सिटीज़नशिप बिल पर विपक्ष की घेरेबंदी नाकाम !

                           प्रभुनाथ शुक्ल

नागरिता संशोधन बिल लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी बड़े बहुमत से पास हो गया। मुस्लिम अधिकारों की आड़ में बिल के खिलाफ महौल खड़ा करने वाला प्रतिपक्ष पूरी तरह बिखर गया। मोदी सरकार अपने विरोधियों को सधी कूटनीति से चित्त कर दिया। संसद में गंभीर चर्चा के बावजदू कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष शाह की चाणक्य नीति से अलग-थलग पड़ गया। बिल के पास से होने से लाखों की संख्या में भारत में शरण लिए गैर मुस्लिम शरणार्थियों में खुशी का महौल है। 70 सालों से भारतीय नागरिक बनने की मुराद इस बिल से पूरी हो गई।  राज्यसभा में बिल पास होते ही शरणार्थी शिविरों में रह रहे हिंदू, सिख और दूसरेधर्म के लोगों ने तिरंगे के साथ भारत मांता की जय बोल मिठाईयां बांटी और खुशियां मनायी। निश्चित रुप से भारतीय इतिहास की तारीख में यह अहम फैसला है। हलांकि इस बिल को वोटबैंक की राजनीति से अलग भी नहीं किया सकता है।
राज्यसभा में बिल के पक्ष में 125 और प्रतिपक्ष में 105 वोट पड़े। भाजपा ने यह साबित कर दिया कि मोदी है तो मुमकिन है। ट्रिपल तलाक, धारा-370 और नागरिकता बिल के साथ राम मंदिर फैसले पर प्रतिपक्ष की साजिश पूरी तरह नाकाम होती गई। गृहमंत्री अमितशाह ने जिस सधी नीति से कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों के सवालों का एक-एक कर जबाब दिया। उससे विपक्ष निति फेल हो गई। नागरिता बिल पर विपक्ष लुढकता गया। बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेजने के अलावा टीएमसी सांसद के मतविभाजन का प्रयास भी वोटिंग के दौरान गिर गया। मुस्लिम समुदाय को भड़काने के लिए ओवैसी का बिल फाड़ नाटक भी काम नहीं आया। शिवसेना राज्सभा से वाक आउट कर हिंदू हिमायत की छबि साधने की कोशिश किया। लेकिन उसने लोकसभा में बिल के पक्ष में जबकि राज्यसभा में दबाब की वजह से तटस्थ नीति अपनायी। भाजपा इस बिल के जरिए निश्चित रुप से अपना वोट बैंक मजबूत करने में कामयाब रही है। जबकि आसाम समेत पूरा पूरब बिल की आग में जल रहा है। यह भाजपा के लिए गंभीर चुनौती होगी। क्योंकि अभी वह पूरब में अपना पैर जमा रही है।
मोदी सरकार 2015 में पहली बार यह बिल लायी थी। लेकिन राज्यसभा में यह बिल गिर गया था। राज्यसभा में बिल पास होने के बाद राष्ट्रपति के पास जाएगा जहां से महामहिम की मुहर लगने के बाद यह कानून बन जाएगा और भारत में रह रहे लाखों लोगों को सम्मान जनक जीवन जीने का अधिकार मिल जाएगा। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंग्लादेश से आए लोग पूरी आजादी से रह सकेंगे। नौकरी पा सकेंगे और जमींन खरीद सकेंगे। शरणार्थी  का चस्पा खत्म हो जाएगा। उन्हें भारतीय नागरिक कानूनों के तहत पूरी आजादी होगी। गृहमंत्री अमितशाह ने आसाम के लोगों की चिंता पर अपनी बात रखते हुए साफ कहा है कि मोदी सरकार असम के लोगों की धार्मिक आजादी, बोली, साहित्य,  संस्कृति, रीति-रिवाज को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है। उनकी मांगों के लिए कमेटी गठित कर उन्हें न्याय दिया जाएगा।असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा और दूसरे पूवोतर राज्यों में यह बिल लागू नहीं होगा।
पूर्वोत्तर के राज्य आसाम में आगजनी और हिंसा क्यों भड़की है। असमियों को यह लगता है कि सरकार नागरिक बिल संशोधन की आड़ में बंग्लादेश से आए लोगों को इस नए कानून की आड़ में बसाना चाहती है। जबकि वहां के लोग किसी बाहरी को कबूल नहीं करना चाहते , चाहे वह देश का ही नागरिक क्यों न हो। इसलिए वहां हिंदी भाषी लोगों पर हिंसा होती है और आसाम छोड़ने का दबाब दिया जाता है।
