हमारी विनाश सामग्री हमारी ही जेब में ? 

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तनवीर जाफ़री

जब से मोबाईल फ़ोन प्रचलन में आया है तब से देश में ऐसे सैकड़ों हादसों की ख़बरें आईं जिनसे पता चला कि मोबाइल फ़ोन में ब्लॉस्ट हो गया। कभी उनकी बैटरी ओवर हीट होकर फट गयी तो कभी चार्जिंग में लगे सेलफ़ोन में विस्फ़ोट गया। याद कीजिये किसी समय में विश्व की सबसे बड़ी मोबाईल निर्माता कम्पनी मानी जाने वाली ‘नोकिया’ को अपने मोबाईल में होने वाले विस्फ़ोट की घटनाओं के चलते 2007 में अपने BL-5C मोबाइल फ़ोन मॉडल की 46 मिलियन बैटरियों को वापस मंगाना पड़ा था। मोबाईल फ़ोन फटने की इन घटनाओं में अनेक लोगों के बुरी तरह से घायल होने यहाँ तक कि दर्जनों लोगों की मौत होने तक की ख़बरें आई थीं। केरल में त्रिशूर ज़िले के तिरुविल्वमला में ,राजस्थान के बांसवाड़ा ज़िले में उत्तर प्रदेश के बरेली मेरठ व फर्रुखाबाद में, आंधप्रदेश के प्रकाशम ज़िले तथा ओडिशा आदि स्थानों में ऐसे अनेक हादसे हुये जहाँ मोबाईल में हुये विस्फ़ोट के कारण लोगों को अपनी जानें तक गंवानी पड़ीं। इसी तरह पिछली रिकार्ड तोड़ गर्मी के दौरान बढ़ते तापमान के चलते अनेक एयर कन्डीशन के कम्प्रेसर फटने यहाँ तक कि इन विस्फ़ोटों के परिणामस्वरूप घरों में आग लगने तक की ख़बरें आईं। 

                   इसके बाद 2017 में कोरियन स्मार्टफोन कंपनी सैमसंग ने अपने जिस फ़्लैगशिप स्मार्टफ़ोन गैलेक्सी नोट 7 को लॉन्च किया था उसकी लांचिंग के केवल दो सप्ताह बाद ही इस मोबाईल में चार्जिंग के दौरान विस्फ़ोट की शिकायत के कारण कंपनी ने इसकी बिक्री पर रोक लगा दी थी। बाद में गैलेक्सी नोट 7एस खरीद चुके नए स्मार्टफोन को कम्पनी ने बिना शर्त बदलने का निर्देश दिया। उसके साथ ही कम्पनी द्वारा दुनियाभर से गैलेक्सी नोट 7 वापस मांगे लिये गये। उस समय भारत में सैमसंग गैलेक्सी नोट 7 का मूल्य 59,900 रुपये  था। 

                      परन्तु इन सब दहशत पूर्ण घटनाओं के बावजूद जनमानस में भय व अविश्वास का ऐसा वातावरण कभी नहीं बना जैसा पिछले दिनों इस्राइल द्वारा छल कपट द्वारा लेबनान के विभिन्न शहरों में एक साथ अंजाम दिये गये पेजर व वॉकी टॉकी में हुये धमाकों और इनके परिणाम स्वरूप होने वाली तबाही के बाद उत्पन्न हुआ है। इन धमाकों में दर्जनों लोगों के मरने व तीन हज़ार से अधिक लोगों के घायल होने की ख़बरें हैं। पहले तो यह ख़बर थी कि लेबनान में धमाके से फटने वाले पेजर को ताइवान की इलेक्ट्रॉनिक कंपनी गोल्ड अपोलो द्वारा बनाया गया था।  जबकि गोल्ड अपोलो ने इस पेजर को बनाने से साफ़ इनकार कर रही है। गोल्ड अपोलो कंपनी, हंगरी की एक कंपनी को इसके निर्माण का ज़िम्मेदार बता रही है। गोल्ड अपोलो का दावा है कि लेबनान में एक साथ फटने वाले AR-924 पेजर का निर्माण बुडापेस्ट स्थित BAC कंसल्टिंग KFT ने किया था। जोकि एक सहयोग समझौते के तहत बीएसी लेबनान और सीरिया में पेजर की बिक्री के लिए गोल्ड अपोलो ब्रांड के ट्रेडमार्क का इस्तेमाल कर सकती है। परन्तु इसके निर्माण के लिए बीएसी ही ज़िम्मेदार है गोल्ड अपोलो नहीं। परन्तु हंगरी के अधिकारियों ने भी गोल्ड अपोलो के बयान को ख़ारिज करते हुए कहा कि बुडापेस्ट में मौजूद कंपनी एक व्यापारिक मध्यस्थ है। वहां पर इसका कोई भी उत्पादन यूनिट नहीं है। फिर सवाल यह है कि आख़िर लेबनान में फटने वाले पेजर का निर्माण किसने किया ?                    

