व्यंग्य

वक्तव्य की तैयारी

विजय कुमार
भारत सरकार चाहती है कि देश में शांति रहे। देश में भले ही न रहे; पर दिल्ली में अवश्य रहे, चूंकि राजधानी होने के कारण यहां की राई को भी मीडिया वाले पहाड़ बनाकर पूरे देश और दुनिया में दिखा देते हैं। बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के आंदोलन से हुई छीछालेदर के कारण सरकार अब बहुत सावधान थी।

पर इसके बाद भी सरकार की नाक के एकदम नीचे, दिल्ली उच्च न्यायालय में बम फट गया। एक दर्जन लोग मारे गये और कई दर्जन अस्पताल में पहुंच गये। सरकार का कर्तव्य बनता था कि तुरन्त कुछ करे। पुलिस वाले अपने काम में लग गये, तो अस्पताल वाले अपने। मीडिया वालों ने भी अपना मोर्चा संभाल लिया। सरकार ने भी हर बार की तरह एक अच्छा वक्तव्य देने का निर्णय लिया। उसे तैयार करने के लिए आननफानन में एक बैठक बुला ली गयी।

बैठक में आये अधिकारी चेहरे पर गंभीरता ओ़े कुर्सियों पर बैठ गये। आधा कप चाय और एक प्लेट काजू बरफी उदरस्थ कर बड़े मंत्री जी ने छोटा सा भाषण दिया और वक्तव्य तैयार करने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गयी।

पहला अधिकारी -सबसे पहले हमें इस कांड की निन्दा करनी चाहिए।

दूसरा -निन्दा के बदले कड़ी निन्दा शब्द अधिक अच्छा रहेगा।

तीसरा- यदि हम इसे कायरना हरकत कहें, तो कैसा रहेगा ? पिछले विस्फोट के समय भी हमने ऐसा ही कहा था।

मंत्री -यह भी लिखो कि सोनिया जी और राहुल जी के महान नेतृत्व में हम इन्हें रोक कर दिखाएंगे।

चौथा सर, अभीअभी कश्मीर से एक मेल आया है, जिसमें इसकी जिम्मेदारी हूजी ने ली है। तो क्या इसमें इस्लामी आतंकवाद जोड़ना ठीक रहेगा ?

मंत्री -तुम्हारा दिमाग खराब है। हमारी सरकार सेक्यूलर है। हम ऐसे शब्द प्रयोग नहीं कर सकते। तुम आर.एस.एस वाले हो क्या ?

तीसरा- सर, क्यों न हम इस लापरवाही के लिए दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को जिम्मेदार बताएं। उनका बेटा अन्ना से बहुत घुलामिला है।

पहला- तुम मूर्ख हो। दिल्ली पुलिस सीधे गृहमंत्री के अधीन होती है। इससे तो हम ही घिर जाएंगे।

दूसरा -सर, हमें जनता से अपील करनी चाहिए कि वह सरकार के भरोसे न रहकर स्वयं ही हर क्षण सावधान रहे।

पहला- यह कहना ठीक नहीं है। इससे तो हमारा नाकारापन प्रकट होगा। हम कहें कि सरकार की तरह जनता भी सावधान रहे।

मंत्री -हां, यह ठीक रहेगा।

तीसरा -सर दिग्विजय सिंह जी का संदेश आया है कि यदि वक्तव्य में किसी तरह हिन्दू आतंकवाद डाला जा सके, तो उ0प्र0 के अगले चुनाव में लाभ हो सकता है।

मंत्री- चुप रहो। उन्हें उ0प्र0 का चुनाव दिखाई दे रहा है, यहां जान पर बनी है। यह तो अच्छा है कि प्रधानमंत्री जी बांग्लादेश गये हैं। वरना अब तक कान खिंचाई हो जाती।

पहला- हमें यह कहना चाहिए कि हमारी खुफिया एजेंसियों ने कुछ नहीं बताया था। इससे उनके गले का फंदा भी कुछ कसेगा ?

दूसरा -पर उनका कहना है कि हमने संकेत दिये थे।

पहला- ऐसे संकेत तो वे एक दिन में दो बार देते हैं। साफ बात तो नहीं कही।

दूसरा- हां यह तो है।

चौथा -मेल में बम फोड़ने वालों ने कहा है कि जब तक संसद पर हमला करने वाले मो0 अफजल को नहीं छोड़ा जाएगा, तब तक ऐसे हमले होते रहेंगे।

मंत्री -अच्छा..?

चौथा- जी सर, इसलिए हमें कहना चाहिए कि हम इन धमकियों से डरने वाले नहीं हैं और जल्दी ही अफजल को फांसी पर लटका देंगे।

पहला- ऐसा कह कर हम अपने हाथ क्यों बांधें ? हो सकता है कि कल किसी मजबूरी के चलते हमें उसे छोड़ना ही पड़ जाए। आखिर उमर अब्दुल्ला को भी तो साथ रखना है। इसके बदले हम गोलमोल बात कहें कि अब हमारी सहनशक्ति जवाब दे रही है। यदि ऐसी घटनाएं होती रहीं, तो हम चुप नहीं रहेंगे।

इस सारे झंझट में आधा घंटा बीत गया। टाइप वाला प्रतीक्षा में था कि कोई वाक्य फाइनल हो, तो वह लिखना प्रारम्भ करे। मंत्री जी को एक कार्यक्रम में भी जाना था। वे बोले ऐसा करो, पिछले विस्फोट के समय जो वक्तव्य दिया था, उसे ही निकाल लो। समय, स्थान, मृतक संख्या आदि बदल कर उसे ही जारी कर दो।

पहला अधिकारी- मंत्री जी का पक्का चमचा था। बोला आप ठीक कह रहे हैं। हमले तो होते ही रहते हैं। आज हुआ है, तो आगे भी होगा। जब बम दुबारा फोड़े जा सकते हैं, तो वक्तव्य भी दुबारा दिया जा सकता है ?

टाइप वाले ने कुछ आवश्यक संशोधन कर पिछले वक्तव्य की प्रति कम्यूटर से निकाल दी। मंत्री जी ने उस पर हस्ताक्षर कर दिये। प्रेस सचिव ने उसे बाहर बैठे पत्रकारों में बांट दिया।

बैठक समाप्त घोषित कर दी गयी। मंत्री जी कार्यक्रम में चल दिये और अधिकारी लोग फाइव स्टार नाश्ते की ओर।