राजनीति

‘राज’नीति पर बिहार सरकार का ढुलमुल रवैय्या

भवेश नंदन झा 

केंद्र और महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार का वरदहस्त पाकर मनसे नेता राज ठाकरे एक राज्य विशेष बिहार के लोगों से अभद्रता से पेश आ रहे हैं। उन्‍होंने महराष्‍ट्र में रह रहे बिहार के लोगों को अपने ही देश में खुलेआम “घुसपैठिया” करार दिया और क्षोभ का विषय यह है कि अभी तक उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस पूरे मामले में यह भी दिलचस्‍प है कि बिहार सरकार और राज ठाकरे दोनों ही घटिया राजनीति पर उतर आए हैं।

देशद्रोह जैसे कुकृत्य में शामिल व्यक्ति बिहार से पकड़ा जाता है (तरीका भले ही गैरकानूनी हो, क्योंकि इस तरह के मामले में स्थानीय पुलिस के साथ कार्रवाई की जाती है, पर पकड़ा एक देशद्रोही गया है) वोट बैंक की राजनीति से ताजा-ताजा ग्रसित हुई बिहार सरकार तुरंत इस मामले में सक्रिय हुई और महाराष्ट्र पुलिस पर मामला दर्ज करने की बात करती है। मुख्य सचिव से राजनैतिक बयान दिलवाया जाता है। आखिर इतनी सक्रियता क्यों ? इतनी हमदर्दी क्यों ? क्या बिहार सरकार हर मामले में इतनी ही संवेदनशील होती है ? उस वक़्त कौन सा मामला, बिहार सरकार ने किस पर दर्ज करवाया जब निर्दोष बिहारी पिटे थे। सिर्फ जबानी जमा-खर्ची के बिहार सरकार ने क्या किया उन निर्दोष भारतीय नागरिकों के लिए जो सिर्फ बिहारी होने के चलते पिटे ? क्या हुआ राहुल राज के मामले का ?

इन्हीं सब मुद्दों के लिए जब एन.सी.टी.सी बनाने की बात जब केंद्र सरकार करती है तो सभी राज्यों को अपने अधिकार प्यारा हो जाता है, और आतंकी घटनाएं बढ़ती जा रही है। जो इस समस्या से बचने का सबसे आसन उपाय है।

और अभी भाजपा और जनता दल (यू) के नेता जो राज ठाकरे पर इतनी जोर–शोर से बरस रहें हैं, क्या वो वादा करेंगे कि हम मनसे से भविष्य में कोई गठबंधन नहीं करेंगे..

यह सब बिहार के पूर्व के भारी भरकम “जन” नेताओं का दोष है जो हमेशा से केंद्र सरकार से उपेक्षित रही बिहार को उसका हक दिलाने में नाकामयाब रहे और इसे वर्तमान पीढ़ी को झेलना पड़ रहा है। इसकी बानगी सिर्फ एक उदाहरण से पता चलता है कि बिहार से बड़ी संख्या में छात्र बाहर पढ़ने को जाते हैं, पर आज तक बिहार में एक केन्द्रीय विश्‍वविद्यालय खुल नहीं सका, जो हर राज्य का हक़ है। इसी महीने दो केन्द्रीय विश्‍वविद्यालय की घोषणा हुई है, अब जमीन अधिग्रहण होगा, मकान बनेगा….और भी बहुत कुछ होगा पर पढ़ाई शुरू होने में कम से कम दो-चार साल तो लग ही जाएँगे, और बिहार के बच्चे दूसरी जगहों पर पढ़ने के लिए जाते रहेंगे। कोई दो-चार विधायकों की हैसियत रखने वाला राज ठाकरे जैसा हलके मानसिकता के लोग उनका अपमान करते रहेंगे। इन सबों से बचने का उपाय सिर्फ एक है बिहार का वाजिब हक उसे मिले।