पाकिस्तान अगले दस वर्षों में विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी परमाणु ताकत बन जाएगा

pakistanशैलेन्द्र चौहान

अमेरिका के एक पर्चे ‘बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट्स’ की ताजा न्यूक्लियर नोटबुक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि पाकिस्तान अगले दस वर्षों में विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी परमाणु ताकत बन जाएगा. इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष-2025 तक पाकिस्तान के पास 220-250 परमाणु हथियार होंगे. अनुमान के मुताबिक फिलहाल उसके पास 110 से 130 परमाणु हथियारों का जखीरा है. अब बात अमेरिकी नीति की. अमेरिका ने ईरान के मामले में कैसी हाय-तौबा मचाई थी. यह सब जानते हैं. अमेरिका की ओर से तमाम दावे किए गए कि ईरान के पास बेहद खतरनाक हथियार हैं जो दुनिया के लिए खतरा साबित हो सकते हैं. अमेरिकी दबाव में ही ईरान की पूरी तलाशी भी ले ली गई लेकिन हाथ कुछ नहीं लगा. इसके बावजूद अमेरिका दबाव बनाने में कामयाब रहा और ईरान को विशेष शर्तों वाली डील के लिए आगे आना पड़ा. संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति जाॅर्ज डब्लू बुश साहब ने कभी कहा था कि क्यूबा, ईरान और दक्षिण कोरिया शैतानियत की धुरी है। यही नहीं संभवत: उन्होंने कुछ और देशों का नाम लिया था और कहा था कि ये देश मानवता के दुश्मन हैं। आज उसी अमेरिका को मजबूर होकर दो शैतानी आत्मा वाले देशों के साथ समझौता करना पड रहा है। क्या अमेरिका के इस बदलाव को इस रूप में देखा जा सकता है कि अमेरिकी विदेश नीति बदल रही है? क्या अमेरिका अब इन देशों को शैतानी ताकत वाले देश नहीं मानता? या फिर अमेरिकी कूटनीतिज्ञ कुछ अलग रणनीति पर काम कर रहे हैं? कुल मिलाकर देखें तो अमेरिकी इतिहास से यही पता चलता है कि संयुक्त राज्य एक निहायत व्यापारिक मनोवृति वाला देश है। वह अपने व्यापारिक हितों को तिरोहित होता नहीं देख सकता। विश्व भर में चल रही हथियार बाजार की बहस और घोषणाओं के बीच हथियार बाजार भी बहुत तेजी से अपने पैर पसार रहा है। हथियारों के इस वैश्विक बाजार के संचालक भी वही देश हैं जो निरस्त्रीकरण अभियान के झंडाबरदार हैं। ‘‘स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च ग्रुप‘‘ के अनुसार विश्व का हथियार उद्योग डेढ़ खरब डॉलर का है और विश्व का तीसरा सबसे भ्रष्टतम उद्योग है। जिसने हथियारों की होड़ को तो बढ़ाया ही है, हथियार माफियाओं और दलालों की प्रजाति को भी जन्म दिया है। विश्व का बढ़ता हथियार बाजार वैश्विक जीडीपी के 2.7 प्रतिशत के बराबर हो गया है। हथियारों के इस वैश्विक बाजार में 90 प्रतिशत हिस्सेदारी पश्चिमी देशों की है, जिसमें 50 प्रतिशत हथियार बाजार पर अमेरिका का कब्जा है। अमेरिका की तीन प्रमुख कंपनियों का हथियार बाजार पर प्रमुख रूप से कब्जा है- बोइंग, रेथ्योन, लॉकहीड मार्टिन। यह भी एक तथ्य है कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक और कश्मीर आदि के मामलों में अमेरिकी नीतियों पर इन कंपनियों का भी व्यापक प्रभाव रहता है। भारत के संबंध में यदि बात की जाए तो सन् 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने भारत को हथियारों को आपूर्ति करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। जिसे अमेरिका की बुश सरकार ने 2001 में स्वयं हटा लिया था, जिसके बाद भारत में हथियारों का आयात तेजी से बढ़ा। पिछले पांच वर्षों की यदि बात की जाए तो भारत में हथियारों का आयात 21 गुना और पाक में 128 गुना बढ़ गया है।

