लेख

प्रशांत किशोर का गुब्बारा फूलने से पहले ही फट गया

राजेश कुमार पासी

बिहार विधानसभा चुनाव में सबकी नजर प्रशांत किशोर की नई पार्टी जन सुराज पार्टी पर थी क्योंकि उनका दावा है कि उन्होंने अपनी रणनीतियों के कारण कई पार्टियों को चुनाव जिताया है । ऐसा लगता था कि बिहार चुनाव में वो बड़ा उलटफेर कर सकते हैं। मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि वो बिहार के चुनाव परिणाम बदल सकते हैं। मैंने सिर्फ इतना लिखा कि चुनाव परिणाम बताएंगे कि उनकी पार्टी को क्या मिलता है। उन्हें पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता था क्योंकि उन्होंने बड़ी मेहनत की है। मैं उन्हें ज्यादा महत्व इसलिए नहीं दे रहा था क्योंकि बिहार में अभी तीसरी शक्ति के लिए जगह नहीं है। राजद आज भी अपने वोट बैंक को मजबूती से थामे हुए है और नीतीश-मोदी की जोड़ी के रहते मतदाताओं को तीसरे विकल्प की ओर देखने की जरूरत नहीं है। 

प्रशान्त किशोर के गुब्बारे में मीडिया ने इतनी ज्यादा हवा भर दी थी कि उनका कद बहुत बड़ा नजर आ रहा था। वास्तव में मोदी का विरोधी सिर्फ विपक्षी दल नहीं हैं बल्कि उनका विरोधी मीडिया का एक बड़ा वर्ग भी है जो मोदी के लगातार सत्ता में बने रहने से परेशान है। इस मीडिया को जहां भी मोदी के खिलाफ कोई उम्मीद की किरण दिखाई देती है, वो उस तरफ चल पड़ता है। इस मीडिया को लगा कि प्रशान्त किशोर देश के दूसरे केजरीवाल बन सकते हैं इसलिए वो पूरी ताकत से इनके गुब्बारे को फुलाने में लगा हुआ था। भारत में एक बड़ा वर्ग है, जो कट्टर मोदी विरोधी है और वो किसी भी तरह मोदी को सत्ता से बाहर देखना चाहता है। उसे समझ नहीं आ रहा है कि क्यों जनता मोदी की इतनी दीवानी हो गई है। यही कारण है कि अपनी खीज मिटाने के लिए ये वर्ग मोदी समर्थकों को अंधभक्त बोलता है जबकि सच्चाई यह है कि ये वर्ग मोदी का अंध विरोधी है । ये नहीं जानते कि इन्हें मोदी से इतनी नफरत क्यों है। समस्या यह है कि पिछले 11 सालों की विपक्ष की हार ने इस वर्ग को हताशा से भर दिया है। प्रशांत किशोर जैसे व्यक्ति के बिहार की राजनीति में आने के कारण उन्हें लगा कि ये एनडीए को हरा सकता है। वास्तव में ये वर्ग विपक्षी दलों से भी निराश हो चुका है. इसे एक और केजरीवाल की तलाश है । सच यही है कि प्रशांत किशोर मीडिया का इस्तेमाल कैसे करना है, ये अच्छी तरह जानते हैं। इसकी वजह यह है कि उन्होंने जिन दलों के लिए चुनाव अभियान की रणनीति बनाई है, उनके लिए उन्होंने मीडिया प्रबंधन भी किया है। 

                 विपक्षी दलों और मीडिया को लग रहा था कि प्रशांत किशोर सिर्फ भाजपा का वोट काटेंगे जिससे महागठबंधन को बड़ा फायदा हो सकता है। इसके पीछे उनकी सोच यह थी कि जन सुराज पार्टी को सवर्णो का ही वोट मिलेगा । मुस्लिम और यादव महागठबंधन के पीछे एकजुट होकर खड़े रहेंगे । इसलिए विपक्षी दलों ने प्रशांत किशोर को अपना निशाना नहीं बनाया । प्रशांत ने भी महागठबंधन पर हल्की चोट की लेकिन उनका मुख्य निशाना एनडीए पर ही था । उनमें केजरीवाल ढूंढने वाले मीडिया को यह बात समझ नहीं आ रही है कि केजरीवाल अन्ना आंदोलन की ऊर्जा पाकर खड़े हुए थे। इंडिया अगेंस्ट करप्शन के आंदोलन और अन्ना हजारे के समर्थकों की मदद से उन्हें कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज मिल गयी थी और आम आदमी पार्टी एक बड़ा संगठन बन गयी । ऐसे ही अगर हम भारतीय लोकतंत्र के इतिहास को देखे तो पता चलता है कि आंदोलन से ही निकलकर जनता पार्टी और असम गण परिषद ने सत्ता संभाली थी । प्रशांत किशोर के पास न तो संगठन है और न ही उन्हें किसी आंदोलन से शक्ति मिली हुई है । उनके लिए काम करने वाले ज्यादातर लोग उनके पेड वर्कर हैं जो पैसे लेकर उनका काम कर रहे हैं। उन्होंने बिहार में लंबी यात्रा निकाल कर माहौल बनाने की कोशिश की, लेकिन चुनाव परिणामों ने साबित कर दिया है कि उसका कोई फायदा नहीं हुआ है ।

