नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी
हकीकत में हम देखे तो यह कह सकते व इसकी तुलना कर सकते है कि एक स्त्री के जन्म से लेकर उच्चतम स्तर तक पहुंचने की गाथा है नवरात्रि जिसे हम इस प्रकार समझ सकते हैं –
1- कन्या पुत्री- स्त्री का सबसे पहला रूप होता है पुत्री का . इस रूप में वह शस्त्रहीन है और वह किसी वाहन पर नहीं बैठी है। उसके दो बाहु ही हैं , शैलपुत्री !
2- शिक्षा – द्वितीय रूप होता है एक कुमारिका का जब वह शिक्षा प्रारम्भ करती है . इस रूप में भी वह कोई अस्त्र धारण नहीं करती और न ही सिंह पर बैठी दिखती है । उसके दो ही बाहु हैं और वह कहलाती है ब्रम्हचारिणी !
3- विवाह बंधन – तृतीय रूप में वह विवाहित स्त्री बनती है जब वह चन्द्र समान अपने पति को ग्रहण करती है व अष्टभुजाधारी बन जाती है जिसकी मदद से एक ही समय मे अनेक कार्य करने की क्षमता प्राप्त कर लेती है । और वह कहलाती है चन्द्रघण्टा !
4- सामर्थ – चतुर्थ रूप में वह विवाहित स्त्री एक माता बनने को तैयार है और कुष्म अर्थात ब्रम्हांड विश्व जननी ! कुष्मांडा !
5 – मातृत्व – पंचम रूप में वह वास्तव में माता बन जाती है और कहलाती है स्कंदमाता !
6 – गृहस्थी – छठे रूप में उसकी जीवन संघर्ष यात्रा प्रारंभ होती है जिसमें वह लड़ती है अंदर व बाहर की अनेकों नकारात्मक महिषासुर समान शक्तियों से व कहलाती है महिषासुर मर्दिनी , कात्यायिनी !
7- संघर्ष – सातवें रूप में वह अपने परिवार की रक्षा व कल्याण हेतु अनेकों शक्तियों से भीषण युद्ध कर विजयी हो उच्च स्थान प्राप्त करती है । उसका रूप विकराल है व हाथों में खड्ग है ।जैसे वह नकारात्मकता का काल बन खड़ी है , कालरात्रि !
8 – तपस्वी – आठवे रूप में हम देखते है कि स्त्री कठोर तप कर इतनी महान व तेजस्वी बन जाती है कि वह अन्य सभी के लिए ओज का स्रोत बन कर कहलाती है महागौरी ।
9 – कल्याणकारी – अंत में नौवें रूप में हम पाते हैं कि शक्तिमान स्त्री पूरे समाज को अपने संग ले चलने की शक्तियां प्राप्त कर उन्हें जन कल्याण के लिए उपयोग में लाती है । इस रूप में वह मंगल चिन्ह धारण किये है तो खड्ग भी लिए है । साथ ही अब वह शक्तिस्वरूप सिंह वाहन पर विराजमान है सर्वोच्च , सर्वशक्तिमान कल्याणकारी सिद्धि प्रदान करने में सक्षम , सिद्धिदात्री !
इन नौ रूपों में स्त्री की सम्पूर्ण जीवन यात्रा का बोध हमें होता दीखता है ।
डॉ.नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी