राजनीति

हाथ में खूंखार हिडमा के पोस्टर, जेब में चिली स्प्रे- ये कैसे पर्यावरण समर्थक है?

रामस्वरूप रावतसरे

राजधानी दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण लगातार खतरनाक स्तर पर बना हुआ है। इसी गंभीर स्थिति का हवाला देते हुए कुछ युवाओं ने इंडिया गेट पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। शुरुआत में वे ये दिखा रहे थे कि वे हवा की खराब गुणवत्ता को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन थोड़ी देर बाद उनका असली रंग सामने आ गया। वामपंथी प्रदर्शनकारियों ने हाल ही में मारे गए खूंखार नक्सली हिडमा के समर्थन में नारेबाजी शुरू कर दी और ‘कॉमरेड हिडमा अमर रहे’ के नारे लगाए। इन वापपंथी प्रदर्शनकारियों की तैयारी देखकर साफ समझा जा सकता है कि प्रदूषण तो एक बहाना था, इनका मुद्दा कुछ और था क्योंकि प्रदर्शनकारी अपने साथ हिडमा के नाम लिखी तख्तियाँ और पोस्टर ही नहीं बल्कि पेपर स्प्रे भी लेकर आए थे। पुलिस ने जब इनसे शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने की माँग की तो इन्होंने पुलिसकर्मियों पर इसका इस्तेमाल किया।

पुलिस के अनुसार, 23 नवंबर 2025 को करीब 4.30 बजे ये प्रदर्शनकारी इंडिया गेट के सी-हेक्सागन क्षेत्र में जुटे। वहाँ मौजूद पुलिस ने उन्हें शांतिपूर्ण तरीके से हटने को कहा लेकिन वे लगातार हिडमा के पक्ष में नारे लगाते रहे और निर्देशों को नजरअंदाज करते रहे। स्थिति तब बिगड़ गई जब पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हटाना शुरू किया। इसी दौरान प्रदर्शन कर रहे  कुछ लोगों ने पुलिस पर पेपर स्प्रे कर दिया, जिससे मौके पर अफरा-तफरी मच गई। कई पुलिसकर्मियों की आँखों में तेज जलन हुई और तीन से चार कर्मियों को तुरंत आरएमएल अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उनका इलाज जारी है। नई दिल्ली के डीसीपी देवेश कुमार के अनुसार “पहली बार हमने पुलिसवालों पर मिर्च स्प्रे का इस्तेमाल होते देखा।

 जानकारी के अनुसार कुछ प्रदर्शनकारी सी-हेक्सागन के अंदर जमा हो गए और फिर उस बैरिकेड को पार करने की कोशिश की जिसे पुलिस ने आने-जाने पर रोक लगाने के लिए लगाया था हालाँकि, वे नहीं माने. उन्होंने बैरिकेड तोड़ दिया, सड़क पर आ गए, और वहीं बैठ गए। पुलिस ने उनसे हटने की रिक्वेस्ट की क्योंकि उनके पीछे कई एम्बुलेंस और मेडिकल कर्मचारी इंतजार कर रहे थे और उन्हें इमरजेंसी एक्सेस की जरूरत थी. पुलिस ने ट्रैफिक में रुकावट से बचने के लिए उन्हें सी-हेक्सागन से हटा दिया। हटाने के दौरान, कई प्रदर्शनकारियों की पुलिस से हाथापाई हुई और कई पुलिस कर्मचारी घायल हो गए। हंगामे के कारण ट्रैफिक व्यवस्था भी प्रभावित हुई। सुरक्षा अधिकारियों ने बताया कि कुल 15 प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया है और उनके खिलाफ पुलिस पर हमला करने और हिंसक गतिविधियों में शामिल होने जैसी गंभीर धाराओं के तहत कार्रवाई की जाएगी।

