कविता

एससी एसटी एक्ट

राष्ट्रवाद   का  झोला   टांगे  मैं  सवर्ण  आवारा  हूँ।

मुसलमान से यदि बच जाऊं तो दलितों का चारा हूँ॥

कांग्रेस ने दर्द दिए तब  हमने  कमल  का फूल  चुना।

किंतु जेल में डाल  रहे ये हमे  कोई  पड़ताल  बिना॥

पशुवों की भी चिंता होती उनके हित  सरकार  खड़ी।

हम उनसे भी बदतर हमपर  लोकतन्त्र  की मार पड़ी॥

इतने दिन तक भक्ती की फिर  भी   राजनीति  का मारा हूँ।

राष्ट्रवाद का झोला टांगे मैं………………………… (1.)

जान  लुटा  लायी  आजादी   फांसी  के   फंदे  चूमे। 

लाठी  खाई  गोली  खाई   लावारिस   बनकर  घूमे॥

मुगलों से भी टक्कर ली खिलजी गजनी से युद्ध लड़े। 

रहे    सदा    सीना    ताने   अंतहीन   दुखदर्द   सहे॥ 

आजादी  मिलते  ही  हम   बने  हुये  खलनायक  हैं।  

न्यायपालिका  भी  कहती  हम  इसके ही लायक हैं॥  

जिस माँ पर बलिदान हुआ उसका टूट रहा एक तारा हूँ।    

राष्ट्रवाद का झोला टांगे मैं………………………….. (2.)

सत्य सनातन का वाहक दुनिया को ज्ञान दिया जिसने।

जिसको दुनिया ने  ठुकराया  उसको मान  दिया हमने॥

पर हम पर आरोप लगा  हम अपनों के ही  शोषक थे।

जातिवाद और  छुआछूत के  हम इकलौते पोषक थे॥

यदि होता ये सत्य कर्ण फिर  परशुराम से  ज्ञान न पाते। 

भीमराव भी अंबेडकर से   उनका अपना नाम न पाते॥

मैकाले   के   गुब्बारे   से     छूट   रहा   फ़व्वारा   हूँ।

राष्ट्रवाद का झोला टांगे मैं………………………… (3.)

सोने  की  चिड़िया  जिसको   हमने   कभी  बनाया  था।

अरब और अंग्रेज़ लुटेरो का मन जिसपर ललचाया था॥  

उसका  वैभव  ना  वापस आए  यही  साजिसे  पाले  हैं।

गोरे  चले  गए  तो  क्या    उनके   जैसे  कुछ  काले  हैं॥

फिर करता संघर्ष और हर  साजिश  तोड़ भी सकता था।

रूठे थे जो  अपने  उनको   पुनः  जोड़  भी  सकता  था॥

पर  वोटों   की  राजनीति   में    आज  हुआ  बेचारा  हूँ।

राष्ट्रवाद का झोला टांगे मैं…………………………… (4.)

मुकेश चन्द्र मिश्र