जनस्वास्थ्य: प्राकृतिक करौंदे का अचार, एक अनुकरणीय नवाचार

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कमलेश पांडेय

उत्तरप्रदेश में “दवा नहीं, प्राकृतिक करौंदे के अचार का सेवन” नामक एक अनुकरणीय नवाचार शुरू किया गया है जिसको नीति आयोग, नई दिल्ली के मार्फ़त जन-जन तक पहुंचाने के लिए जिलाधिकारी, जौनपुर डॉ दिनेश चंद्र सिंह ने अपनी ओर से एक संस्तुति पत्र भी आयोग को लिखा है जिसमें नवाचार विषयक अद्यतन जानकारी और महत्वपूर्ण प्रयास के बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया है। मसलन, इस नवाचार के तहत बच्चों को अनावश्यक एलोपैथिक दवा खाते रहने के बजाए प्राकृतिक खान-पान पर ध्यान देने को उत्प्रेरित किया जा रहा है ताकि जनस्वास्थ्य की दिशा बदले और वह उत्कृष्ट हो सके। 

मेरी निजी राय है कि यदि इस नवाचार को बाल वाटिका के अलावा ग्राम वाटिका या मोहल्ला वाटिका के रूप में विस्तार दे दिया जाए और जनमिशन से जोड़ कर सड़क के किनारों तक इसको विस्तार दे दिया जाए तो बच्चों के साथ-साथ उनके माता-पिता और अभिभावकों का भी भला हो जाएगा। साथ ही साथ स्कूलों-कॉलेजों और ग्राम-मोहल्ला समाज की परती पड़ी सार्वजनिक भूमियों का भी सदुपयोग हो जाएगा। ऐसा करके सड़कों, रेल पटरियों, नदियों के किनारे पड़ी अनुत्पादक भूमि का भी सदुपयोग किया जा सकता है।

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रेरणा से और सर्व शिक्षा अभियान का पदेन अध्यक्ष होने के नाते इस हेतु शिक्षा में सुधार के साथ साथ हर दृष्टि से निपुण बच्चे बनाने एवं बच्चों के स्वास्थ्य हेतु पीएम पोषण योजना (मध्यान्ह भोजन योजना) के माध्यम से जिलाधिकारी डॉ दिनेश चन्द्र सिंह (आईएएस) ने एक अनोखी पहल की है जिसके तहत उन्होंने बच्चों को मिड डे मील में औषधीय गुणों से भरपूर फल “करौंदा” का अचार अवश्य देने की बात कही है क्योंकि यह हरेक दृष्टि से बच्चों के स्वास्थ्य के लिए गुणकारी है। 

बताया जाता है कि जौनपुर की कृषि व्यवस्था एवं कृषकों के साथ साथ सभी नागरिकों के प्रति भी डीएम सिंह अपार सम्मान का भाव रखते हैं। इसलिए उन्होंने लोगों को उनके भोजन में सदैव उद्यान उत्पादित, कृषि आधारित फल-फूल, शाक-सब्जी, जैविक खाद्यान्न के प्रयोग को बढ़ाने और इस हेतु अपने बच्चों को भी उत्प्रेरित करने का सुझाव दिया हैं। उनके प्रयासों से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य की जनस्वास्थ्य मुहिम “दवा नहीं अपितु प्राकृतिक आहार का सेवन कीजिए।

जनपद के गांवों में कृषकों के प्रयास से उपजे फल, शाक, सब्जी एवं प्राकृतिक खाद्य पदार्थ से नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों और अवाम के स्वास्थ्य को सुधारने के प्रति उन्होंने जो प्रतिबद्धता जताई है, वह बेहद अनुकरणीय है। जिलाधिकारी सिंह ने इस हेतु अधीनस्थ अधिकारियों को न केवल दिशा निर्देश दिए हैं बल्कि अपने आकस्मिक निरीक्षण में स्थानीय फल, शाक, सब्जी, जैविक खाद्यान्न आदि को बढ़ावा देने के लिए स्कूली बच्चों व जनसामान्य को उत्प्रेरित भी करते रहते हैं। 

