बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन: संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह

डॉ ब्रजेश कुमार मिश्र

          5 अगस्त 2024 को बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना ने त्यागपत्र दे दिया। बांग्लादेशी सेना द्वारा उन्हे बांग्लादेश से भारत जाने में मदद की गयी। यह उपमहाद्वीप के लिए एक रोचक घटना थी। हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के सात महीने बाद भी बांग्लादेश जल रहा है। आखिर बांग्लादेश में ऐसा क्या हुआ कि अचानक से वहाँ हिंसा का दौर शुरू हो गया और प्रधानमंत्री के पदच्युत हो जाने के बाद भी जारी है। 1 जुलाई से 5 अगस्त 2024 के बीच जो हिंसक झड़पें हुई, उन्हें जुलाई क्रांति नाम दिया गया। बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद अन्तराष्ट्रीय राजनीति के क्षितिज पर इस परिवर्तन के पीछे जो षड्यंत्र उभर कर सामने आया, उसमें अमेरिकी प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया गया। उस समय इससे सम्बन्धित खबरें निरन्तर मीडिया में प्रसारित होती रहीं। शेख हसीना ने सत्ता से हटने के बाद इस बात का स्वयं खुलासा किया था कि उनकी सरकार गिराने के पीछे अमेरिकी साजिश थी। उन्होंने दावा किया कि अगर उन्होंने सेंट मार्टिन द्वीप की संप्रभुता अमेरिका को सौंप दी होती तो वह सत्ता में बनी रह सकती थीं परन्तु हाल ही में बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के पीछे एक और षड्यंत्र का पटाक्षेप हुआ है।

वस्तुतः संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर टर्क के द्वारा विगत 5 मार्च  को बी.बी.सी के हार्डटॉक कार्यक्रम में दिए गए साक्षात्कार से ज्ञात हुआ कि इसमें  संयुक्त राष्ट्र का हाथ है।हार्डटॉक कार्यक्रम में वोल्कर टर्क ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र ने बांग्लादेश की सेना को चेतावनी दी थी कि यदि वह जुलाई-अगस्त 2024 के छात्र आंदोलनों के प्रतिकार का प्रयास करती है तो उसे संयुक्त राष्ट्र शांति-मिशनों से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। जुलाई और अगस्त 2024 में अविभेद छात्र आंदोलन ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया जिसके कारण प्रधानमंत्री शेख हसीना का 15 वर्षों का शासन 5 अगस्त 2024 को समाप्त हो गया। तीन दिन बाद मुहम्मद युनूस ने अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार का पदभार ग्रहण किया। वोल्कर टर्क ने कहा कि यह संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप से ही यह संभव हो सका।

टर्क का यह भी कहना था कि छात्रों पर व्यापक दमन हो रहा था और उनकी सबसे बड़ी आशा संयुक्त राष्ट्र की आवाज थी। संयुक्त राष्ट्र द्वारा बांग्लादेशी सेना को दी गयी चेतावनी का प्रतिफल रहा कि आज बांग्लादेश की  स्थिति में बदलाव आया है। आगे उन्होंने कहा  मुहम्मद युनूस के अनुरोध पर संयुक्त राष्ट्र ने एक तथ्य-जांच मिशन भेजा। रिपोर्ट के अनुसार, 1 जुलाई से 5 अगस्त 2024 के बीच करीब 1,400 लोगों की मौत हुई जिनमें कई अल्पसंख्यक समुदायों के लोग शामिल थे। हजारों लोग घायल हुए, और व्यापक दमन हुआ।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने 12 फरवरी को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें बांग्लादेश की पूर्व सरकार, सुरक्षा एजेंसियों और अवामी लीग समर्थकों पर 2023 के छात्र विरोध प्रदर्शनों के दमन में मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगाए गए। रिपोर्ट के अनुसार जिन 1,400 लोगों की मौत हुई उनमें 12-13 प्रतिशत बच्चे भी थे। प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी, मनमानी गिरफ्तारियां और यातनाएं राजनीतिक नेतृत्व के निर्देश पर की गईं। महिलाओं और बच्चों को भी निशाना बनाया गया। संयुक्त राष्ट्र की जांच टीम, जिसमें फोरेंसिक विशेषज्ञ भी शामिल थे, ने सितंबर 2024 में बांग्लादेश में काम करना शुरू किया। टीम ने विश्वविद्यालयों, अस्पतालों और विरोध स्थलों का दौरा कर 900 से अधिक गवाहों की गवाही दर्ज की। रिपोर्ट में निष्पक्ष जांच और न्याय की आवश्यकता पर बल दिया गया ताकि बांग्लादेश में जवाबदेही सुनिश्चित हो सके। रिपोर्ट के अनुसार ये अपराध अंतरराष्ट्रीय अपराधों की श्रेणी में आ सकते हैं और अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय द्वारा जांच योग्य हैं। इसे सत्ता में बने रहने की सरकार की सुनियोजित रणनीति बताया गया। मात्र 46 दिनों में 1,400 से अधिक लोग मारे गए जिनमें अधिकांश सुरक्षा बलों के हाथों मारे गए थे।

इस प्रतिवेदन की पड़ताल करने पर लगता है कि यह प्रतिवेदन एक पक्षीय तथ्य प्रस्तुत करता है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र एक वैश्विक शांति स्थापित करने वाली संस्था है किन्तु बांग्लादेश के मामले में टर्क के द्वारा जो विचार व्यक्त किया गया है ,वह स्वयं संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। जो प्रतिवेदन विगत फरवरी माह में प्रस्तुत किया गया उसमें शेख हसीना की सरकार को जिम्मेदार ठहराया गया है किन्तु 5 अगस्त के बाद अल्पसंख्यकों पर हुई हिंसा के सन्दर्भ में इसी प्रतिवेदन के अध्याय 6 में यह कहा गया है कि अभी भी बांग्लादेश में मानवाधिकार हनन जारी है परन्तु इसके लिए जिम्मेदार कौन है, इस पर चुप्पी इस बात का द्योतक है कि संयुक्त राष्ट्र कहीं न कहीं इसका लाभ मुहम्मद युनूस को देना चाहता है।

टर्क के द्वारा व्यक्त विचार से ऐसा प्रतीत होता है कि संयुक्त राष्ट्र में तो इतनी सामर्थ्य नही है कि वह स्वयं कुछ कर सके जब तक कि अमेरिका ना चाहे। अब जब अमेरिका में सत्ता परिवर्तन हो चुका है तो आने वाले दिनों मे इसका असर बांग्लादेश पर भी पड़ेगा। मुहम्मद युनूसपर लगातार चुनाव करने का दबाव है। देर-सबेर मुहम्मद युनूस को चुनाव करना ही होगा। इसकी सुगबुगाहट अब वहाँ नजर आने लगी है, इसकी शरुआत जितनी जल्दी हो उतना अच्छा होगा ,तभी जा कर बांग्लादेशी अवाम को सुकून की जिंदगी नसीब होगा।

डॉ ब्रजेश कुमार मिश्र

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