                    पूरे विश्व को हतप्रभ कर देने वाले इस पूरे घटनाक्रम को लेकर यदि न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट को सच माना जाये तो लेबनॉन में विस्फ़ोट होने वाले पेजर व वाकी टाकी के निर्माण से लेकर इसके विस्फ़ोट तक में इस्राईली ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद की ही भूमिका है। अज्ञात स्रोतों के हवाले से न्यूयॉर्क टाइम्स ने  कहा कि इस्राईल ने पेजर के अंदर बम छिपाए और इसमें एक स्विच जोड़ा, जिसका प्रयोग बाद में उन्हें दूर से विस्फ़ोट करने के लिए किया गया। मोसाद की ही खड़ी की गयी फ़र्ज़ी कंपनी से ये हैंडसेट ख़रीदे भी गये थे। मोसाद ने ही ऐसा जाल बिछाया कि उसने लेबनान से पैसे लेकर उन्हें पेजर और वॉकी-टॉकी सेट बेचे और उन्हीं के द्वारा हिज्बुल्लाह के कई लड़ाकों को मार भी दिया। यानी पूरी चतुराई के साथ मारने वाले बम रुपी उपकरण को बनाने का मूल्य भी वसूल किया और उनका विस्फ़ोट कर हत्याएं अंजाम देने का अपना लक्ष्य भी पूरा किया। और इससे भी बड़ी सफ़लता इस्राईल को तब मिली जब हिज़्बुल्लाह ने  भयवश पेजर और वाकी टॉकी जैसे इलेक्ट्रानिक उपकरण इस्तेमाल करना ही बंद कर दिया। ग़ौर तलब है कि लोकेशन ट्रेस होने के भय से हिज़्बुल्लाह पहले ही मोबाईल के इस्तेमाल बंद कर चुका है। ऐसे में इलेक्ट्रानिक व साइबर तकनीक पर आधारित होते जा रहे दौर में अपनाई जा रही वर्तमान आधुनिक रणनीति में हिज़्बुल्लाह इस्राईल का सामना कैसे कर सकेगा ?

                 याद कीजिये इस्राईली साइबर-आर्म्स कंपनी एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित पैगसेस जैसा ख़तरनाक स्पाइवेयर जिसे आईओएस और एंड्रॉइड चलाने वाले मोबाइल फ़ोन पर गुप्त रूप से और दूर से इंस्टॉल करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इस पैगसेस स्पाइवेयर ने कुछ समय पूर्व भारत में भी तहलका मचा दिया था। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या सायबर तकनीक व इलेक्ट्रानिक उपकरण का इस्तेमाल करने वाले लोगों की जान,उनकी गोपनीयता यहाँ तक कि उनके व्यवसाय उनकी जमापूंजी सब कुछ ख़तरे में आ चुकी है ? इस बात की क्या गारंटी है कि इसी तकनीक का दुरूपयोग कर या हैकिंग के द्वारा भविष्य में इसका इस्तेमाल किसी विमान में या जलपोत में नहीं होगा ? आज जब लगभग पूरी दुनिया की लोकेशन सार्वजनिक हो चुकी है ऐसे में किसी के द्वारा किसी को भी निशाना बनाना असंभव नहीं रहा। मोसाद जैसी मानवता की दुश्मन कोई भी कपटी एजेंसी लेबनान में अपनाये गये तरीक़े से तो कहीं भी तबाही मचा सकती है। तो क्या आधुनिक विज्ञान के वर्तमान दौर में हम अपने विनाश की सामग्री अपनी ही जेब में लिये फिर रहे हैं ?

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