मोहन सरकार के एक वर्ष 

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कसौटी में परखने की जल्दी क्या है 

मनोज कुमार 

मोहन सरकार को अभी एक वर्ष ही हुए हैं और राजनीतिक समीक्षक उन्हें कसौटी में परखने के लिए बेताब हैं। यह जाने बिना कि मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव की दूरदर्शिता और राज्य के समग्र विकास के लिए उनका रोड़मेप क्या हैं। मोहन सरकार ने एक वर्ष के अल्प कार्यकाल में उन्होंने जो फैसले किए, वह बानगी है। आहिस्ता आहिस्ता एक नए मध्य प्रदेश की सूरत आकार लेगी। कसौटी में मोहन सरकार को जरूर परखिए लेकिन धीरज के साथ। 

उल्लेखनीय है कि 2005 में जब शिवराजसिंह चौहान मुख्यमंत्री बने तब उन्हें टाइम गैप अरेजमेंट कहा गया लेकिन उसके बाद राजनीतिक समीक्षकों की बोलती बंद हो गई। अब डॉक्टर मोहन यादव को लेकर भी राजनीतिक गलियारों में यही भाव बना हुआ है। लोग यह भूल जाते हैं कि स्वयं मोहन यादव ने कभी ख़ुद को मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल नहीं किया लेकिन भाजपा आलाकमान ने उनका चयन किया तो निश्चित ही उनके भीतर के नेतृत्व और प्रशासनिक गुणों को देखा और समझा होगा। एक वर्ष के कार्यकाल में प्रदेश और पार्टी आलाकमान की कसौटी पर खरे उतरते दिख रहे हैं। विशाल प्रदेश, विविधता और हर क्षेत्र की चुनौतियों के बीच वे कुछ नया करने की कोशिश कर रहे हैं।

डॉक्टर मोहन यादव उच्च शिक्षित हैं और उनका अपना विज़न है। वे ट्रेडिशनल और लोक लुभावन योजनाओं से अलग हट कर समय की जरूरत के अनुरूप फैसले लेते हैं। यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि उन्हें यह भरोसा हो जाए कि सौंपे गए कार्य को पूरा करने की क्षमता है तो उन्हें फ्री हैंड देते हैं। यह बात इसलिए कह रहा हूँ कि जब मैं विक्रमादित्य शोध पीठ से जुड़ा था और प्रोग्राम के सिलसिले में कई बार निदेशक तिवारी के साथ जाना हुआ। तब उनके विजन का पता चला। विक्रमादित्य को लेकर डॉ यादव शुरू से ही संवेदनशील रहे हैं और उन्होंने अपना शासकीय आवास को शोध पीठ के लिए दे दिया। आज उज्जैन में शोध पीठ विशाल भवन में हैं । तब वे उच्च शिक्षा मंत्री थे । यह प्रसंग इसलिए कि मोहन यादव को समझने में आसानी हो। 

अखबारी साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि पार्टी की मीटिंग में अंतिम पंक्ति में बैठ कर कुछ नोट्स तैयार कर रहा था। एकाएक आलाकमान ने जब मेरे नाम का ऐलान मुख्यमंत्री पद के लिए किया तो मुझे सहसा यकीन नहीं हुआ। लेकिन जब आदेश हुआ तब जाकर मैं आगे आया। जिसका सत्ता के लिए निर्लिप्त भाव हो, उसके सामने एक ही लक्ष्य होता है, जिम्मेदारी को बखूबी निभाना। कहना नहीं होगा कि एक वर्ष के अल्प समय में वे अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाने की कोशिश में जुटे हैं।

डॉक्टर मोहन यादव प्रदेश के हर जिले के विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं। हवा में योजनाएं बनाने और लागू करने में उनका विश्वास नहीं है। उनके फैसलों से लगता हैं कि उनके पास एक बड़ी रिसर्च टीम और डेटा है जिसके आधार पर वे फैसले कर रहे हैं जो दूरगामी प्रभाव और परिणाम देंगे। मीडियाकरों को खत्म करने के लिए और जिला मुख्यालय के चक्कर से आम आदमी को निजात दिलाने के लिए ई तहसील समेत अनेक सेक्टर में अब ऑनलाइन सुविधा दे दी। है। अब जमीन की रजिस्ट्री भी घर बैठे हो सकती है। अब मध्य प्रदेश में ऑनलाइन सुविधा की नई बयार चल पड़ी है जो लोगों का समय, श्रम और पैसों की बचत करेगा ही बल्कि रिश्वत देने से भी बच जाएंगे। अब भला एक आम आदमी को यह सहूलियत मिल जाए, तो सरकार उसके लिए अच्छी है।

राज्य में पीएम एक्सिलेंस कॉलेज की अवधारणा अब ज़मीन पर उतरने लगी है। युवाओं को रोज़गार परक शिक्षा के सपने साकार हो रहे हैं। सीएम डॉ यादव स्वयं उच्च शिक्षा मंत्री रह चुके हैं तो उन्हें उच्च शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार क्या करना है, इसका भी रोड़मैप उनके पास था। इसकी बानगी देखिए पहली बार गवर्नर और सीएम ने संयुक रूप से प्रदेश भर के कुल गुरुओं की सामूहिक बैठक कर उन्हें मार्गदर्शन दिया। कुल गुरुओं के लिए भी यह नया अनुभव था। निश्चित रूप से यह माना जाना चाहिए कि इस नई पहल से ना केवल उच्च शिक्षा अपितु विश्व विद्यालयो में सकारात्मक परिवर्तन दिखेगा। कसौटी पर कसने के लिए इस तरह की नई पहल को समझना होगा।

