राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन की जयंती पर विशेष

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हिंदी के परम पक्षधर को नमन…

-अशोक बजाज

राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन,भारत के महान स्वतन्त्रता सेनानी थे। उनका जन्म १ अगस्त १८८२ को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद मे हुआ। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन अपने उदार चरित्र और सादगीपूर्ण जीवन के लिए विख्यात थे तथा हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलवाने में उनकी भूमिका को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। सामाजिक जीवन में टंडन के महत्वपूर्ण योगदान के कारण सन १९६१ में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न”से सम्मानित किया गया। टंडन के व्यक्तित्व का एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष उनका विधायी जीवन था, जिसमें वह आज़ादी के पूर्व एक दशक से अधिक समय तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष रहे। वे संविधान सभा,लोकसभा और राज्यसभा के भी सदस्य रहे।वे समर्पित राजनयिक, हिन्दी के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक भी थे।

सन १९५० में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उन्हें भारत के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में नयी चेतना एवं नयी क्रान्ति पैदा करने वाले कर्मयोगी के रूप में जाना जाता है। वे जन सामान्य में राजर्षि (जो ऋषि के समान सत्कार्य में लगा हुआ हो) के नाम से प्रसिद्ध हुए। टण्डन जी का राजनीति में प्रवेश हिन्दी प्रेम के कारण हुआ। वे हिन्दी को देश की आजादी के पहले “आजादी प्राप्त करने का” और आजादी के बाद “आजादी को बनाये रखने का” साधन मानते थे। वे महात्मा गांधी के अनुयायी होने के बावजूद हिंदी के मामले में उन के विचारों से सहमत नहीं हुए। महात्मा गांधी और नेहरू राष्ट्रभाषा के नाम पर हिंदी-उर्दू मिश्रित हिंदुस्तानी भाषा के पक्षधर थे, जिसे देवनागरी और फारसी दोनों लिपि में लिखा जा सके, लेकिन टंडन इस मामले में हिंदी और देवनागरी लिपि का समर्थन करते हुए हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने में कामयाब रहे। मातृभाषा हिंदी के इस परम पक्षधर को उनकी जयन्ती पर श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ ।

2 COMMENTS

  1. राजर्षि पुरषोत्तम दास टंडन का अवदान .स्वाधीनता संग्राम में जितना था उतना ही राष्ट्रभाषा हिंदी को ही बनाये जाने की साहसिक पक्षधरता के निमित्त भी वे न केवल हिंदी जगत वरन एकजुट .प्रजातांत्रिक .धर्मनिरपेक्ष भारत की कोटि -कोटि जनता के दिलों पर राज करते हैं .नयी पीढी के युवाओं को पुनह स्मरण कराने के लिए अशोक बजाज जी को हार्दिक धन्यवाद .

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