भारत-पाकिस्तान के बीच हथियारों की इस होड़ में यदि किसी का लाभ हुआ है, तो अमेरिका और अन्य देशों की हथियार निर्माता कंपनियों का। दरअसल अमेरिका की हथियार बेचने की नीति अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति वुडरो विल्सन के ‘‘गन और बटर‘‘ के सिद्धांत पर आधारित है। गरीब देशों को आपस में लड़ाकर उनको हथियार बेचने की कला को विल्सन ने ‘‘गन और बटर‘‘ सिद्धांत नाम दिया था, जिसका अर्थ है आपसी खौफ दिखाकर हथियारों की आपूर्ति करना। भारत और पाकिस्तान के संदर्भ में भी अमेरिका ने इसी नीति के तहत अपने हथियार कारोबार को लगातार बढ़ाने का कार्य किया है। हाल ही में अरब के देशों में सरकार विरोधी प्रदर्शनों और संघर्ष के दौरान भी अमेरिकी हथियार पाए गए हैं, हथियारों के बाजार में चीन भी अब घुसपैठ करना चाहता है। हथियारों के प्रमुख आपूर्तिकर्ता देशों का लक्ष्य किसी तरह भारत के बाजार पर पकड़ बनाना है। जिसमें उनको कामयाबी भी मिली है, जिसकी तस्दीक अमेरिकी कांग्रेस की एक रिपोर्ट भी करती है। अमेरिकी कांग्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सन 2010 में विकासशील देशों में भारत हथियारों की खरीदारी की सूची में शीर्ष पर है। ईरान और क्यूबा के साथ अमेरिका का व्यापारिक हित क्या हो सकता है, यह एक गंभीर सवाल है। अब अमेरिका को पाकिस्तान से कोई समस्या नहीं है. पाकिस्तान ने पहले यह खुलासा किया कि उसने भारत से सटी सीमा पर कम दूरी की मारक क्षमता वाले परमाणु बम लगा रखे हैं. लेकिन दिलचस्प बात है कि जिस अमेरिका को ईरान के पास परमाणु बम होने की खबर से मिर्ची लगती थी उसे पाकिस्तान की ओर से भारत को दी जा रही धमकी पर कुछ नहीं कहना है. इसे कहते हैं दोहरी नीति. वैसे, पाकिस्तान में हथियारों की सुरक्षा कैसी है, इसकी एक बानगी वर्ष-2004 में ही देखने को मिल गई थी. तब पाकिस्तान के सबसे बड़े परमाणु वैज्ञानिकों में से एक अब्दुल कादिर खान पर आरोप लगे कि वे पाकिस्तान के परमाणु हथियारों से जुड़ी बेहद गुप्त बातें दूसरे देशों को बेच रहे हैं. अमेरिका हालांकि तब भी केवल खानापूर्ति करता नजर आया. ऐसे आरोप थे कि कादिर संभवत: हथियारों से जुड़ी गुप्त बातें उत्तर कोरिया को बेच रहे थे. लेकिन क्या पता हथियारों से जुड़ी बातें उत्तर करिया से आगे भी पहुंची हों. क्या पता वे हथियार किसी आतंकी संगठन के हाथ भी लगे हों. कादिर खान को इन आरोपों के चलते नजरबंद किया गया लेकिन इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने 2009 में उन्हें आजाद करने का आदेश दिया. अमेरिका इन पूरे घटनाक्रमों के बीच मूक नजर आया. अमेरिका ने हाल में अपनी पहले से तय नीति में बदलाव करते हुए कहा कि उसके 5,500 सैनिक 2017 तक अफगानिस्तानी जमीन पर मौजूद रहेंगे. इसका सीधा मतलब है कि उसे पाकिस्तान की जरूरत पड़ेगी. वैसे भी पिछले 14 वर्षों में अमेरिका 20 बिलियन डॉलर से ज्यादा की मदद आतंकवाद से लड़ाई के नाम पर पाकिस्तान को दे चुका है. पाकिस्तान इन पैसों का इस्तेमाल कितनी गंभीरता से आतंक के खिलाफ करता रहा है, यह दुनिया जानती है. बहरहाल, पाकिस्तान को भी पता है कि अमेरिका जब तक अफगानिस्तान में मौजूद है, उसे कीमत