कविता

कविता:बोलो बोलो क्या क्या बदलें ?-प्रभुदयाल श्रीवास्तव

बोलो बोलो क्या क्या बदलें

हवा और क्या पानी बदलें

स्वच्छ चांदनी रातें बदलें

या फिर धूप सुहानी बदलें?

 

शीतल मंद पवन कॆ झोंके

आंधी के पीछे पछियाते

मीठा मीठा गप कर लेते

कड़ुआ कड़ुआ थू कर जाते

हवा आज बीमार हो गई

पानी दवा नहीं बन पाया

तूफानों ने हर मौसम को

आंसू आंसू खूब रुलाया

बैतालों को बदल न पाये

विक्रम की नादानी बदलें?

 

पहले अंगुली फिर पहुंचे पर

पूरा हाथ पकड़ फिर लेता

बाहुबली सागर, नदियों को

किसी तरह काबू कर लेता

क्यों विराट का लक्ष्य यही है

लघुता को संपूर्ण मिटाना

भले रोम जलता रहता हो

नीरो से वंशी बजवाना

मच्छर का अस्तित्व मिटायें

या फिर मच्छर दानी बदले?

 

ऐसे ऐसे एक था राजा

एक हुआ करती थी रानी

इसी तरह बच्चों से कहती

रहती रोज कहानी नानी

जनता बहुत त्रस्त राजा से

रानी भी आतंक मचाती

प्रजा बेचारी डर के मारे

खुलकर के कुछ कह न पाती

जनता को जड़ मूल मिटा दें

या फिर राजा रानी बदलें?

 

पीली सरसों के घोड़े पर

चढ़ बसंत फिर फिर आ जाता

मेरे घर के लगा सामनॆ

आम कभी अब न बौराता

बड़े शहर की किसी सार में

गाय भैंस अब नहीं रंभाते

तथा कथित छोटे आंगन में

कार बाइक अब बांधे जाते

दुनियां को तो बदल न पाये

क्या हम राम कहानी बदलें?

 

नये साल में क्या क्या होगा

वही कहानी वही तमाशे

सच्चाई पर नहीं पड़ेंगे

क्या झूठों के रोज तमाचे?

सड़क गली में नहीं दिखेंगे

क्या अब नहीं भिखारी बच्चे

गांव शहर में नहीं बचेंगे

डाकू गुंडे चोर उचक्के

जब मेहमान बिगड़ जायें तो

क्यों न फिर यजमानी बदलें?