बादलजी

raine         तितली उड़ती,चिड़िया उड़ती,
कौये कोयल उड़ते|
इनके उड़ने से ही रिश्ते,
भू सॆ नभ के जुड़ते||

धरती से संदेशा लेकर ,
पंख पखेरु जाते|
गंगा कावेरी की चिठ्ठी,
अंबर को दे आते|

पूरब से लेकर पश्चिम तक,
उत्तर दक्षिण जाते|
भारत की क्या दशा हो रही ,
मेघों को बतलाते|

संदेशा सुनकर बाद‌लजी,
हौले से मुस्कराते,
पानी बनकर झर झर झर,
धरती की प्यास बुझाते|

प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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