आप समझ सकते हैं कि इस देश का नींव, क्या चौतरफा और वास्तविक विकास प्राप्त कर सकता है। भारत के कई राज्यों में प्राइमरी शिक्षा व्यवस्था की हालत दयनीय है। बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश,
उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में शिक्षा देने के लिए बुनयादी चीजों जैसे
स्कूल की छत, टायलेट, ब्लैक बोर्ड, बैठने के लिए बेंच जैसे आधारभूत ढांचा ही हजारों प्राथमिक विद्यालयों में नदारद है, इसके आलावा पढ़ाने वाले
शिक्षकों की कमी के कारण निशुल्क अनिवार्य शिक्षा अधिकार कानून 2009 के
मनसूबे पर पानी फेरने पर राज्य सरकार आमादा है। बिहार और उत्तर प्रदेश के
सरकारी प्राथमिक स्कूल की खराब हालत से अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं
कि प्राइवेट अंग्रेजी स्कूलों की बाढ़ आ गई और सरकारी स्कूलों में पढ़ाई
व्यवस्था चौपट होने के कारण अंग्रेजी माध्यम के स्कूल ग्रामीण क्षेत्रों
में तेजी से पनप रहे हैं।राज्य सरकार द्वारा शिक्षा नीति का कार्यान्वयन
जमीनी स्तर पर नहीं किया जा रहा है। मजेदार बात यह है कि शिक्षा अधिकार
कानून के तहत गुणवत्तायुक्त शिक्षा के लिए कक्षा 1 से लेकर 8 तक के
विद्यालयों में शिक्षक पात्रता परीक्षा उतीर्ण शिक्षक ही सरकारी स्कूलों
में पढ़ानें के योग्य हो सकते हैं लेकिन चौकाने वाले आंकड़े यह है, इस
परीक्षा में केवल लगभग पांच फीसदी उतीर्ण प्रतिशत ही रहा है। यह दर्शाता
है कि बीएड, डीएड, बीटीसी नाम से प्रशिक्षित टीचर की गुणवत्ता बहुत दोयम
दर्जे की है। जिस तरह से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान में
प्राइवेट कालेजों में केवल डिग्री दी जाती है, कुशलता नहीं। इस व्यवस्था
में अमूलचूल परिवर्तन करने की जरूरत है। वहीं अध्यापक पात्रता परीक्षा न
देने के लिए न्यायलय तक मामला गया और राज्य सरकार वोट बैंक के लिए
राजनीति कर रही है। उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्र की भर्ती के लिए
वर्तमान सरकार वोट बैंक की राजनीति के तहत पात्रता परीक्षा से छूट देने
के लिए शिक्षा अधिकार कानून को चुनौती न्यायालय में दिया है। जबकि देश मे
आरटीई एक्ट के प्रावधानों में शिक्षकों की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं
किया जाना ही इस कानून का मूल बातें है। उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के
शासनकाल में ही प्राथमिक शिक्षा की हालत बदहाल रही है। वहीं मध्य प्रदेश
में वर्तमान भाजपा सरकार भी संविदा शिक्षक भर्ती मामले में गलत तरीके से
शिक्षकों की नियुक्ति घोटाला सामने आया है जिसमें अभी भी कार्यवाई चल रही
है। हरियाणा मे शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में घोटाले के आरोपी पूर्व
मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला और उनके पुत्र अजय चौटाला को जेल हुई है।
सरकारी शिक्षा की दुरदशा के लिए सरकारें ज्यादा दोषी हैं। देखा जाए तो
जिस तरह से उत्तर प्रदेश में मायावती के शासनकाल में माध्यमिक शिक्षा चयन
बोर्ड के अध्यक्ष पर भी भर्ती में पक्षपात करने का मामला भी सामने आ चुका
है। इस तरह से जानबूझकर सरकारी शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया जाता है कारण
साफ है कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने
में सरकारें नाकमयाब रहती है तब वोट बैंक के लिए नकल जैसी व्यवस्था पर
बच्चों को पास करने की रणनीति पर काम करती हैं। सरकारी शिक्षा दोयम दर्जे
की दी जाने से सरकार अपनी नीतियों को अपने फायदे के लिए शिक्षामाफिया को
अपने प्राइवेट शिक्षा संस्थानों को नकल व डिग्री बांटने की दुकान के रूप
में पैसों की उगाही करती है जाहिर इसमें सहयोग करने वाले नेताओं को उनका
हिस्सा मिलता रहता है। वहीं अंग्रेजी माध्यम स्कूल इस तरह की राज्य सरकार
की नीति का फायदा उठाती है और अधिकांश शिक्षामाफिया का पैसा इन्हीं
अंग्रेजी स्कूलों मे लगा होता है। इस तरह सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति के