वास्तव में प्रशांत को अपने बारे में यह गलतफहमी हो गई थी कि वो अपनी रणनीतियों से चुनाव जीत सकते हैं । इसकी वजह यह है कि उन्होंने जिन पार्टियों के लिए काम किया, उन्हें चुनावी सफलता हासिल हुई । 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रशांत भाजपा के लिए काम कर रहे थे और भाजपा को उन चुनावों में बड़ी सफलता हासिल हुई । मीडिया के एक वर्ग ने यह विमर्श चलाया कि प्रशांत किशोर का मोदी की सफलता में बड़ा हाथ है, जबकि सच्चाई यह है कि भाजपा के लिए प्रशांत किशोर की तरह कई व्यक्ति काम कर रहे थे । सच यह है कि प्रशांत किशोर की राजनीतिक महत्वाकांक्षा उस समय ही उबाल मारने लगी थी । उन्होंने कोशिश की थी कि उन्हें भाजपा से कोई राजनीतिक फायदा मिल जाए लेकिन भाजपा ने उनसे दूरी बना ली । बिहार में जेडीयू के लिए भी उन्होंने काम किया और जब जेडीयू को चुनाव में सफलता मिल गई तो उन्होंने नीतीश कुमार से पार्टी में पद हासिल कर लिया । वो ज्यादा समय तक जेडीयू में काम नहीं कर पाए और उन्हें पार्टी छोड़नी पड़ी । 

                पहले बाहुबली राजनीतिक दलों के लिए काम करते थे और उनके लिए वोट डलवाते थे । धीरे-धीरे बाहुबलियों को लगा कि वो जब दूसरों को जीता सकते हैं तो खुद क्यों नहीं जीत सकते । इसके बाद कई बाहुबलियों ने राजनीति में कदम बढ़ा दिए । ऐसे ही प्रशान्त को महसूस हुआ कि जब वो दूसरों को चुनाव जीता सकते हैं तो खुद की पार्टी बनाकर क्यों नहीं सत्ता हासिल कर लेते । यही सोचकर उन्होंने अपनी पार्टी बना ली और तीन साल से बिहार में माहौल बनाने के लिए घूम रहे थे । उन्होंने बिहार के जमीनी मुद्दे उठाए और जनता के बीच जाकर अपनी पार्टी का प्रचार किया । उन्हें मीडिया ने इतना ज्यादा महत्व दिया कि सबको लगने लगा कि प्रशांत किशोर की पार्टी बिहार की राजनीति में नई खिलाड़ी बन सकती है । उन्होंने भी बड़े-बड़े दावे करने शुरू कर दिये । उनका कहना था कि उनकी पार्टी अगर 150 सीटों से कम पर जीत हासिल करती है तो वो उसे अपनी हार मानेंगे । दूसरी तरफ उनका कहना था कि अगर जेडीयू 25 से ज्यादा सीट जीतने में कामयाब रहा तो वो राजनीति से संन्यास ले लेंगे। मीडिया द्वारा सबसे ज्यादा साक्षात्कार और पॉडकास्ट उनके ही लिए गए हैं जबकि 19 सीटें जीतने वाले चिराग पासवान की मीडिया ने बिल्कुल अनदेखी कर दी । चुनाव परिणामों ने बता दिया कि चिराग प्रशांत से कहीं बड़े खिलाड़ी हैं । वास्तव में प्रशांत किशोर मीडिया में छाए हुए थे, जबकि चिराग जमीन पर काम कर रहे थे । अब वही मीडिया प्रशांत से पूछ रहा है कि जेडीयू को 80 से भी ज्यादा सीटें मिल गई है, तो क्या आप राजनीति छोड़ देंगे । अब वो कह रहे हैं कि उनके पास कोई पद ही नहीं है जिसे वो छोड़ दें । सवाल यह है कि जब वो ऐसा दावा कर रहे थे, तब उनके पास कौन सा पद था । उन्होंने साबित कर दिया है कि वो सिर्फ हवा-हवाई दावे करते हैं । दूसरी तरफ उन्होंने यह भी साबित कर दिया है कि वो चुनाव परिणामों का भी सही आकलन नहीं कर सकते । उन्हें अहसास ही नहीं हुआ कि एनडीए तीन-चौथाई से ज्यादा बहुमत लाकर सरकार बनाने जा रहा है । 

                उनके बयानों के कारण उनकी विश्वसनीयता भी खत्म होती जा रही है । अभी एनडीए को जनता का जबरदस्त समर्थन प्राप्त हुआ है और उन्होंने अभी से सरकार पर हमले शुरू कर दिए हैं । वो अपनी करारी हार भी पचा नहीं पा रहे हैं । उनके 96 प्रतिशत से ज्यादा उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा सके हैं । वो जीरो सीट पाकर भी जनता के मूड को समझ नहीं पा रहे हैं । वो अब एनडीए पर वोट खरीदने का आरोप लगाकर बिहार की जनता का अपमान कर रहे हैं । जहां तक बात है सरकारी योजनाओं से जनता को फायदा देने की, तो यह काम तो सारी पार्टियां करती हैं । कुछ चुनाव जीत जाती हैं और कुछ हार जाती है । प्रशान्त का गुब्बारा बहुत फुलाया गया था, लेकिन अब उसकी सारी हवा निकल गई है। प्रशांत किशोर सब समझ रहे हैं, लेकिन मानने को तैयार नहीं हैं । उनकी पार्टी की ऐसी हालत हो गई है कि अब उनके साथ लोग जुड़ने वाले नहीं हैं। वैसे भी केजरीवाल के बाद लोग नई पार्टियों पर भरोसा करने को तैयार नहीं हैं। प्रशान्त किशोर के पास न तो संगठन है और न ही ऐसे लोग हैं जो उनके लिए आगे काम कर सके । उनकी पार्टी पैसों के दम पर खड़ी हुई है, लेकिन अब इस पार्टी को कायम रखना ही उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी । मीडिया भी धीरे-धीरे उनसे दूर होने वाला है, क्योंकि अब उनके अंदर ज्यादा राजनीतिक संभावनाएं नजर नहीं आ रही हैं। 

राजेश कुमार पासी