राजनीति

सच की आड़ में झूठ परोस रहे राहुल गांधी

राजेश कुमार पासी

भारत में 90 करोड़ मतदाता हैं, इसलिए मतदाता  सूची में गड़बड़ी से इंकार नहीं किया जा सकता। सवाल सिर्फ इतना है कि ये गड़बड़ियां कैसे हुई हैं, जानबूझकर की गई हैं, या इन्हें एक साजिश के तहत किया गया है। चुनाव आयोग भी जानता है कि मतदाता सूची में खामियां हैं, इसलिए वो उसका गहन पुनरीक्षण कर रहा है। ऐसा भी नहीं है कि एसआईआर पहली बार हो रहा है. ये एक ऐसी प्रक्रिया है, जो हर दस साल बाद चुनाव आयोग द्वारा की जाती थी। इस बार ये प्रक्रिया 22 साल बाद की जा रही है। अगर इस काम को हर दस साल में या उससे भी पहले करना पड़ता था तो इसकी वजह यही थी कि मतदाता सूचियों में गड़बड़ी इतनी ज्यादा हो जाती थी कि उन्हें ठीक करना जरूरी होता था । देखा जाए तो चुनाव आयोग की गलती है कि जो काम आज से 10-12 साल पहले हो जाना चाहिए था, वो इतनी देर से हो रहा है। एक तरह से अब तो दोबारा एसआईआर करने की जरूरत पड़ जाती ।

राहुल गांधी ने तीसरी बार प्रेस कॉन्फ्रेंस करके मतदाता सूचियों में गड़बड़ी की ओर देश का ध्यान दिलाया है । उन्होंने अपनी प्रेजेंटेशन में जो भी बातें कही हैं, वो पहली बार की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस से कुछ अलग नहीं हैं। चुनाव आयोग को उनकी बातों का संज्ञान लेना चाहिए कि ऐसी गड़बड़ियां क्यों हैं । चुनाव आयोग का कहना है कि हम भी मानते हैं कि मतदाता सूची में कमियां हैं, इसलिए तो हम एसआईआर कर रहे हैं। चुनाव आयोग का तर्क सही है लेकिन जिस तरह की कमियों को राहुल गांधी ने देश के सामने रखा है, उसको देखते हुए यह जरूरी है कि इस बात की जांच की जाए कि ऐसी गड़बड़ियां कैसे पैदा हो गई। इसके लिए जिम्मेदार लोगों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए और उन्हें इसके लिए दंडित करने की जरूरत है। जिन लोगों की मौत हो चुकी है, अगर उनका नाम मतदाता सूची में दर्ज है तो उसे कमी नहीं कहा जा सकता । ऐसे लोगों का नाम सूची से हटाने में देरी होना कोई बड़ी बात नहीं है। एक आदमी का एक से ज्यादा जगह पर मतदाता सूची में नाम दर्ज होना बड़ी समस्या है और ये लोकतंत्र के लिए भी सही नहीं है। ये समस्या ज्यादातर उन राज्यों में है, जहां से लोग पलायन करके दूसरे राज्यों में काम कर रहे हैं। इन लोगों ने कर्मभूमि और जन्मभूमि, दोनों जगहों पर अपने आपको मतदाता के रूप में दर्ज करवाया हुआ है। 

