राजेश कुमार पासी
मोदी जानते थे कि हर बार की तरह इस बार भी विपक्ष संसद में हंगामा करने वाला है, इसलिए उन्होंने संसद सत्र के पहले ही दिन विपक्ष पर हमला कर दिया । प्रधानमंत्री मोदी ने संसद के बाहर मीडिया को संबोधित करते हुए अपने विचार प्रकट किये । पहले ही यह अंदाजा था कि विपक्ष एसआईआर और राष्ट्रीय सुरक्षा को मुद्दा बनाकर संसद में हंगामा करेगा और ऐसा ही हुआ । उन्होंने विपक्ष को मर्यादित आचरण करने की सलाह देते हुए उस पर बड़ा हमला किया है । उन्होंने कहा कि ड्रामा करने की और भी जगहें हैं. जिनको करना है, करते रहे लेकिन यहां ड्रामा नहीं, डिलीवरी होनी चाहिए। नारे लगाने के लिए पूरा देश पड़ा है, जहां पराजित होकर आए हैं, वहां बोल चुके हो। जहां पराजित होने वाले हो, वहां भी बोल दीजिए, लेकिन यहां नारे नहीं, नीतियों पर बल दीजिए। उन्होंने कहा कि संसद देश के लिए क्या सोच रही है, क्या करना चाहती है, यह सत्र इन मुद्दों पर केंद्रित होना चाहिए। उन्होंने विपक्ष को कहा कि उसे अपना दायित्व निभाना चाहिए, संसदीय कार्य पर हार की हताशा का असर नहीं होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि दुनिया भारत में लोकतंत्र की मजबूती के साथ-साथ लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के भीतर अर्थतंत्र की मजबूती को बहुत बारीकी से देख रही है। भारत ने सिद्ध कर दिया है कि डेमोक्रेसी डिलीवर कर सकती है। उन्होंने विपक्ष को नसीहत देते हुए कहा कि विपक्ष पराजय की निराशा से बाहर निकल आये। उन्होंने कहा कि एक-दो दल तो ऐसे हैं जो हार को पचा नहीं पाते हैं। उन्होंने विपक्ष पर तंज करते हुए कहा कि मैं सोच रहा था कि बिहार के नतीजे को इतना वक्त हो गया है तो अब थोड़ा संभल गए होंगे लेकिन मैं उनके जो बयान सुन रहा हूँ, उससे लगता है कि पराजय ने उनको परेशान कर रखा है। उन्होंने कहा कि राजनीति में नकारात्मकता कुछ काम आती होगी, लेकिन राष्ट्र निर्माण के लिए कुछ सकारात्मक सोच भी होनी चाहिए । नकारात्मकता को अपनी मर्यादाओं में रखकर राष्ट्र निर्माण पर ध्यान देना चाहिए । पीएम मोदी ने सभी दलों से अनुरोध किया कि शीतकालीन सत्र को पराजय की बौखलाहट का मैदान नहीं बनना चाहिए । उन्होंने एनडीए के सांसदों को नसीहत देते हुए कहा कि यह सत्र विजय के अहंकार में परिवर्तित नहीं होना चाहिए ।
जैसे कि पहले आशंका थी कि एसआईआर के मुद्दे पर शीतकालीन सत्र में माहौल गर्म रहेगा, वैसा ही संसद सत्र के पहले दिन देखने को मिला हालांकि सरकार ने इस मुद्दे पर विपक्ष की बहस करने की मांग मान ली है, इसलिए अभी कुछ शांति दिखाई दे रही है । संसद सत्र शुरू होने से एक दिन पहले सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, जिसमें विपक्ष के तीखे तेवर देखने को मिले । इस बैठक में संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजीजू ने कहा कि मतभेद लोकतंत्र का आधार है, लेकिन सदन की गरिमा बनाए रखना सभी दलों की साझा जिम्मेदारी है । उन्होंने कहा कि बहस से बचने का सवाल नहीं है, लेकिन संसद चलने में बाधा नहीं आनी चाहिए । सर्वदलीय बैठक में विपक्ष की ओर से जो कुछ कहा गया, उससे ही पता चल गया था कि एसआईआर के मुद्दे को विपक्ष जोर-शोर से उठाएगा । विपक्ष को कोई भी मुद्दा उठाने का अधिकार है, लेकिन सवाल यह है कि वो एसआईआर के मुद्दे पर क्या जानना चाहता है । ये प्रक्रिया सरकार द्वारा संचालित नहीं है बल्कि इसे चुनाव आयोग संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के तरह करवा रहा है ।
