माँ की ममता माणिक-मुक्ता

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मन-मंजूषा में मधुरिम सी, माँ की ममता माणिक-मुक्ता।
मंज़िल तक मुझको पहुँचाती,अक्षय-निधि सी उसकी शिक्षा।।
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माँ प्रभात की ज्योति-किरण थी,किया तमस को हमसे दूर।
त्यागीं अपनी सुख-सुविधाएँ, मुझको प्यार दिया भरपूर ।।
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वरद-हस्त मुझ पर रहता है, ईश्वर सा उसका है स्वरूप।
मुझसे तो वह दूर नहीं है , मैं तो हूँ उसका ही रूप ।।
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मिली चेतना मुझको उस से, स्वाभिमान का पाठ पढ़ाया।
है व्यक्तित्व सँवारा जिसने , जीवन जीना मुझे सिखाया।।
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सुधियों की सीपी मे नित ही,जिसकी छवि मोती सी भायी।
जीवन के झंझावातों में , जिसने नैया पार लगायी ।।
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जननी मन में रची बसी है , उसने ही ये सृष्टि रचाई ।
श्रद्धा-सुमन समर्पित उसको , जिसने जीवन-ज्योति जगाई।।
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भाव-भूमि में सदा विराजे , जिसकी प्रतिमा मुस्काई सी ।
तन पुलकित मन प्रमुदित करतीं,माँ की सुधियाँ पुरवाई सी।।
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शकुन्तला बहादुर

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शकुन्तला बहादुर
भारत में उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मी शकुन्तला बहादुर लखनऊ विश्वविद्यालय तथा उसके महिला परास्नातक महाविद्यालय में ३७वर्षों तक संस्कृतप्रवक्ता,विभागाध्यक्षा रहकर प्राचार्या पद से अवकाशप्राप्त । इसी बीच जर्मनी के ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय में जर्मन एकेडेमिक एक्सचेंज सर्विस की फ़ेलोशिप पर जर्मनी में दो वर्षों तक शोधकार्य एवं वहीं हिन्दी,संस्कृत का शिक्षण भी। यूरोप एवं अमेरिका की साहित्यिक गोष्ठियों में प्रतिभागिता । अभी तक दो काव्य कृतियाँ, तीन गद्य की( ललित निबन्ध, संस्मरण)पुस्तकें प्रकाशित। भारत एवं अमेरिका की विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएँ एवं लेख प्रकाशित । दोनों देशों की प्रमुख हिन्दी एवं संस्कृत की संस्थाओं से सम्बद्ध । सम्प्रति विगत १८ वर्षों से कैलिफ़ोर्निया में निवास ।

2 COMMENTS

  1. “भाव-भूमि में सदा विराजे , जिसकी प्रतिमा मुस्काई सी ।
    तन पुलकित मन प्रमुदित करतीं,माँ की सुधियाँ पुरवाई सी।।”
    – अत्यंत उच्च-स्तरीय साहित्यिक रचना जो हृदय को छू लेती है. माँ एवंं लेखिका दोनो को नमन.

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