                 मतदान से एक दिन पहले राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके चुनाव आयोग और भाजपा पर वोट चोरी का आरोप लगाया है। उन्होंने ये आरोप मतदाता सूची में गड़बड़ियों को सामने लाकर लगाए हैं। उनके कई दावों की दूसरे ही दिन मीडिया ने पोल खोल दी । इसके बावजूद यह कहना होगा कि उसके द्वारा प्रस्तुत की गई गड़बड़ियों में काफी हद तक सच्चाई है। समस्या यह है कि उन्होंने उन गड़बड़ियों को लेकर जो निष्कर्ष निकाला है, वो किसी के गले उतरने वाला नहीं है। उनके समर्थकों को जरूर उनके निष्कर्षो पर विश्वास हो सकता है क्योंकि वो उनकी हर बात पर भरोसा करते हैं। सवाल यह है कि उनके आरोपों पर आम जनता क्यों भरोसा नहीं करती है । अगर आम जनता उनके आरोपों पर भरोसा करती तो वोट चोरी बिहार चुनाव में बड़ा मुद्दा बन जाता । सबसे बड़ी बात, उनके गठबंधन की बड़ी पार्टी राजद को ही उनके आरोपों पर भरोसा नहीं है, इसलिए उसने इस मुद्दे से दूरी बना ली है। उन्होंने वोट चोरी के सबूत मीडिया के सामने रखे, तो उनसे एक पत्रकार ने पूछा कि आप इन सबूतों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पास जाएंगे, ताकि इस पर कार्यवाही हो सके । उन्होंने इस सवाल का बड़ा गोलमोल जवाब दिया कि सुप्रीम कोर्ट सब देख रहा है, उसे कार्यवाही करनी चाहिए। सवाल यह है कि क्या वो खुद को सुप्रीम कोर्ट से भी ऊपर मानते हैं ।

आजकल राहुल गांधी और विपक्ष के दूसरे नेता संविधान को हाथ में लेकर घूमते रहते हैं, उन्हें बताना चाहिए कि क्या संविधान में ऐसी व्यवस्था है कि आपको कोई समस्या है तो सुप्रीम कोर्ट आपके घर आपकी शिकायत सुनने आएगा । राहुल गांधी को लगता है कि उनकी बातों में सच्चाई है तो उन्हें अपनी शिकायत चुनाव आयोग को देनी चाहिए । इस बारे में चुनाव आयोग भी कह चुका है कि राहुल गांधी अपनी शिकायत लिख कर दें तो आयोग उनके सबूतों पर कार्यवाही करेगा । दूसरी बात यह है कि अगर राहुल गांधी को चुनाव आयोग पर भरोसा नहीं है तो वो सीधे सुप्रीम कोर्ट के सामने भी मामले को लेकर जा सकते हैं ।

                वास्तव में राहुल गांधी मतदाता सूची में जो विसंगतियां इंगित कर रहे हैं, उससे कोई भी इंकार नहीं कर सकता ।   चुनाव आयोग का भी कहना है कि अगर राहुल गांधी इन विसंगतियों को ठीक करवाना चाहते हैं तो उन्हें एसआईआर का समर्थन करना चाहिए । चुनाव आयोग का कहना है कि एक तरफ राहुल गांधी मतदाता सूची में गड़बड़ी बता रहे हैं तो दूसरी तरफ एसआईआर का विरोध कर रहे हैं । राहुल गांधी को बताना चाहिए कि वो मतदाता सूची में जिन कमियों को सामने ला रहे हैं, उन्हें ठीक करना चाहिए या नहीं ।  एसआईआर का विरोध करना साबित करता है कि न केवल राहुल गांधी बल्कि पूरा विपक्ष चाहता है कि मतदाता सूची की गड़बड़ियां ठीक न की जाए । एक तरफ राहुल और कई विपक्षी नेता आरोप लगाते हैं कि मतदाता सूची की गड़बड़ी का फायदा भाजपा उठाती है तो दूसरी तरफ वो मतदाता सूची को ठीक भी नहीं करने देना चाहते । भाजपा मतदाता सूची में सुधार का समर्थन कर रही है, इसका मतलब है कि उसे इन गड़बड़ियों का फायदा नहीं है । विपक्ष के विरोध से साबित होता है कि मतदाता सूची की गड़बड़ियों का उसे बड़ा फायदा मिल रहा है। अजीब बात यह है कि फायदा विपक्ष उठा रहा है और आरोप भी वही लगा रहा है ।