इसी क्रम में डॉ सिंह सबसे सस्ते एवं पौष्टिक अचार “करौंदा के अचार” को जौनपुर के प्रत्येक स्कूल में मध्यान्ह भोजन योजना के अन्तर्गत भोजन सहित हर परिवार में पहुंचाने के लिए प्रयत्नशील हैं। उन्होंने बताया है कि करौंदे के अचार के फायदे देखकर सभी लोग आश्चर्यचकित हो जाएंगे बशर्ते कि वे लोग उसका नियमित सेवन करें। इससे उनकी पाचन क्रिया में सुधार होगा, विटामिन-सी के माध्यम से प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होगी, खून में आयरन की कमी दूर होगी और एंटीऑक्सीडेंट गुण के कारण त्वचा और हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलेगा। यह अचार शरीर को रोगों से लड़ने में मदद करता है एवं मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है। 

आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि मनुष्य के जीवनकाल के प्रारंभिक वर्षों 0 से 12 वर्षों में ही मस्तिष्क का 70 प्रतिशत विकास होता है। इस उद्देश्य से करौंदे का अचार और भी अधिक उपयोगी है क्योंकि इसमें ट्रिप्टोफ़ैन जैसे पोषक तत्व के अतिरिक्त मैग्निशियम, कैलशियम, आयरन तथा घुलनशील फाइबर पाए जाते हैं। इसलिए बच्चों, युवाओं और वृद्धों, सबके स्वास्थ्य में सुधार हो, इसलिए  इसके प्रयोग एवं उपभोग को प्रशासनिक स्तर पर बढ़ावा देने के प्रयास कर रहे हैं। 

मसलन, इस अचार के साथ हरी शाक-सब्जी, सस्ते एवं सर्वसुलभ कद्दू/कोहड़ा, लौकी, नेनुआ, कटहल, आँवला, सहजन, आम, अमरूद आदि के उपयोग को भी यदि खानपान में बढ़ावा दिया जाए तो मानवीय स्वास्थ्य में अभूतपूर्व बदलाव महसूस किया जा सकता है। इसलिए जिलाधिकारी की इस लोककल्याणकारी मुहिम से जनसामान्य के स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार की दिशा में सार्थक प्रयास हो रहा है। 

इस अभियान से जनपद में जन-सामान्य के मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य में वृद्धि से न केवल लोगों की कार्य कुशलता बढ़ रही है अपितु स्वास्थ्य सेवाओं पर भी बोझ कम हो रहा है। गत 4 सितंबर को कम्पोजिट विद्यालय डिहजनिया, ब्लाक-सिकरारा का आकस्मिक निरीक्षण के क्रम में उन्होंने विभिन्न स्कूलों में बच्चों के ज्ञान की वास्तविक जांच भी खुद से की और शिक्षण प्रणाली में हुए अभूतपूर्व सुधार पर संतुष्टि जताई। 

इस दौरान उन्होंने विद्यालय के शिक्षक व शिक्षिकाओं की मौजूदगी में उन्होंने विद्यालय बाल वाटिका के महत्व को समझाया और आम, अमरूद, सहजन, केला, नींबू आदि लोकप्रिय वृक्षों के वृक्षारोपण कार्य को तेज करने का निर्देश दिया, ताकि निकट भविष्य में बच्चों को स्कूली परिसर में ही फल-फूल मुफ्त में मिल सके। साथ ही, उन्होंने देशी औषधि तुल्य व पौष्टिक विटामिनों से भरे सहजन आदि पेड़ों व उनकी फलियों के महत्व को दर्शाते हुए बच्चों के सामान्य ज्ञान की परीक्षा भी ली। ततपश्चात बच्चों का स्वागत किया। उनको खान पान के बारे में जानकारी दी तथा उत्कृष्ट ज्ञान अर्जित करने के लिए बच्चों को उत्प्रेरित किया। 