समस्या यह नहीं है कि विपक्ष एसआईआर को लेकर सवाल उठा रहा है, बल्कि समस्या यह है कि विपक्ष चाहता है कि चुनाव आयोग अपने संवैधानिक कर्तव्य का पालन न करे और इस प्रक्रिया को तत्काल बंद कर दे । इसी मांग को लेकर विपक्ष सुप्रीम कोर्ट में जा चुका है लेकिन माननीय अदालत ने उसकी मांग ठुकरा दी है । सवाल यह है कि क्या सरकार इस प्रक्रिया को रोक सकती है । सवाल यह है कि अगर सरकार रोक भी सकती है तो उसे क्यों रोकना चाहिए । पहले ही यह प्रक्रिया बहुत देर से की जा रही है । विपक्ष को तो चुनाव आयोग से यह सवाल करना चाहिए कि उसने पहले यह प्रक्रिया क्यों नहीं की । जो काम दस साल पहले हो जाना चाहिए था, वो बाईस साल बाद क्यों हो रहा है । 22 साल बाद मतदाता सूची में ऐसे करोड़ों लोगों के नाम दर्ज हैं, जो मर चुके हैं या अन्यत्र जा चुके हैं । इसके अलावा भी मतदाता सूची में बड़ी गड़बड़ियां हैं, जिन्हें लेकर राहुल गांधी तीन प्रेस कांफ्रेंस भी कर चुके हैं । लाखों लोग ऐसे हैं, जिनके नाम मतदाता सूची में एक से ज्यादा जगहों पर दर्ज हैं । इन गड़बड़ियों को ठीक करने के लिए एसआईआर की बहुत जरूरत है ।
अजीब बात है कि विपक्ष भाजपा पर इन गड़बड़ियों का फायदा उठाने का आरोप लगाता है और दूसरी तरफ इन गड़बड़ियों को ठीक करने की कवायद एसआईआर का विरोध भी करता है । इसका दूसरा मतलब है कि विपक्ष ही इन गड़बड़ियों का फायदा उठाकर वोट चोरी कर रहा है, इसलिए वो नहीं चाहता कि एसआईआर द्वारा इन गड़बड़ियों को ठीक किया जाए । अगर एसआईआर के विरोध की कोई और वजह है तो विपक्ष को देश के सामने रखनी चाहिए ।
पहले विपक्ष बिहार में एसआईआर का विरोध कर चुका है और अब 12 राज्यों में भी इस प्रक्रिया का विरोध किया जा रहा है जबकि विपक्ष जानता है कि वो इस प्रक्रिया को नहीं रूकवा सकता । एसआईआर पर चर्चा करके विपक्ष क्या हासिल करना चाहता है, उसे बताना चाहिए क्योंकि सरकार इस चर्चा का जवाब नहीं दे सकती । चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जो सरकार के अधीन काम नहीं करती है । जब संसद में बहस होगी तो उस बहस का जवाब कौन देगा । सरकार ने भी एसआईआर पर बहस की जगह चुनाव सुधार पर चर्चा की मांग मानी है क्योंकि एसआईआर पर बहस नहीं की जा सकती । कितनी अजीब बात है कि एसआईआर को लेकर सुप्रीम कोर्ट में विपक्ष के एक-एक सवाल का जवाब चुनाव आयोग द्वारा विपक्ष के वकीलों को दिया जा रहा है लेकिन विपक्ष संसद में सरकार से उन सवालों के जवाब चाहता है । चुनाव आयोग को विपक्ष के सवालों के जवाब देने चाहिए, जिसके लिए वो विपक्ष को बुला चुका है । अगर विपक्ष सच में एसआईआर को लेकर आशंकित है और अपने सवालों के जवाब चाहता है तो वो चुनाव आयोग से क्यों नहीं पूछता ।