सबसे बड़ी बात यह है कि मतदाता सूची का मामला सिर्फ राहुल गांधी और कांग्रेस के नेता ही क्यों उठाते हैं । दूसरे विपक्षी नेता उनके साथ क्यों नहीं खड़े होते । अगर भाजपा  मतदाता सूची में गड़बड़ी करके फायदा उठा सकती है तो वो यह काम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और कश्मीर में क्यों नहीं कर रही है । राहुल गांधी का आरोप है कि एक पते पर सैकड़ों वोटर हैं या एक फोटो कई वोटरों के वोटर कार्ड पर लगी हुई है । उनकी बात में सच्चाई है लेकिन वो यह कैसे कह सकते हैं कि इसका फायदा भाजपा को मिल रहा है । उन्होंने ऐसा कोई सबूत नहीं दिया जिससे साबित हो सके कि ये लोग भाजपा को वोट देते हैं । अगर इन गड़बड़ियों को वोट चोरी का आधार माना जाए तो ये गड़बड़ियां तो आजादी से लेकर आज तक चल रही हैं । उन्हें जवाब देना चाहिए कि क्या नेहरू जी, इंदिरा जी, राजीव जी और अन्य कांग्रेसी नेताओं के समय सत्ताधारी पार्टी होने के कारण कांग्रेस ऐसी गड़बड़ियां करवा कर चुनाव जीत रही थी । 

                 राहुल गांधी ऐसा सच सामने ला रहे हैं जिसे पूरा देश जानता है । समस्या यह है कि वो अपना मनमाना निष्कर्ष निकाल कर देश को अराजकता की ओर ले जाना चाहते हैं । वो चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को संदिग्ध बना रहे हैं । उनका उद्देश्य है कि चुनाव आयोग की विश्वसनीयता खत्म करके देश के युवाओं को भड़काकर सड़क पर लाया जाए । उन्होंने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा भी है कि जेन जी को यह सब देखना चाहिए । उनका कहना है कि एक व्यक्ति का एक ही जगह पर कई बार नाम दर्ज है । उनकी बात सच हो सकती है लेकिन सवाल यह है कि एक व्यक्ति एक से ज्यादा बार वोट कैसे डाल सकता है । मतदान प्रक्रिया में स्याही लगने के बाद दूसरी बार वोट डालना संभव नहीं है । दूसरी बात यह है कि मतदान केंद्र में हर पार्टी के एजेंट बैठे होते हैं जो हर मतदाता ही पहचान करते हैं । मतदान अधिकारी एजेंट को उनका नाम बताता है और वो अपनी मतदाता सूची में उसका नाम मार्क कर देते हैं । अगर किसी व्यक्ति का एक से ज्यादा वोट बना हो  तो वो एक दिन में दो बार मतदान नहीं कर सकता ।

दूसरी बात यह है कि कोई भी व्यक्ति दूसरे का वोटर कार्ड दिखाकर वोट नहीं डाल सकता क्योंकि उसके चेहरे का फोटो से मिलान किया जाता है । मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण में भी बीएलओ के साथ बीएलए होते हैं जिन्हें वहां की राजनीतिक पार्टियां अपने एजेंट के रूप में तैनात करती हैं । बीएलओ भी राज्य सरकार के कर्मचारी होते हैं. वो सिर्फ चुनाव आयोग द्वारा दिए गए काम को पूरा करते हैं । वो लापरवाह हो सकते हैं लेकिन बेईमानी करने की गुंजाइश बहुत कम होती है क्योंकि पकड़े जाने पर सरकारी नौकरी खतरे में आ सकती है । बीएलए पार्टी के वफादार होते हैं, इसलिए पार्टी उन्हें बीएलओ के साथ तैनात करती है । राहुल गांधी को न तो चुनाव आयोग पर भरोसा है, न सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा है, न सरकारी कर्मचारियों पर भरोसा है और सबसे बड़ी बात उन्हें अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं पर भी भरोसा नहीं है । समस्या यही है कि राहुल गांधी को किसी पर भरोसा नहीं है । वो अपनी बात रखते हैं और फिर मनमाना निष्कर्ष निकालकर वोट चोरी का शोर मचाते हैं । उनका सच झूठ से भी ज्यादा खतरनाक है क्योंकि ये देश की जनता का भरोसा लोकतंत्र और संविधान से खत्म कर सकता है ।  

राजेश कुमार पासी