कविता

कविता : नया खेल

netajiमिलन सिन्हा

 

तिकड़म सब हो गए फेल

नेताजी पहुँच ही गए जेल

बनने लगे हैं नए समीकरण

बाहर शुरू हो गया है नया खेल

 

खूब खाया था, खिलाया था

पीया था, खूब पिलाया था

राजनीति को ढाल बनाया था

परिवार को आगे बढ़ाया था

 

जिनका खूब साथ दिया

उन्होंने ही दगा किया

भ्रष्टाचार के नाम पर

शिष्टाचार तक त्याग दिया

 

आगे क्या होगा, कितनी होगी सजा

पक्षवाले चिंतित, तो विपक्ष ले रहा मजा

पर एक बात पर हैं सब एकमत

बुरे काम का होता ही  है बुरा नतीजा ।