समस्या यह है कि चुनाव आयोग विपक्ष के सारे सवालों के जवाब देने को तैयार है लेकिन सच यह है कि विपक्ष को किसी सवाल का जवाब नहीं चाहिए । वो जानता है कि एसआईआर से उसको राजनीतिक नुकसान होने की आशंका है, इसलिए इसका विरोध कर रहा है । इसकी वजह यह है कि बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए विपक्ष के कट्टर समर्थक हैं । एसआईआर की प्रक्रिया में मतदाता सूची से उनके नाम कटने की संभावना है, इससे विपक्ष परेशान है । विपक्ष सीधे तौर पर घुसपैठियों का बचाव नहीं कर सकता, इसलिए चाहता है कि किसी भी तरीके से इस प्रक्रिया को रोक दिया जाए । विपक्ष को इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि जब अदालत में चुनाव आयोग उनके वकीलों के जरिये सारे सवालों के जवाब दे रहा है और इसके अलावा उसके प्रतिनिधियों को मुलाकात का समय भी दे रहा है तो वो संसद में सरकार से क्या पूछना चाहते हैं । सवाल यह है कि क्या विपक्ष के पास संसद में उठाने के लिए कोई दूसरा मुद्दा नहीं बचा है जो इस मुद्दे पर संसद में चर्चा करना चाहता है ।
पिछले कई सालों से विपक्ष संसद सत्र को बर्बाद करने के लिए ऐसे मुद्दे लाता है जो संसद सत्र समाप्त होने के बाद गायब हो जाते हैं । एसआईआर का मुद्दा तो ऐसा है, जो कई महीनों से देश में चल रहा है । इस मुद्दे पर विपक्ष बिहार चुनाव लड़कर मुंह की खा चुका है, इसके बावजूद इस मुद्दे को छोड़ने को तैयार नहीं है । जिस मुद्दे पर बिहार में जनता ने विपक्ष का साथ नहीं दिया, उस मुद्दे पर देश की जनता भी उसका साथ देने वाली नहीं है । विपक्ष को सोचना चाहिए कि वो ऐसे मुद्दे क्यों लेकर आता है, जिसको जनता का साथ नहीं मिलता है । वास्तव में विपक्ष जनता से कट चुका है, उसे पता ही नहीं है कि देश की जनता क्या चाहती है । विपक्ष की लगातार पराजयों की वजह यही है कि वो जनता के मुद्दे नहीं उठाता है । संसद सत्र में हंगामा करना ही उसे सबसे आसान तरीका लगता है जिससे सरकार को परेशान किया जा सके । वास्तव में विपक्ष संसद में सरकार को उसके सवालों का जवाब देने के लिए मजबूर कर सकता है और ये उसका विशेषाधिकार है । जब विपक्ष सवाल उठाने की जगह संसद सत्र को हंगामे से बर्बाद करता है तो वो कहीं न कहीं सरकार की मदद करता है । सरकार को जो विधायी कार्य करने होते हैं, वो चुपचाप करवा लेती है, विपक्ष यह भी नहीं समझता । यही कारण है कि मोदी ने कहा है कि वो विपक्ष को टिप्स देने को तैयार हैं ।
वास्तव में समस्या यही है कि विपक्ष के विरोधी भी विपक्ष से परेशान हैं कि वो अपना काम क्यों नहीं कर रहा है । ऐसे बहुत से मुद्दे हैं, जिन पर विपक्ष सरकार को संसद में घेर सकता है लेकिन समस्या यह है कि विपक्ष के पास ऐसे वक्ता नहीं हैं जो उसके लिए सरकार से बहस कर सकें । विपक्ष को यही सही लगता है कि वो संसद में हंगामा करे ताकि देश की जनता देख सके कि विपक्ष सरकार का विरोध कर रहा है । विपक्ष यह भी संदेश देना चाहता है कि यह सरकार विपक्ष से बहस नहीं करना चाहती, इसलिए उसके मुद्दों पर बहस से भागती है । सच यह है कि देश की जनता बहुत समझदार हो चुकी है, विपक्ष को यह समझने की जरूरत है । विपक्ष के पतन का कारण यही है कि वो अपना काम सही तरीके से नहीं कर रहा है । उसे मोदी की नसीहत को सकारात्मक रूप से लेना चाहिए । विपक्ष को अपने रवैये पर विचार करने की जरूरत है क्योंकि उसका रवैया जनता को पसंद नहीं आ रहा है और जनता मतपेटी में अपनी नापसंदगी जाहिर कर रही है । विपक्ष का हित इसमें है कि वो अपने रवैये पर पुनर्विचार करे ।
राजेश कुमार पासी