पी. के. रथ को सजा के बदले संरक्षण

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

पिछले दिनों प्रिण्ट एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने एक खबर खूब बढाचढाकर प्रकाशित एवं प्रसारित किया गया कि सुकना भूमि घोटाले में सैन्य कोर्ट मार्शल ने थल सेना के पूर्व उप प्रमुख मनोनीत लेफ्टिनेंट जनरल पी. के. रथ को दोषी करार देकर कठोर दण्ड से दण्डित किया है। जबकि सच्चाई यह है कि पी. के. रथ के प्रति कोर्ट मार्शल की कार्यवाही में अत्यधिक नरम रुख अपनाया गया है। जब एक बार सेना का इतना बड़ा अधिकारी भ्रष्ट आचरण के लिये दोषी ठहराया जा चुका है, तो सर्वप्रथम तो सुप्रीम कोर्ट के पूर्ववर्ती निर्णयों के अनुसार ऐसे भ्रष्ट अपराधी को कम से कम सेवा से बर्खास्त किये जाने का दण्ढ विभाग की ओर से दिया जाना चाहिये था और भ्रष्टाचार के मामले में दोषी पाये जाने के कारण उसे जेल की हवा खिलाई जानी चाहिये थी। इसके उपरान्त भी मीडिया बार-बार लिख रहा है कि सेना के इतने बड़े अफसर को इतनी बड़ी सजा से दण्डित करके कोर्ट मार्शल के तहत ऐतिहासिक निर्णय सुनाया गया है। मीडिया का इस प्रकार का रुख भी भ्रष्टाचार को बढावा दे रहा है। जो सजा नहीं, बल्कि संरक्षण देने के समान है।

सवाल ये नहीं है कि अपराधी कितने बड़े पद पर पदासीन है, बल्कि सवाल ये होना चाहिये कि किस लोक सेवक का क्या कर्त्तव्य था और उसने क्या अपराध किया है। यदि कोई लोक सेवक उच्च पद पर पदासीन है और फिर भी वह भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाता है तो ऐसे लोक सेवकों के विरुद्ध तो कठोरतम सजा का प्रावधान होना चाहिये।

33 कोर के पूर्व कमांडर को पश्चिम बंगाल के सुकना सैन्य केंद्र से लगे भूखंड पर एक शिक्षण संस्थान बनाने के लिए निजी रियल इस्टेट व्यापारी को ‘अनापत्ति प्रमाणपत्र’ जारी कर दिया और इसकी सूचना अपने उच्च अधिकारियों तक को नहीं दी। सीधी और साफ बात है कि कई करोड़ की कीमत की जमीन पर निजी शिक्षण संस्थान (जो इन दिनों शिक्षा के बजाया व्यापार के केन्द्र बन चुके हैं) के उपयोग हेतु जारी किया गया ‘‘अनापत्ति प्रमाण-पत्र’’ देश सेवा के उद्देश्य से तो जारी नहीं किया गया होगा। निश्चय ही इसके एवज में भारी भरकम राशी का रथ को गैर-कानूनी तरीके से भुगतान किया गया होगा।

ऐसे अपराधी के प्रति और वो भी सेना के इतने उच्च पद पर पदस्थ अफसर के प्रति किसी भी प्रकार की नरमी बरते जाने का तात्पर्य राष्ट्रद्रोह से कम अपराध नहीं है। इसके उपरान्त भी मात्र सेवा में दो वर्ष की वरिष्ठता कम कर देने की सजा को कठोर सजा बतलाना आम लोगों और पाठकों को मूर्ख बनाने के सिवा कुछ भी नहीं है।

अत: बहुत जरूरी है कि कानून के राज एवं इंसाफ में विश्वास रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को देश के राष्ट्रपति, प्रधाममन्त्री, विधिमन्त्री और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग करके अपराधी रथ को सेना से बर्खास्त किये जाने एवं कारावास की सजा दिये जाने की मांग करनी चाहिये।

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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

2 COMMENTS

  1. आदरणीय सुनील पटेल जी आपने टिप्पणी देकर लिखने को सार्थक किया, आपका आभार.

    ऐसे विषयों पर अधिकतम चर्चा होनी चाहिए, लेकिन दुख है की प्रवक्ता पर अधिकतर साम्प्रदायिक और धर्म से जुड़े मामले ही बहस का आधार होते है. कांग्रेस का विरोध, आर एस एस का समर्थन, हिंदूवादी ताकतों का गुणगान करना अनेक साथियों को अधिक प्रिय लगता है.

    मुझे नहीं लगता कि इन विषयों पर बहस या चर्चा से देश या समाज का उतना भला होगा जितना समझा जाता है. फिर भी हर एक को अपना विषय और टेस्ट चुनने का हक है.

    मेरा सभी मित्रों और अग्रजों से आग्रह है कि सकारात्मक सुधारों, सरकार, प्रशासन और शक्ति संपन्न लोगों की मनमानियों के विरुध्द एकजुट आवाज़ उठनी चाहिए.

  2. डॉ. मीना साहब बिलकुल सही कह रहे है की पी. के. रथ की कोर्ट मार्शल की कार्यवाही में अत्यधिक नरम रुख अपनाया गया है।
    ………… मात्र सेवा में दो वर्ष की वरिष्ठता कम कर देने की सजा को कठोर सजा बतलाना आम लोगों और पाठकों को मूर्ख बनाने के सिवा कुछ भी नहीं.

    सेना को इसे राष्ट्र द्रोश मानकर वास्तव में कठोरतम से कठोरतम सजा देनी चहिये थी. आज भी सेना का नाम इज्जत से लिए जाता है. सच है इस देश में रोटी चोर को तो सजा मिलेगी किन्तु बड़े चोरो का कुछ नहीं होगा क्योंकि उनका मूल मन्त्र होता है “लूटो और बांटो”.

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