   जानकारों के अनुसार असल में इन्हें दिल्ली में बढ़ रहे प्रदूषण से तो कोई लेना-देना ही नहीं था। इनका टार्गेट ही अशांति पैदा करना था। एक वामपंथी ने इस पर बयान देते हुए तो भारत के सबसे खूँखार और मोस्ट वांटेड माओवादी कमांडरों में शुमार माड़वी हिड़मा के तारीफ के पुल ही बाँध दिए। उसने कहा, “हिडमा एक जनजातीय है जिसने अपने हक के लिए हथियार उठाए। इसे गलत कह सकते हैं लेकिन वे इसके पीछे के कारण को नकार नहीं सकते। कॉर्पारेटाइजेशन के खिलाफ लड़ाई जनजातियों की लड़ाई है. यह पानी, जंगल और जमीन की लड़ाई है। इस वजह से नारायण कान्हा को देशद्रोही नहीं कहा जा सकता। अपने हक की रक्षा करने वाले लोगों पर ऐसा दबाव नहीं डाला जा सकता।”

      यह पहली बार नहीं जब ये वामपंथी गुट किसी भी अन्य मुद्दे को ढाल बनाकर सामने आया हो और बाद में असली रंग दिखाया हो। किसान आंदोलन के समय भी किसानों के साथ उनकी लड़ाई में शामिल होने को ढोंग कर के इन वामपंथियों ने एक शांत से धरने को दूसरा रंग दे दिया था। उस समय किसानों के हितों की माँग का दावा करने वाले प्रदर्शनकारी अचानक उमर खालिद और शरजील इमाम की तख्तियाँ लेकर बैठ गए थे। इतना ही नहीं, उस समय भी पुलिस को टार्गेट करके हिंसा के प्रयास हुए थे।

    इसके अलावा, साल 2019-20 का समय याद करें तो दिल्ली समेत जगह-जगह सीएए-एनआरसी के विरोध में सड़क पर आकर बैठे प्रदर्शनकारियों ने अपने प्रोटेस्ट का रंग बदल दिया था। उन्हीं प्रदर्शनों का नतीजा था कि दिल्ली को हिंदू विरोधी दंगे झेलने पड़े। 40-50 लोगों की निर्ममता से मौत हुई। पुलिस को निशाना बनाया गया। उनके ऊपर कहीं गर्म पानी फेंका गया था तो कहीं हथियार लेकर उन्हें दौड़ाया गया था। उन्हें टारगेट करने के लिए दिल्ली दंगों में आरोपित गुलफिशा फातिमा जैसे लोगों ने उमर खालिद के कहने पर लाल मिर्च पाउडर, एसिड, बोतलें, डंडे तक जमा किए थे।

 दोबारा वैसी ही स्थिति देखने को मिली है जिसका मतलब साफ है कि पर्यावरण जैसा मुद्दा भी इन वामपंथियों के लिए सिर्फ अपना प्रोपेगेंडा फैलाने का एक साधन मात्र है। अंत में इनका असली चेहरा कभी नक्सल समर्थक, कभी आतंक समर्थक के तौर पर उभर कर आता है। इन्हें समस्या देश, देश की सरकार और देश के कानून से होती है और इनकी संवेदना देश विरोधी तत्वों से। जिस हिडमा के लिए इन्होंने दिल्ली में पुलिस पर हमला किया है, क्या उसकी लड़ाई सच में अपनी जमीन जंगल और अधिकार की थी? क्योंकि अगर ऐसा होता तो उसके हाथ मासूमों की हत्या से लाल नहीं होते।

  हकीकत यही है कि हिडमा बस्तर में नक्सलियों का सबसे बड़ा कमांडर था और सेंट्रल टीम को सँभाल रहा था। माना जाता है कि कर्रेगुट्टा की पहाड़ियों पर जब नक्सलियों के खिलाफ अभियान चलाया गया था, तब माड़वी हिडमा भागने में कामयाब रहा था लेकिन इस बार सुरक्षाबलों ने उसे खत्म कर दिया। हिडमा 150 से अधिक जवानों की जान ले चुका था। साल 2004 से अब तक 26 से अधिक हमलों में वह शामिल था। इन हमलों में 2013 का झीरम अटैक और 2021 का बीजापुर अटैक शामिल है।

