कविता

कविता – यायावर

yayawarवह मेरे खाने के पीछे पड़ा था

जब मैं खाना चाहता था

अपना रुखा-सूखा खाना ।

 

वह मेरी नींद चुराना चाहता था

जब मैं सोना चाहता था

थक-हारकर एक पूरी नींद ।

 

वह मेरे प्यास के पीछे भी पड़ गया

जब मैं पीना चाहता था

चुल्लू भर पानी ।

 

वह मेरे घर को हथियाना चाहता था

जब मैं नहीं था

अपने उस फुटपाथ पर ।

 

उसने पूरी ताकत लगा दी

हड़प करने के पीछे

लेकिन फिरभी

मैंने खाना खाया

नींद ली

प्यास भी बुझायी

किसी तरह ।

 

हाँ, नहीं बच सका

मेरा घर

जो छतविहीन थी

फिरभी

मैं खुश हूँ

अपनी जीत पर

कि मैंने उससे

अपना खाना

अपनी नींद

और अपनी प्यास बचायी

घर की चिंता

न तब थी

न अब है ।

 

मोतीलाल