प्रदेश में उद्योग धंधे को बढ़ाने के लिए सीएम डॉ मोहन यादव लगातार प्रयास कर रहे हैं। इस सिलसिले में उन्होंने विदेश में बसे प्रवासी भारतीयों से प्रदेश में निवेश के लिए आमंत्रित किया। हमें भरोसा रखना चाहिए कि आने वाले समय में मध्य प्रदेश के विकास में यह निवेश मिल का पत्थर साबित होगा। मीडिया, खासतौर पर सोशल। मीडिया में सक्रिय लोगों ने इन बिज़नेस समिट को फेल बताने पर तुल गए। यह जाने समझे बिना कि वास्तव में आने वाले दिनों में मोहन सरकार के प्रयासों का परिणाम और प्रभाव क्या होगा। सिर्फ आलोचना के लिए आलोचना करने वाले भूल जाते हैं कि वे मोहन सरकार की नहीं, अपितु प्रदेश के हित के खिलाफ आलोचना कर रहे रहे हैं। कबीर की सीख लेना चाहिए कि धीरे धीरे मना, धीरे धीरे सब होय। सीएम के पास तो कोई अलाउद्दीन का चिराग़ नहीं हो है, जिसके जरिए वे पलक झपकते सब दुरूरत कर दें। 

प्रदेश के विकास कार्यों को गति देने के लिए बाज़ार से जो कर्ज मोहन सरकार उठा रही है, उसकी भी आलोचना हो रही है। भविष्य में स्टेब्लिशमेंट खर्च समय पर पूरा नहीं हुआ तो सरकार पर सवालिया निशान लग जाएंगे। मोहन सरकार के पास माइक्रो मैनेजमेंट है, वह बाज़ार के कर्ज को उतारने के लिए प्लानिंग कर रहे हैं। कहना ना होगा बेहद बिगड़ी माली हालत में उन्हें राज्य की सत्ता मिली थी और ऐसे में स्वाभाविक रूप से जो बेहतर लग रहा है वे करने की कोशिश में है। यह भी याद रखा जाना चाहिए कि पंद्रह महीने की अल्पकालिक कमलनाथ सरकार ने भी बाज़ार से कर्ज लिया था। आलोचना करने वाले इसे भी याद रखें।

 सीएम डॉ मोहन यादव का स्पष्ट नज़रिया है कि जो अफ़सर परिणामदाई कार्य करते हैं, उन्हें जिम्मेदारी दी जाएगी। पूर्ववर्ती सरकार में सक्रिय रहे अफसरों को पुनः जिम्मेदारी सौंपी ताकि परिणाम मिल सके। जो लोग इस बात को हवा दे रहे थे कि शिवराज सिंह के राज में उनके खास रहे अफसरों को दरकिनार किया गया है, यह कुहासा भी छंट गया। राजनीति में समय समय पर उनकी उपयोगिता को देखते हुए जिम्मेदारी दी जाती है। शिवराज जी के पास कृषि विभाग की विशेषज्ञता है तो उन्हें केंद्र में मंत्री बनाकर उनके अनुभवों का लाभ लिया जा रहा है। यह तो सब जानते हैं कि राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी जैसी कोई बात नहीं होती है। प्रथम मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल से लेकर वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव प्रदेश को एक नई दिशा और नई सूरत देने की कोशिश में जुटे हुए हैं। राज्य की सत्ता की बागडोर संभालने वाले हर लीडर ने मध्य प्रदेश को अपने नजरिए से संवारा है।  मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव नौजवान हैं, ऊर्जा से लबरेज़ हैं और प्रदेश के लिए बहुत कुछ करने की उनकी मंशा है और वे ऐसा कर पाएंगे, इसमें कोई संदेह नहीं। हर फैसले सिक्के उछाल कर नहीं होते। भ्रष्टाचार को लेकर सरकार को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है लेकिन इस बात की तफ्तीश तो कर लीजिए कि इस भ्रष्टाचार की जड़ें कब से अपना जहर फला रही हैं। यह बात हम भी मानते हैं कि प्रदेश के मुखिया होने के नाते उन्हें सख्त एक्शन लिया जाना है लेकिन जब केंद्रीय जांच एजेंसी इसमें कार्यवाही कर रही है तो राज्य सरकार सहयोग कर सकती है और कर रही है। लोकायुक्त हो या परिवहन विभाग, जहां सीएम को संदेह हुआ, उन्होंने ताबड़तोड़ उनके पदों से हटा दिया। सीएम की दूरदर्शिता इस बात से झलकती है कि वे भ्रष्टाचार की जड़ पर ही वार कर रहे हैं। राज्य सरकार के कर्मचारियों को अपनी अचल संपत्ति का विवरण देने का निर्देश को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। थोड़ा वक्त मोहन सरकार को भी दीजिए, तब कसौटी पर कसने का वक्त होगा। मोहन सरकार के एक वर्ष के कार्यकाल की समीक्षा कीजिए बल्कि कहीं ऐसा लगता है कि कुछ कमी रह गई है तो निरपेक्ष भाव से सरकार के संज्ञान में लाना ठीक पहल होगी। अभी कसौटी पर परखने का वक्त नहीं। इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि किसी भी सरकार की योजना सौ फीसदी पूरी नहीं होती है और किन्तु सरकार के प्रयास और उसकी नेकनीयती देखा जाना चाहिए।

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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