चलते हमारे देश में दो तरह की शिक्षा का पालन—पोषण होता है— एक प्रकार की
दोयम दर्जे की सरकारी प्राथमिक विद्यालयों की शिक्षा और दूसरी ओर
अंग्रेजी माध्यम की गुणवत्तायुक्त शिक्षा का दावा करने वाले निजी संस्थान
है। देखा जाए तो प्राइवेट स्कूल की इंग्लिश मीडियम की शिक्षा गरीब लोगों
के लिए यह गुणवत्तायुक्त शिक्षा से वे वंचित रह जाते हैं। जाहिर है कि
गरीबों के हिस्से में उपेक्षित सरकारी स्कूल की शिक्षा ही आती है।
वर्तमान में अंग्रेजी भाषा का महत्व है इसीलिए आजकल अंग्रेजी माध्यम में
शिक्षा का चलन तेजी से बढ़ रहा है। इधर कान्वेंट और पब्लिक स्कूल के नाम
पर तेजी से प्राइवेट स्कूल खुल रहे हैं जाहिर है कि हिंदी मीडियम स्कूल
में शिक्षा का गिरता स्तर इसके लिए जिम्मेदार है, वहीं सरकार की ढुलमुल
नीति इसके लिए सबसे अधिक दोषी है।

हिंदी भाषी राज्यों में अंग्रेजी माध्यम के पब्लिक स्कूल की बाढ़ है। कुछ
गिनती के अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों को छोड़ दे तो बाकी सभी स्कूल में
आंग्रेजी माध्यम में पढ़ने वाले ऐसे छात्र कक्षा आठ तक उनका ज्ञान सीमित
ही रह जाता है कारण यह है कि अंग्रेजी माध्यम की किताबें स्व:अध्ययन में
बाधा उत्पन्न करती है। रिसर्च भी बताते हैं कि प्राइमरी स्तर में अपनी
मातृभाषा में पढ़ने से बच्चे बहुत जल्दी सीखते हैं। यही कारण है कि हिंदी
भाषा या जिनकी मातृभाषा है वह अंग्रेजी माध्यम के छात्रों के मुकाबले में
तेजी से अपने वातारण से सीखते हैं, इसमें सहायक उनकी मातृभाषा के शब्द
होते हैं जो उनके शुरूआती दौर में सीखने की क्षमता में तेजी से विकास
करता है। यहां इस बात का अफसोस है कि भारत में अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव
के कारण प्राइमरी स्तर में बच्चों को आग्रेजी माध्यम में शिक्षा दी जाने
का चलन जोरों पर है जिस कारण से बच्चे ट्रासलेशन पद्धति में शिक्षा
ग्रहण कर रहे हैं।

सत्तर के दशक में मातृभाषा में शिक्षा देने वाले शुदृध देशी स्कूलों ने
होनहार प्रतिभाएं दी। आजकल तो पब्लिक स्कूलों की अंग्रेजी माध्यम में
शिक्षा की तकनीक हिंदी—अंग्रेजी खिचड़ी ज्ञान से की जा सकती है। इस तरह
प्राइमरी से जूनियर स्तर तक बच्चा कन्फूजिया ज्ञान ही हासिल कर पाता है।
आलम यह है कि अंग्रजी माध्यम में विज्ञान, भूगोल, इतिहास आदि के
प्रश्नोत्तर को अंग्रेजी भाषा में रटने की प्रवृति ही बढ़ती है जिससे
बच्चों में मैलिकता और रचनात्मकता का अभाव हो जाता है जबकि 6 से 14 साल
की उम्र में ही बच्चों में रचनात्मकता का विकास होता है, यहां इनकी
रचनात्मकता अंग्रेजी माध्यम की वजह से प्रश्नों के उत्तर देते समय
अभिव्यक्ति सार्थक नहीं हो पाती है। भारतीय परिवेश में हिंदी भाषा या
मातृभषा में शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र ज्ञान के स्तर से अच्छे होते
कारण स्पष्ट हैं कि कक्षा में रूचि पूरे मनयोग से लेते हैं और इसके बाद
घर पर स्वअध्ययन में समय देते हैं। लेकिन मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करने
वाले बच्चों के साथ समस्या अंग्रेजी भाषा की शिक्षा में होती है जिस पर
अगर ध्यान दिया जाए तो हिंदी माध्यम के छात्र अंग्रेजी के मौलिक ज्ञान को
भी प्राप्त कर सकते हैं। इस दिशा पर सरकारें कार्य नहीं कर रही है।
अंग्रेजी स्पोकेन और उच्चारण संबधित ज्ञान के लिए विषय के रूप में अलग से
अब अतिरिक्त कक्षाएं नियमित चलायी जा सकती है। देखा जाए तो भारतीय शिक्षा
पद्धति संक्रमणकाल से गुजर रही हैं। वह दिन दूर नहीं की आने वाले समय में
हम हिंगिलिश ज्ञान वाले युवा की एक नई पीढ़ी सामने आएगी जो अपनी मातृभाषा
को हेय दृष्टि से देखेगी और जो समाज या देश अपनी भाषा व संस्कृति खो देगी
तो इसमें कोई शक नहीं है कि हम अपनी पहचान और एकता को खो बैठेंगे, जो
हमारे हजारों सालों की संस्कृति की देन है। कहा जाए कि विश्व का विकास
भारत के विकास में छिपा है और भारत का विकास भारत में सही मूल्यों वाली
शिक्षा पद्धति को अपनाकर कर सकताह है। निसंदेह हम युग निर्माता देश है
इसके लिए हमारी सही शिक्षा नीति होनी चाहिए।