सबसे बडी सजा नहीं है मृत्युदण्ड

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अब्दुल रशीद

आज पूरे देश मे बहस छिडी हुई है।आक्रोशित लोग बलात्कारीयों की सजा ‘मृत्युदण्ड’ चाह रहे हैं।सारा देश आन्दोलित है।दिल्ली के पाश जोन मे हुए इस क्रूर बलात्कार का दुःसाहस निःसन्देह नृशंसता की श्रेणी मे आता है।बलात्कारीयों को सजा निःसंदेह सबक परक होनी चाहिए लेकिन मृत्युदंड सबसे बडी सजा नहीं हो सकती।यह बात विश्व की मानवाधिकार संस्था एमीनेष्टी इन्टरनेशनल ने भी कही है

सार्वजनिक जीवन मे बलात्कार कि शिकार महिलाएं जब तक जिन्दा रहती हैं समाजिक अपमान व जलालत का दंश झेलती रहती हैं। बलात्कार हो जाने की इस त्रासदी के साथ एक कसक व घुटन भरा जीवन जीना स्वयं मे एक बहुत बडा दण्ड हैं जिसे बीना अपराध किए महिलाएं झेलने को विवश रहती हैं। इस देश की महिलाएं आजादी के बाद की लोकातांत्रिक व्यवस्था मे भी यह दण्ड भोग रही हैं।समाज मे .पुलिस थानो मे और न्यायालयों मे भुक्तभोगी महिला से बलात्कार होना सिद्ध करने के लिये बार बार पूछताछ व बयान लिया जाता है जो उस महिला के लिये मरने के समान होता है।इस तरह से शारीरिक बलात्कार की शिकार महिला का बार बार मानसिक बलात्कार होता है।यह सब उस महान देश मे हो रहा है जो अपनी संस्कृति व सभ्यता पर गर्व करता है “नार्यस्तु यस्य पूज्यन्ते”।

यकीनन यह हमारे लोकतांत्रिक कानून मे बहुत बडी खामी है जिन्हे दूर किया जाना चाहिए।भुक्तभोगीयों से पुछताछ व बयान बन्द कमरे मे महिला पुलिस महिला वकील व महिला मजिस्ट्रेट के सामने हो।ऐसी घटना की सूचना पर पुलिस त्वरित कार्यवाई करते हुए बलात्कार पुष्टि के सभी साक्ष्य इकठठा करे और ऐसा न किये जाने पर संम्बधित अधिकारी पर भी जघन्य अपराध मे लिप्त होने का मुकदमा चलाये जाने का प्रावधान हो। मौजूद साक्ष्यों के आधार पर बलात्कार की पुष्टि हो जाने पर महिला द्वारा दिये गये प्रथम बयान को ही प्रमाणिक माना जाय और तब बार बार बयान लेने व पूछताछ करने की प्रक्रिया पर रोक लगे। बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के मुकदमे फास्टटे्रक कोर्ट मे चलाते हुए अधिकतम तीन महीने के अन्दर फैसला देने का प्रावधान हो।

अब वक्त आ गया है कि देशव्यापी स्वस्फूर्त विरोध के स्वर को जिसे सारा विश्व देख रहा है ध्यान मे रखते हुए संसद ऐसा कानून बनाये या कानून मे ही संशोधन करे कि सेक्स उन्मादी बलात्कार तो दूर की बात महिलाओं की तरफ आंख उठा कर देखने की हिम्मत न कर सके।यह कार्य भी इसी सत्र मे पूरा कर दिया जाता तो बेहतर होता।दलगत राजनीति से उपर उठ कर सभी राजनेताओं को यह कार्य प्राथमिकता से करना होगा अन्यथा महिलाएं इस देश मे ऐसे ही बलात्कार की शिकार होती रहेंगी व बलात्कारी मजे से घुमते रहेंगे।मीडिया के हर माध्यम को भी अपनी नैतिक जिम्मेदारी निभानी होगी कि “लवगुरू” जेसे लोगों को अपने माध्यम मे स्थान देना बन्द करें। कई देशों मे भी विज्ञापन प्रसारित होता है परन्तु महिला वाले विज्ञापन मे शालीनता होती है अश्लीलता नहीं, तो क्या हिन्दुस्तान मे ऐसे विज्ञापन नहीं बनाए जा सकते।इस बात को भी ध्यान मे रखे जाने की जरूरत है कि बलात्कार केवल दिल्ली मे ही नहीं बल्कि देश के हर कोने मे हो रहा है और बलात्कारी पैसे व अपने रसूख के दम पर पुलिस थानो से ही मामला रफा दफा करवा देते है। कुछ ही मामले हैं जो किसी तरह मीडिया मे पहुँचते हैं इन्साफ पा जाने मे सफल हो पाते हैं। दुःखद है कि इस जघन्य वारदात के बाद भी देश मे कई बलात्कार हो चुके हैं।

सवाल यह है कि बलात्कारीयों को सजा क्या दी जाये जिससे सेक्स उन्मादी भी सबक ले सकें और बलात्कारी भी उचित सजा पा सके।प्राणदण्ड यानी फांसी की सजा की मांग बढती जा रही है।निश्चय ही मृत्युदण्ड एक बडी सजा है परन्तु यह इतनी बडी सजा नही है कि बलात्कारीयों को सबक मिल सके।नीचे से पटरी बस हटी कि फन्दे मे झुल कर कुछएक मिनट मे ही मौत के मुह मे समा जाएगा बलात्कारी।कोई कष्ट नही बल्कि कष्ट से निजात पाने का आसान तरीका है।क्या ऐसे ही दण्ड के हकदार हैं बलात्कारी । जबकि भुक्तभोगी महिला तो जिन्दा रहने तक ग्लानि व जलालत भरा जीवन जीती रहेगी और जिन्दा रह कर भी मरी रहेगी तो बलात्कारीयों को इतना आसान मौत क्यों। सजा तो ऐसी हो कि जिन्दा भी रहे अपराधी परन्तु मरे समान। सश्रम कारावास की सजा जो तन्हाई भरा हो और जीवित रहने तक चले .मृत्यु दण्ड से ज्यादा क्रूर सजा होगा क्योंकि तब बलात्कारी जिन्दा रहते हुए भी हर पल मरता रहेगा।

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