मिलती रहेगी. इसलिए दोनों अपने कारोबार में जुटे हैं. पाकिस्तान में तो कुव्वत है नहीं. इसलिए बस देखते रहिए, जरूरत पूरी होने के बाद अमेरिका कब पाकिस्तान को झिड़की देता है. परमाणु सुरक्षा सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान के सैन्य सिद्धांतों पर एक संवाददाता सम्मेलन में ओबामा द्वारा की गई टिप्प्णी ध्यान देने योग्य है। गत माह वाशिंगटन में दो दिवसीय सम्मेलन के अंत में ओबामा ने इस बात पर जोर दिया था कि भारत और पाकिस्तान को अपने परमाणु हथियारों को कम करने पर प्रगति करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सैन्य सिद्धांत विकसित करने के दौरान वे ‘लगातार गलत दिशा में नहीं बढ़ें।’ अमरीकी सुरक्षा प्रवक्ता के अनुसार राष्ट्रपति ओबामा की टिप्पणी वैश्विक चिंता की ओर ध्यान केंद्रित करने वाली है कि ‘कुछ देशों में परमाणु हथियार बढ़ रहे हैं तथा कुछ छोटे परमाणु हथियारों की चोरी होने के अधिक खतरे हो सकते हैं। अब अमेरिकी राष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन उम्मीदवारी के प्रबल दावेदार डोनाल्ड ट्रंप ने संकेत दिया कि वह परमाणु हथियार संपन्न ‘अर्ध-अस्थिर’ देश पाकिस्तान की ‘समस्या’ से निपटने के लिए भारत और अन्य देशों की मदद मांगेंगे। हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या परमाणु हथियारों की है। इन हथियारों से संपन्न देशों की है। और यह इकलौता ऐसा देश नहीं है। इस समय ऐसे नौ देश परमाणु हथियारों से संपन्न हैं। ट्रंप ने कहा, लेकिन पाकिस्तान अर्ध-अस्थिर है। हम पूर्ण अस्थिरता नहीं देखना चाहते। तुलनात्मक रूप से कहूं तो यह उतना अधिक नहीं है। हमारा थोड़ा अच्छा रिश्ता है। मुझे लगता है कि मैं कोशिश करूंगा और इसे कायम रखूंगा। ट्रंप ने कहा, यह कहना मेरे स्वभाव के बहुत विपरीत है, लेकिन एक देश हमेशा देश ही होता है। आप जानते होंगे कि हम उन्हें धन देते हैं और उनकी मदद करते हैं, लेकिन अगर हम ऐसा नहीं करते तो मुझे लगता है कि वे रास्ते के दूसरे ओर चले जाएंगे और यह वाकई एक मुसीबत बन सकता है। हालांकि ट्रंप ने यह नहीं बताया कि वह क्या मुसीबत होगी? ट्रंप ने कहा, इसी दौरान, जब आप भारत और कुछ अन्य देशों को देखते हैं तो लगता है कि शायद वे हमारी मदद करेंगे। हम इस दिशा में देख रहे हैं। हमारे पास ऐसे कई देश हैं, जिन्हें हम धन देते हैं और वापसी में हमें उनसे कुछ नहीं मिलता। यह जल्द ही रुकने वाला है। तो मतलब की बात हो तो मौखिक रूप से दुनियादारी निभाओ, धरती के किसी कोने में कुछ भी हो तो फौरन चिंता वाली मुद्रा का परिचय दो और जहां अपने मतलब की बात हो तो सारे नियम-कानून ताक पर रख दो. यही है अमेरिकी नीति. एक नहीं कई बार अमेरिका साबित कर चुका है कि उसकी असल नीति क्या है.

1 COMMENT

  1. पाकिस्तान के पास महाविनाशक हथियार है और उसकी सोच में कट्टरवाद तथा आतंकवाद घुसा है. वह विश्व एवं क्षेत्रिय शान्ति के लिए खतरा बना हुआ है, अतः या तो पाकिस्तान अपनी सोच को बदले, या फिर विश्व बलपूर्वक पाकिस्तान की परमाणु क्षमता को समाप्त करे. आज का विश्व यह चुनौती महसूस कर रहा है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress