नेपाल में राजनीतिक भूचाल: वैश्विक शक्तियों की बढ़ी दिलचस्पी

डॉ ब्रजेश कुमार मिश्र

दक्षिण एशिया विगत दो दशकों से आग्नेय क्षेत्र बना हुआ है। यह भारतीय उपमहाद्वीप के लिए अत्यन्त घातक है। पहले पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और अब नेपाल में जो स्थिति बनी है, वह इस खित्ते के लिए अत्यन्त घातक है। दबी जुबान से ही सही विपक्ष भारत में भी ऐसा ही होगा, भविष्यवाणी कर रहा है। बहरहाल भारत में ऐसा कुछ नही होने वाला, इसके पक्ष में सैकड़ो दलीले दी जा सकती हैं। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के गलियारों में विशेष रूप से दक्षिण एशिया की भू-राजनीति को प्रभावित करने वाली घटना जो नेपाल में हुई है, को लेकर जबरदस्त बहस शुरू हो गई है। नेपाल की स्थिति के लिए वस्तुतः जिम्मेदार कौन हैऔर ऐसी स्थिति मेंभारतीय रणनीति क्या होगी? ये यक्ष प्रश्न हैं और इनका निदान क्या हो सकता है, यह विश्लेषण का विषय है।

25 अगस्त को नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से विदेशी सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की जवाबदेही तय करने को कहा। इसके बाद 28 अगस्त को सरकार ने सभी प्लेटफार्मों को 3 सितम्बर तक पंजीकरण कराने का आदेश दिया। 28 में से केवल 2 ने इसका पालन किया जबकि 26 ने इनकार कर दिया। सरकार ने 4 सितम्बर को गैर-अनुपालन पर सोशल मीडिया सेवाएँ रोक दीं। यह कदम आम जनता के लिए डिजिटल अधिकार पर प्रहार जैसा साबित हुआ क्योंकि सोशल मीडिया अब दैनिक जीवन का हिस्सा बन चुका है। युवाओं, खासकर 14 से 28 वर्ष के “जेन ज़ी” वर्ग ने इस निर्णय के खिलाफ व्यापक आंदोलन छेड़ दिया। उन्होंने भ्रष्टाचार और प्रतिबंध दोनों के विरोध में नारों के साथ सड़कों पर उतरकर आवाज़ बुलंद की — “भ्रष्टाचार ख़त्म करो” और “सोशल मीडिया नहीं, भ्रष्टाचार पर प्रतिबंध लगाओ।”काठमांडू और अन्य शहरों में यह विरोध उग्र हो गया। प्रदर्शनकारियों ने कई ऐतिहासिक और आधुनिक इमारतों को आग लगा दी । स्थिति इतनी गंभीर हुई कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा। ग्लोबल डिजिटल इनसाइट्स की रिपोर्ट के अनुसार नेपाल की 55 प्रतिशत आबादी इंटरनेट का उपयोग करती है और इनमें से आधी सोशल मीडिया पर सक्रिय है। प्रतिबंध से लाखों उपयोगकर्ता प्रभावित हुए। 9 सितम्बर तक यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया और पुलिस कार्रवाई में कम से कम 19 प्रदर्शनकारी मारे गए तथा दर्जनों घायल हो गए।

नेपाल लंबे समय से भ्रष्टाचार और घोटालों से जूझ रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री माधव नेपाल पतंजलि योगपीठ भूमि अधिग्रहण विवाद में फंसे हैं जबकि केपी शर्मा ओली पर गिरिबंधु चाय बागान घोटाले के आरोप हैं। 2023 के फ़र्ज़ी भूटानी शरणार्थी प्रकरण ने स्थिति और बिगाड़ी, जिसमें दो पूर्व मंत्री और 12 वरिष्ठ नौकरशाह जेल भेजे गए। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की पत्नी आरज़ू राणा का नाम भी सामने आया। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के भ्रष्टाचार सूचकांक 2024 में नेपाल 180 देशों में 107वें स्थान पर रहा।कोविड-19 के बाद अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत मिले थे और एशियाई विकास बैंक ने 2025 में 4% से अधिक वृद्धि का अनुमान जताया था परंतु राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा ने विकास पर प्रश्नचिह्न लगा दिया।

 2021 की जनगणना के अनुसार 30 लाख नेपाली विदेशों में रहते हैं और हर वर्ष 2-3 लाख लोग रोज़गार हेतु पलायन करते हैं। मई-जून 2025 में प्रवासी नेपालियों ने 176 अरब नेपाली रुपये (लगभग 1.3 बिलियन डॉलर) भेजे, जो जीडीपी का 24% है। देश में उद्योग और निवेश की स्थिति कमजोर है। राजनीतिक हस्तक्षेप से शिक्षा प्रभावित है, जिससे छात्र विदेश पलायन कर रहे हैं। वहीं “नेपो किड्स” को ठेके और पद मिलने से जेन ज़ी वर्ग असंतुष्ट है। सरकार ने हिंसा को बाहरी हस्तक्षेप बताया, जबकि प्रदर्शनकारियों ने इसे जनाक्रोश का नतीजा कहा। काठमांडू के मेयर और राजशाही समर्थकों के जुड़ने से हालात और जटिल हो गए।

