पंकज जायसवाल
अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर के दौरे के बाद असम में अपने सम्बोधन के दौरान भावुक हो गये थे. प्रधानमंत्री इकलौते प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने पूर्वोत्तर के विकास के लिए काफी मेहनत की है. उस मेहनत का एक परिणाम है पूर्वोत्तर के अशांत क्षेत्र बोडोलैंड में आई स्थायी शांति। आज अशांत होती दुनिया में बोडोलैंड शांति का एक मॉडल और उम्मीद की किरण है। आज जब पूरी दुनिया चाहे पड़ोसी म्यांमार, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और अफगानिस्तान हो या दूरस्थ सूडान, यमन, इज़राइल–फिलिस्तीन सत्ता और राजनीतिक व्यवस्थाओं से असंतोष के चलते युवाओं और छात्रों में उग्रवाद फैल रहा है, जब दुनिया बुद्ध, गांधी और नेल्सन मंडेला के मार्ग से विमुख होकर हिंसा और युद्ध की आग में झुलस रही है, ऐसे समय में भारत के पूर्वोत्तर का बोडोलैंड दुनिया में शांति स्थापना का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है।
बोडोलैंड का इतिहास लंबे समय तक उग्रवाद, जातीय संघर्ष और अविश्वास से भरा रहा। 1980 और 1990 के दशक में शुरू हुए आंदोलन ने धीरे-धीरे हिंसक रूप ले लिया। कई सशस्त्र संगठन बने, हजारों निर्दोष मारे गए, लाखों लोग विस्थापित हुए और विकास ठप हो गया। 2012 के जातीय दंगे इसकी त्रासदी की चरम सीमा थे। दशकों तक हिंसा और रक्तपात की छाया में जीने के बाद यह क्षेत्र आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा और प्रमोद बोरो के साझा प्रयासों से शांति और विकास का प्रतीक बन चुका है। यह बदलाव किसी एक कारक का परिणाम नहीं बल्कि दूर दृष्टि, राजनीतिक इच्छाशक्ति, केंद्रीय, राज्य और स्थानीय नेतृत्व के सामूहिक प्रयासों का नतीजा है। प्रधानमंत्री मोदी का पूर्वोत्तर के प्रति प्रेम और आशीर्वाद, अमित शाह का दृढ़ क्रियान्वयन, हिमंता बिस्वा सरमा का सक्रिय सहयोग और प्रमोद बोरो का अहिंसा में विश्वास और समर्पण मिलकर 2020 के बोडो एकॉर्ड के माध्यम से इस स्थायी शांति की आधारशिला बने। 27 जनवरी 2020 को भारत सरकार, असम सरकार, नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB), ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन और यूनाइटेड बोडो पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन के बीच शांति समझौते पर किया गया हस्ताक्षर बोडोलैंड में शांति युग का प्रस्तावना बना।
इस पृष्ठभूमि में फादर ऑफ बोडोज़ कहे जाने वाले उपेंद्र ब्रह्मा ने जीवनपर्यंत शांति स्थापना के लिए संघर्ष किया। उनकी मृत्यु के बाद उनके सपनों को साकार करने के लिए ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष के रूप में प्रमोद बोरो एक नई उम्मीद बनकर सामने आए। उनका विश्वास था कि गांधी की अहिंसा और संवाद ही विवाद का स्थायी समाधान हैं। सहजीवन और सह-अस्तित्व उनका मूलमंत्र था। छात्र राजनीति से निकलकर वे यूनाइटेड पीपल्स पार्टी लिबरल (UPPL) के अध्यक्ष और फिर बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (BTR) के मुख्य कार्यकारी सदस्य बने। बोरो ने अपने पाँच वर्षों के शासनकाल से यह सिद्ध कर दिया कि बंदूक और बारूद नहीं, बल्कि संवाद और समावेश ही स्थायी समाधान हैं।
जनवरी 2020 में केंद्र, असम सरकार और बोडो संगठनों के बीच हुआ ऐतिहासिक शांति समझौता निर्णायक मोड़ साबित हुआ जिसमें अबसु समेत कई संगठनों को शांति के एक मेज पर लाया गया। इसमें विशेष प्रशासनिक दर्जा, वित्तीय पैकेज और पुनर्वास योजनाएँ शामिल थीं। 2025 तक अधिकांश प्रावधान लागू हो चुके हैं।
इस पूरी प्रक्रिया में प्रमोद बोरो ने ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष की हैसियत से शांति के ज़मीनी सूत्रधार की भूमिका निभाई। उन्होंने उग्रवादी गुटों से संवाद कर उन्हें मुख्यधारा में लाया, स्थानीय प्रशासन और बीटीआर के बीच तालमेल बैठाया और समाज में विश्वास बहाली सुनिश्चित की। बकौल गृह मंत्री अमित शाह का भी कहना है कि ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन जिसे अबसु कहते हैं, के बिना बोडो समझौता संभव नहीं होता। अबसु ने बोडोलैंड में शांति और विकास स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
गृह मंत्री अमित शाह इस पूरी प्रक्रिया की धुरी रहे। उन्होंने सिर्फ समझौते को कागज़ तक सीमित नहीं रखा बल्कि इसकी सफलता की व्यक्तिगत निगरानी की। विशेष आर्थिक पैकेज, पुनर्वास और सुरक्षा उपायों को तत्काल मंजूरी दी और लगातार स्थानीय संगठनों से संवाद बनाए रखा। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने केंद्र और स्थानीय संगठनों के बीच पुल का काम किया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि यदि राज्य सरकार गंभीरता और संवेदनशीलता से काम करे तो केंद्र की नीतियाँ धरातल पर उतर सकती हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बोडोलैंड को केवल सुरक्षा या कानून–व्यवस्था का मुद्दा न मानकर विकास और सशक्तिकरण का अवसर माना। बोरो के शब्दों में, “जब मैंने प्रधानमंत्री से कहा कि पूर्वोत्तर को बस आपका प्यार चाहिए, तबसे उनके पूर्वोत्तर दौरे लगातार बढ़े और विकास योजनाएँ तेज़ हुईं।” मोदी सरकार ने सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और आधारभूत ढाँचे की योजनाओं से स्पष्ट संदेश दिया कि शांति तभी स्थायी होगी जब लोग विकास का अनुभव करेंगे।
बोडो एकॉर्ड २०२० के बाद बीटीआर सरकार और उसके चीफ प्रमोद बोरो के नेतृत्व ने युवाओं को हिंसा से विमुख कर शिक्षा और रोजगार की ओर मोड़ा, इंटरनेशनल नॉलेज फेस्टिवल कराये, गांव गांव फूटबाल की टीम बनवायी उनके टूर्नामेंट कराये, तीन तीन डूरंड कप का आयोजन करवाये, स्किल ट्रेनिंग के साथ साथ जॉब फेयर करवाए ताकि युवाओं का फोकस हिंसा से पूरी तरह हट जाए और वो रचनात्मकता की तरफ मुड़े. पुराने सशस्त्र आंदोलन करने वाले लोगों का पुनर्वास सुनिश्चित किया ताकि वे पुनः हिंसा की तरफ ना मुड़ें. सामाजिक मेल-मिलाप कार्यक्रमों की शुरुआत की और विकास योजनाओं को प्राथमिकता दी। बोडोलैंड में सदियों से रह रहे २६ कम्युनिटी की लोकतान्त्रिक भागीदारी मजबूत कर उनके मांग पत्रों को कलमबद्ध कर बोडोलैंड कम्युनिटी विज़न डॉक्यूमेंट तैयार किया जिसे बनाने में उन कम्युनिटी की ही भागीदारी रही ने क्षेत्र में समावेशन और भागीदारी की नींव रखी, इससे लोगों में लोकतंत्र की भावना और मजबूत हुई. दशकों बाद लोगों ने पूरे क्षेत्र में लगातार पांच साल तह शांति का अनुभव किया, इस दौरान बोडोलैंड में एक भी हिंसा,उपद्रव, बंद या हड़ताल नहीं हुआ. २०२० के बाद का यह काल दशकों बाद एक बड़ा अचीवमेन्ट था.
2020 के बाद हुए पहले चुनाव में जनता ने शांति की कोशिशों के इनाम के रूप में यूपीपीएल को सत्ता सौंपी। यूपीपीएल आज एनडीए की साझेदार है, उसके सांसद केंद्र को समर्थन दे रहे हैं और उसके नेता असम सरकार में मंत्री हैं। २०२५ में फिर चुनाव हो रहें हैं, २००५ से २०२० तक बोडोलैंड की सत्ता में रही बोडोलैंड पीपल फ्रंट पार्टी अपने नेता हग्रामा के नेतृत्व में तो यूपीपीएल प्रमोद बोरो के नेतृत्व में और बीजेपी हिमंता बिस्वा सरमा के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही है. इस चुनाव में यूपीपीएल NDA में पार्टनर होने के बाद भी बीजेपी और यूपीपीएल स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ रहें हैं तीसरी पार्टी बीपीएफ है. चुनावी माहौल में जनता का नृत्य–संगीत से भरा उत्साह बताता है कि लोकतंत्र की जड़ें गहरी हो चुकी हैं।
आज प्रधानमंत्री मोदी के विज़न, अमित शाह की निर्णयन कुशलता, निर्देशन और उसे धरातल पर लाने की क्षमता, हिमंता बिस्वा सरमा का सरंक्षण प्रमोद बोरो का लगन मेहनत और सबके साथ कदमताल ने बोडोलैंड को दुनिया के लिए शांति का मॉडल बना दिया है. आज जब दुनिया के कई हिस्से युद्ध, आतंक और हिंसा की चपेट में हैं वहां बोडोलैंड का अनुभव बताता है कि अहिंसा, सही नेतृत्व, राजनीतिक इच्छाशक्ति, युवाओं को रचनात्मक दिशा और विकास आधारित नीतियाँ मिलकर किसी भी हिंसाग्रस्त क्षेत्र को शांति में बदल सकती हैं। आज बोडोलैंड केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए शांति का एक मॉडल और उम्मीद की किरण है।
गांधी और नेल्सन मंडेला के बाद बोडोलैंड का यह सफर दुनिया को नया रास्ता दिखाता है। इसलिए यह कहना अनुचित नहीं होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा और प्रमोद बोरो के संयुक्त प्रयासों से स्थापित इस स्थायी शांति को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाना चाहिए।
पंकज जायसवाल