किस्मत से जंग

-रवि श्रीवास्तव-
poem

किस्मत के साथ मेरी, चल रही इक जंग है,
न कोई हथियार है, न कोई संग है।

कभी भारी पलड़ा उसका तो कभी मेरा रहा,
उसके दिए रह चोट का दर्द तो मैने सहा।

तोड़ना वो चाहती मुझको, कर के अपने तो सितम,
उसके हर वार को सहने का तो मुझमें है तो दम।

खेल ये तो है पुराना, इतना तो जानता हूं मैं,
इसके फेंके पासे को, अच्छे से पहचानता हूं मैं।

जीत को देख मेरी, रह जाएंगे लोग दंग
किस्मत के साथ मेरी चल रही इक जंग

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