   3 अप्रैल 2021 को सुरक्षाबलों ने माड़वी हिडमा को पकड़ने के लिए अभियान चलाया था। बीजापुर में नक्सलियों ने जवानों पर हमला बोल दिया और इस मुठभेड़ में 22 जवान बलिदान हो गए थे। दंतेवाड़ा हमले में सीआरपीएफ के 76 जवानों की बलिदानी हुई थी, इसका नेतृत्व भी इसी ने किया था।

   भारत में नक्सलवाद के खिलाफ मोदी सरकार की आक्रामक मुहिम ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) को घुटनों पर ला दिया है। संगठन की महाराष्ट्र -मध्यप्रदेश -छत्तीसगढ़ (एमएमसी) जोनल कमेटी ने 22 नवंबर 2025 को एक प्रेस रिलीज जारी कर छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों विष्णुदेव साय, देवेंद्र फडणवीस और मोहन यादव को पत्र लिखा है। इसमें हथियार छोड़कर सरेंडर करने और सरकारी पुनर्वास योजना अपनाने की इच्छा जाहिर की गई है।

एमएमसी जोन के प्रवक्ता ‘अनंत’ ने कहा है “हम सशस्त्र संघर्ष को अस्थायी रूप से रोकने के लिए तैयार है। संगठन ने सामूहिक निर्णय प्रक्रिया पूरी करने के लिए 15 फरवरी 2026 तक का समय माँगा है जो सरकार की 31 मार्च 2026 की माओवाद समाप्ति डेडलाइन के दायरे में है। पत्र में स्पष्ट किया गया, “यह समय दूर-दराज के साथियों तक संदेश पहुँचाने और राय लेने के लिए जरूरी है क्योंकि हमारे पास आधुनिक कम्युनिकेशन माध्यम नहीं हैं।”

   संगठन ने पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी सप्ताह मनाने से इनकार कर दिया है, जो पहली बार हो रहा है। अनंत ने अपील की, “इस अवधि में तीनों राज्यों की सरकारें संयम बरतें और सुरक्षा बलों के अभियान, मुखबिर नेटवर्क आधारित ऑपरेशंस को रोकें। हम भी सभी गतिविधियाँ स्थगित रखेंगे ताकि शांति का माहौल बने।”

   एक असामान्य माँग में माओवादियों ने सरकार से निवेदन किया कि पत्र को रेडियो पर मुख्य समाचार से पहले प्रसारित किया जाए क्योंकि “रेडियो ही हमारे साथियों के लिए बाहरी दुनिया से जुड़ने का एकमात्र माध्यम है।” इसके अलावा, जनप्रतिनिधियों, पत्रकारों और यूट्यूब रिपोर्टर्स से मिलने की अनुमति माँगी गई है ताकि मध्यस्थों के जरिए सरेंडर प्रक्रिया तेज हो। पत्र में कहा गया, “हम जनवादी केंद्रीयता के सिद्धांतों पर चलते हैं, इसलिए सबकी सहमति के बिना कोई फैसला नहीं ले सकते।” यह पत्र हालिया हिडमा एनकाउंटर के बाद आया है जिससे संगठन में खलबली मच गई।

इसी खलबली का नतीजा दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण का बहाना कर खूंखार नक्सली हिडमा के समर्थन में नारेबाजी की गई। अब जबकि ‘ऑपरेशन कगार’ अपने अंतिम चरण में है और ‘लाल आतंक’ का खात्मा हो रहा है, ऐसे में अर्बन नक्सल और उनसे जुड़े संगठन अब लोगों को भ्रमित और कट्टरपंथी बनाने के लिए अलग-अलग सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को हथियार की तरह उपयोग कर रहे हैं।

रामस्वरूप रावतसरे