कौवा और कोयल‌

रखे टोकरी सिर पर कोयल,

इठलाते इठलाते आई|

कौवे के घर की चौखट पर,

“सब्जी ले ले”  टेर लगाई |

 

कौवा बोला नहीं पता क्या?

कितनी ज्यादा है मँहगाई|crow and koel

सब्जी लेने के लायक अब ,

नहीं रहा है तेरा भाई|

 

ऐसा कहकर कौवेजी ने,

आसमान में दौड़ लगाई|

फिर नीचे आकर मुन्ना की,

रोटी झपटी, छीनी खाई|

 

कौवे की हरकत को दुनियाँ,

वालों ने समझा चतुराई|

छीन छीन कर खाने में ही,

लोग समझने लगे भलाई|

 

पर चिड़ियों ने चुग चुग दाना,

जीवन की सच्चाई बताई|

कड़े परिश्रम की रोटी ही,

होती है सबसे सुखदाई|

 

प्रभुदयाल श्रीवास्तव

 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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