उन्होंने शिक्षकों से अनुरोध किया कि बच्चों को अद्यतन ज्ञान देकर अपने दायित्वों का निर्वहन करें। ततपश्चात बच्चों के उत्कृष्ट प्रदर्शन से खुश होकर 5 बच्चियों को अंगवस्त्रम से सम्मानित किये और बच्चों को मिष्ठान्न वितरण किया ।

बच्चों तथा सम्मानित अध्यापक-अध्यापिकाओं का उत्साहवर्धन भी किया । साथ ही बच्चों को विभिन्न प्रकार के अचार का स्वाद भी चखाये। कुछ पैकेट व जार तो वो अपने साथ लेकर आए और कुछ बाद में भी भिजवाने की बात कही। उनकी इस अदद कोशिश की सफलता पर पूरी बेसिक शिक्षा की टीम की तरफ से जिलाधिकारी को ससम्मान, सहृदय साधुवाद दिया गया है। शिक्षकों ने बताया कि जिलाधिकारी डॉ सिंह के जनप्रिय व्यवहार से बच्चों का काफी उत्साह बर्द्धन हुआ है। उनमें कुछ कर गुजरने की प्रेरणा जगी है। 

जिलाधिकारी डॉ सिंह का मानना है कि किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण करने में उसके माता-पिता ही प्राथमिक शिक्षक होते हैं। उनके अतिरिक्त व्यक्तित्व के विकास में सर्वाधिक योगदान प्रारंभिक जीवन की शिक्षा के क्रम में जो भी शिक्षक बन्धु बच्चों की शिक्षा देते हैं, उनका महत्व है क्योंकि कक्षा 1 से 5 तक की शिक्षा के दौरान शिक्षक बच्चों न केवल शब्दों का ज्ञान सिखाते हैं बल्कि उनके आचार विचार और आचरण को एक समसामयिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक विचारों के अनुरूप उनके व्यक्तित्व का निर्माण करने का प्रयास करते हैं।

इसलिए प्राइमरी शिक्षक न केवल गुण अपितु उस बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण के समग्र पहलुओं के निर्माण करने के प्रारंभिक शिक्षक होते हैं। चूंकि 1 से 12 साल तक के ही उम्र के बच्चों का मानसिक विकास होता है, इसलिए प्रारंभिक शिक्षकों का महत्व बढ़ जाता है। इसलिए मेरे द्वारा नवाचार के रूप में शिक्षकों से अनुरोध किया गया है कि बच्चों का स्वास्थ्य उत्तम हो, उनका बौद्धिक विकास हो, इसलिए करौंदे के अचार को जो बरसात के दिनों में सबसे सस्ता, सर्वसुलभ और अत्यंत गुणकारी है।

इसके गुणों के बारे में मैंने नीति आयोग को भी विस्तार से लिखा है और निवेदन किया है कि उसको नवचार के रूप में अपनाइए जिससे कि बच्चों की शिक्षा के साथ साथ उनका मानसिक विकास हो सके और वह स्वस्थ होकर अपने जीवन में आगे बढ़ सकें। नीति आयोग में नवाचार के रूप में मेरे द्वारा अपनी ओर से संस्तुति भी की गई है कि इस प्रकार के विचारों को बच्चों की  समस्त प्रारंभिक शिक्षा में समेकित करें। 

कहना न होगा कि यदि इस प्राकृतिक अवधारणा को पूरे देश में लागू कर दिया जाए तो मानव समुदाय का बहुत भला हो जाएगा, क्योंकि गलत खानपान से अस्पतालों में रोगियों की भीड़ बढ़ रही है और अमेरिका के पैटर्न पर विकसित हो रहा हमारा चिकित्सा उद्योग पैसा पर पैसा पिट रहा है।

कमलेश पांडेय

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