नेपाल भू-राजनीति की दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण है। यह “जोन ऑफ स्ट्रैटेजिक कॉन्संट्रेशन” है अर्थात  एक ऐसा भौगोलिक क्षेत्र जहां दो या दो से अधिक शक्तिशाली देशों की रणनीतिक और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और हित केंद्रित होते हैं, जिसके कारण वे उस क्षेत्र पर अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं। नेपाल, जो चीन और भारत के बीच स्थित है, एक ऐसा ही क्षेत्र है, जिसे “बफर स्टेट ” के रूप में भी  देखा जाता है, और इन दोनों देशों के लिए बराबर रणनीतिक महत्त्व रखता है। भारत की दृष्टि से नेपाल को भारत के साथ होना चाहिए क्योंकि यदि वह तटस्थ रहता है तो वह भारत के हित से और भी खतरनाक है। कौटिल्य के मण्डल सिद्धांत के अनुसार मध्यम राज्य का झुकाव अपनी तरफ होना चाहिए।

नेपाल की इसी भू-राजनीतिक स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए वैश्विक शक्तियां भी वहाँ अपना हित तलाश करने की कोशिश कर रही हैं। अमेरिका इस कड़ी में सबसे पहले आता है क्योंकि आज ग्लोबल पॉलिटिक्स में अमेरिका को चीन काउंटर कर रहा है और  इस कारण नेपाल में अमेरिका की अभिरुचि बढ़ जाती है। हाल के वर्षों में नेपाल का झुकाव चीन की ओर बढ़ा है और भारत से दूरी बढ़ी है। अतः अमेरिका इंडोपेसिफिक स्ट्रेटजी में नेपाल को अपने साथ चाहता है। नेपाल एक साफ्ट स्टेट है। साफ्ट स्टेट वह राज्य होता है जो अपने कानून को ठीक से लागू करने की क्षमता न रखता हो, बुनियादी सुविधाओं के विकास को करने में अक्षम हो। अमेरिका नैशनल एंडोमेन्ट फॉर डेमोक्रेसी के जरिए नेपाल की सहायता करने का इच्छुक था। इसी क्रम में 2017 में उसने  मिलेनियम चैलेंज कार्पोरेशन के जरिए 500 मिलियन डॉलर ग्रांट देने का प्रस्ताव नेपाल के समक्ष रखा परन्तु तत्कालीन प्रधानमंत्री के पी ओली ने मना कर दिया। इसके पीछे कारण वस्तुतः मिलेनियम चैलेंज कार्पोरेशन का अनुच्छेद 7.1 था। इसके तहत इस ग्रांट को लेने के बाद यदि अमेरिका कोई प्रोजेक्ट वहाँ चलाता और यदि यह प्रोजेक्ट किसी भी स्तर पर नेपाल के घरेलू कानून के विरुद्ध होता तो यह समझौता नेपाली कानून से ऊपर होगा, साथ ही अमेरिकी अधिकारी नेपाली कानून के दायरे से बाहर होंगे। इस ग्रांट से नेपाल की तरक्की होगी और सॉफ्ट स्टेट का धब्बा भी हट जाएगा। के पी ओली के इस कदम से अमेरिका और नेपाल के बीच दरार बढ़ गयी।

अन्ततः जुलाई 2021 में ओली सरकार के पतन के बाद देउबा सरकार ने इसको स्वीकार कर लिया। इसके बाद अमेरिका ने ग्रांट दे दी किन्तु समस्या खत्म नही हुई अमेरिका ने नेपाल को चीन के ‘बेल्ट एण्ड रोड इनीसीएटिव’ से नेपाल को अलग होने के लिए कहा लेकिन नेपाल तो अब तक पूरी तरह से चीनी चंगुल में फंस चुका है। अमेरिका अपने इंडोपेसिफिक स्ट्रेटजी को लेकर दृढ़ संकल्पित है और वह चाहता है कि चीन का वहाँ से प्रभाव कम हो। अतः इस बात की प्रबल संभावना है कि इसी के मद्देनज़र अमेरिका ने इस संघर्ष को हवा दी हो। चीन भी ऐसा कर सकता है क्योंकि ओली सरकार उसके लिए फायदे का सौदा थी। ऐसा लगता है कि पाकिस्तान का भी हाथ हो क्योंकि हाल के दिनों में पाकिस्तान का प्रभाव कम हुआ है । आई एस आई चाहती है कि नेपाल उसके लिए फिर से पनाहगाह बने।

भारत का जहाँ तक प्रश्न है तो पड़ोस में जितनी समृद्धि होगी, उतना ही उसके हित में होगा। भारत नेपाल में स्थिर सरकार चाहता है। यह नेपाल और भारत दोनों के नजरिए से अत्यन्त जरूरी है। नेपाल यद्यपि एक लोकतान्त्रिक देश है किन्तु वहाँ अभी भी राजनीतिक संस्कृति विकसित नही हो सकी है। इसी कारण वहाँ लोकतंत्रीकरण की प्रवृत्ति विकसित नही हो सकी है। अब जब वहाँसुशीला कार्की के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हो चुका है तो भारत चाहेगा कि यथा शीघ्र नेपाल में एक स्थिर सरकार बने जो भ्रष्टाचार , भाई भतीजावाद और विदेशी शक्तियों से पूरी तरह मुक्त हो। यह भारत , नेपाल के साथ ही दक्षिण एशिया के लिए अत्यन्त आवश्यक है।

डॉ ब्रजेश कुमार मिश्र

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress