राहुल गांधी का चुनावी एटम बॉम्ब

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विजय सहगल   

जब से भारत के चुनाव आयोग ने बिहार चुनाव के पूर्व, चुनाव सूची मे विशेष गहन पुनरीक्षण का कार्य आरंभ किया है, देश के सभी विपक्षी दलों की तोपों के मुंह चुनाव आयोग की तरफ मुड़  गये। कॉंग्रेस के युवा नेता ने तो एक कदम आगे बढ़ 1 अगस्त को चुनाव आयोग पर सरकार के पक्ष मे वोट चोरी का आरोप लगा कर, चुनाव आयोग को खुल्लम खुल्ला  धमकाते हुए इस चोरी के पुख्ता प्रमाण, सबूत और साक्ष्य रूपी एटम बॉम्ब फोड़ने की चेतावनी दी। उन्होने वर्तमान मे हिंदुस्तान मे चुनाव आयोग नाम की कोई चीज के अस्तित्व को नकारते हुए, आगाह किया कि उनके धमाके के बाद तो चुनाव आयोग के अस्तित्व ही नज़र नहीं आयेगा। राहुल गांधी पूर्व मे भी इस तरह के सनसनी खेज वक्तव्य देते रहे हैं। विदित हो कि 8 नवंबर 2016 मे मोदी सरकार द्वारा लागू की गयी नोट बंदी पर भी राहुल गांधी ने 9 दिसम्बर  2016 मे  अपने उत्तेजक वक्तव्य मे, लोक सभा मे बोलने के मौका देने पर भूकंप आने की चेतावनी दी थी और जब वे लोक सभा मे बोले तो, अपने वक्तव्यों के भूकंप से धरती तो दूर, एक तिनका भी नहीं हिला सके। उनके  सनसनी खेज “एटम बॉम्ब” के वक्तव्य पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चुटकी लेते हुए सही ही कहा कि यदि राहुल गांधी के पास सौ प्रतिशत पुख्ता सबूतों का “एटम बम” हैं तो उसका परीक्षण तुरंत करिए और सारे प्रमाण देश के सामने रखिये। लेकिन सच्चाई यह हैं कि न तो उनके पास कोई तथ्य हैं, न सबूत। सनसनी फैलाना उनकी पुरानी आदत रही है।           

राहुल गांधी ने चुनाव आयोग के अधिकारियों को डराते और धमकाते हुए कुछ उसी लहजे मे कहा जैसे नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तानी आतंकवादियों को चेताते हुए कहा था। उन्होने चुनाव आयोग के अधिकारियों से कहा, जो भी ये काम कर रहे है, टॉप से बॉटम तक, याद रखिये हम आपको छोड़ेंगे नहीं! ये देश के खिलाफ साजिश है। उन्होने कहा कि आप रिटायार्ड हों या कहीं भी हों, हम आपको ढूंढकर निकाल लेंगे! देश की सबसे पुराने दल कॉंग्रेस के नेता द्वारा, देश की संवैधानिक संस्था के अधिकारियों के विरुद्ध इस तरह की भाषा का प्रयोग करना  करना उचित है? वहीं दूसरी ओर चुनाव आयोग ने कहा, कि राहुल गांधी चुनाव आयोग पर बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं। आयोग के कर्मचारियों को धमकाने वाली ये भाषा निंदनीय है। आयोग ने कहा कि वह ऐसे गैर जिम्मेदाराना बयानों को नज़र अंदाज़ करता है और निष्पक्ष व पारदर्शी रूप से अपना काम सतत रूप से करता रहेगा। आयोग ने इस बात का भी उल्लेख किया कि उसके द्वारा 12 जून को भेजा  गया मेल और पत्र के प्रतिउत्तर अब तक अप्राप्त है। कॉंग्रेस या राहुल गांधी  द्वारा आयोग को कभी कोई शिकायत नहीं की गयी।

तीन-तीन प्रधानमंत्रियों के घर चाँदी की चम्मच ले कर पैदा हुए माननीय राहुल गांधी  अब तक भारतीय लोकतन्त्र और भारतीय मतदाताओं की ताकत और मिजाज को शायद नहीं समझ पाये? इसलिये ही राहुल गांधी ने राजधानी दिल्ली मे कॉंग्रेस के वार्षिक कानूनी सम्मेलन को संबोधित करते हुए चुनाव आयोग पर 2014 के गुजरात विधान  चुनाव पर  सवाल उठाते हुए कहा कि, किसी एक पार्टी (भाजपा) की भारी मतों से विजय का रुझान शक पैदा करता हैं। शायद उन्हे स्मरण नहीं कि आपात काल के बाद जिस कॉंग्रेस की 1977 लोक सभा चुनाव मे सदस्यों की संख्या 350 से घट कर 153 रह गयी थी उन्ही  श्रीमती इंद्रा गांधी   को 1980 मे मतदाताओं ने भारतीय नागरिकों पर, आपातकाल मे किए गये  तानाशाही पूर्ण रवैये को भुला कर उन्हे फिर सत्ता सौंपी। ठीक इसी तरह भारत के ये मतदाता ही थे जिन्होने,  श्रीमती इन्दिरा गांधी की नृशंस हत्या के बाद राजीव गांधी से सहानभूति रखते हुए  उनकी सरकार को  दो तिहाई से भी अधिक सीटें (404) देकर कॉंग्रेस को सत्ता सौंपी। तब किसी नेता या दल ने कॉंग्रेस की विजय पर कोई शक, संशय या संदेह व्यक्त नहीं किया, आज राहुल गांधी गुजरात और अन्य प्रदेश के उन्ही मतदाताओं पर शक व्यक्त कर सवाल उठाते हैं जो न्यायोचित प्रतीत नहीं होता।

चुनाव आयोग पर मिथ्या आरोप लगाने मे कॉंग्रेस ही नहीं बिहार की राजद के नेता तेजस्वी यादव भी पीछे  नहीं रहे। शनिवार, 2 अगस्त को जब चुनाव आयोग ने ड्राफ्ट वोटर लिस्ट प्रकाशित की तो उन्होने एक सार्वजनिक कार्यक्रम मे चुनाव आयोग पर वोटर लिस्ट मे अपना नाम न होने का गंभीर आरोप लगाते हुए सवाल किया कि अब वे कैसे चुनाव लड़ेंगे? जब लिस्ट से राजद के मुख्यमंत्री दल के प्रत्याशी का नाम हटाया जा सकता है तो जनसमान्य के साथ क्या होगा? लेकिन कुछ ही समय बाद ही  चुनाव आयोग ने तेजस्वी यादव के मिथ्या आरोप के दावे का खंडन करते हुए मतदाता सूची क्रमांक 416 मे उनके नाम होने की पुष्टि की। तेजस्वी यादव ने  प्रेस कॉन्फ्रेंस मे जिस एपेक संख्या दर्ज़ कर, चुनाव आयोग पर अपना नाम मतदाता सूची मे न होने का आरोप लगाया था उस एपेक संख्या के आधार पर राजनैतिक विरोधियों ने उन पर दो मतपत्र रखने के आरोप लगाते हुए जांच की मांग कर दी और तेजस्वी यादव पर “होम करते हाथ जलना” वाली   कहावत को चरितार्थ कर दिया।  विदित हो कि दो मतदातापत्र रखना कानूनन अपराध है।   

चुनाव के दौरान राजनैतिक दलों द्वारा एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाना स्वाभाविक हैं लेकिन देश की चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं पर निरर्थक, बेबुनियाद और मिथ्या आरोप लगाना उचित नहीं। चुनाव आयोग जैसी संस्था की ये कानूनी और नैतिक ज़िम्मेदारी हैं कि वो देश मे स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी  चुनाव कराना सुनिशिचित करे। इस हेतु चुनाव आयोग द्वारा विशेष गहन पुनरीक्षण का कार्य करने पर सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी सहमति प्रदान कर दी ताकि निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव की प्रक्रिया सम्पन्न की जा सके। इसलिये ये देश के सभी नागरिकों और राजनैतिक दलों की भी ज़िम्मेदारी है कि वे चुनाव आयोग को इस हेतु अपना सहयोग प्रदान करें।

विजय सहगल      

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