एनआरसी को लेकर भी उनकी चिंता है कि आसाम में एनआरसी लागू होने के बाद 19 लाख से अधिक लोग जो बेघर हुए हैं उन्हें भी सरकार इस कानून के जरिए असम का नागरिक अधिकार देना चाहती है। जबकि राज्सभा में गृहमंत्री अमितशाह ने साफ कह दिया है कि पूर्वोत्तर के राज्यों में यह कानून लागू नहीं होगा। एनआरी और नागरिकता बिल संशोधन दो अलग-अलग विषय हैं। नागरिकता बिल जब कानून बन जाएगा तो लाखों हिंदू, सिख, जैन, पारसी, इसाई, बौद्ध समेत छह धर्म के लोग भारत के नागरिक होंगे। जबकि मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी इसका लाभ नहीं मिलेगा। अगर वह धार्मिकता के आधार पर प्रताड़ित किए गए हैं। 
अमितशाह ने साफ कहा कि यह बिल नागरिकता देने का बिल है लेने का नहीं है। मुस्लिम समुदाय को किसी प्रकार की चिंता करने की आवश्कता नहीं है। इस बिल में मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी शरण देने का प्राविधान है। लेकिन विपक्ष मुस्लिम-मुस्लिम की माला जपता रहा। अफगानिस्तान में कभी दो लाख सिख आबादी थी लेकिन इस समय 500 रह गयी। अफगानिस्तान के बामियान प्रांत में तालीबानियों ने किस तरह बौद्ध प्रतिमाओं को तोड़ा यह पूरी दुनिया जानती है। गृहमंत्री अमितशाह ने राज्यसभा में उठाए विपक्ष के सभी सदस्यों के सवाल का जबाब दिया। जिसकी वजह से विपक्ष टिक नहीं पाया। कांग्रेस पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा कि देश का विभाजन कांग्रेस ने धर्म  के आधार पर कराया। 1955 में संसद में यह पहली बार लाया गया। कांग्रेस भ्रम फैला रही है। वह नेहरु और लियाकत समझौते को खुद भूल गई। अगर पड़ोसी मुस्लिम देशों ने इस समझौते को लागू किया होता तो इस बिल की आवश्यकता तक नहीं होती। 
गृहमंत्री ने मुस्लिम समुदाय को पूरी तरह भरोसा दिलाया कि मोदी सरकार अपने पांच साल के कार्यकाल में 566 लोगों को भारतीय नागरिकता दिया। फिर सरकार को बदनाम करने का हौवा खड़ा किया जा रहा है। कांग्रेस सरकार में युगांडा और श्रीलंकाई  तमिलों को भी भारतीय नागिरता देने के लिए बिल में संशोधन किए जा चुके हैं। देश में तकरीबन पांच लाख से अधिक श्रीलंकाई तमिलों को शरण दी गयी। राजस्थान में 13 हजार से अधिक अफगानी सिखों को कांग्रेस ने नागरिकता दिया। फिर मुस्लिम समुदाय को आगे कर कांग्रेस और दूसरे दल हौवा क्यों खड़ा कर रहे हैं। महात्मा गांधी ने के बयान के साथ पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और पश्चिम बंगाल की मुख्मंत्री ममता बनर्जी के बयान को भी शाह ने कोड किया। जिस पर टीएमसी सांसदों का गुस्सा भड़क गया और वह मत विभाजन पर अड़ गए।पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान में हिंदू, सिख आबादी का प्रतिशत दो से तीन फीसदी तक रह गया जबकि कभी अच्छी तादात में यहां हिंदू आबादी थी। पाकिस्तान में 428 पूजा स्थलों में केवल 20 बचे हैं। क्योंकि भारत की सीमा से सटे सारे देश इस्लामिक राष्ट्र हैं। हिंदू और दूसरे धर्म के लोगों को शरण लेने के लिए केवल भारत ही सुरक्षित स्थान बचता है। उस स्थिति में हमारी सरकारों का दायित्व है कि अपने लोगों को शरण दी जाय। नागरिकता संशोधन बिल पर विपक्ष मुस्लिम-मुस्लिम चिल्लाता रहा, लेकिन सवाल उठता है कि क्या कोई हिंदू इन स्लामिक देशों में नागरिता ले सकता है। निश्चित रुप से मोदी सरकार के लिए यह बड़ी उपलब्धि, लेकिन इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता है कि आने वाले दिनों में देश परअतिरिक्त आबादी का दबाब भी बढ़ेगा। 

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