एक भाव है राखी, हर भाई-बहन को बांधती है स्नेह की डोर से 

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राजेश जैन  

रक्षाबंधन हर साल आता है पर हर साल कुछ नया दे जाता है- नई यादें, वादे और भरोसे। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि रिश्तों की असली मिठास महंगे उपहार में नहीं बल्कि उस धागे में होती है जो प्रेम, विश्वास और अपनेपन से बुना होता है। इसलिए भले ही राखी का धागा है बहुत हल्का हो लेकिन जब बहन अपने भाई की कलाई पर इसको बांधती है तो स्नेह का बंधन और मज़बूत हो जाता है।

रक्षाबंधन कोई साधारण पर्व नहीं है. यह रिश्तों के गहराते रंगों का उत्सव है जो साल में एक बार भाई-बहन के बीच उस अनकहे वादे को फिर से ज़िंदा करता है — “मैं हमेशा तुम्हारी रक्षा करूंगा।” लेकिन क्या यह सिर्फ एक रस्म है? नहीं। रक्षाबंधन असल में उस भाई के स्नेह, जिम्मेदारी और साथ के अहसास का नाम है जिसे शब्दों में बांधना मुश्किल है। जब बहन राखी बांधती है तो वह सिर्फ सुरक्षा की मांग नहीं करती. वह अपने भाई से यह भरोसा भी मांगती है कि जब दुनिया उसके खिलाफ खड़ी हो तो उसका भाई उसके साथ खड़ा रहेगा—बिना सवाल, बिना शर्त।

हर लड़की के जीवन में उसका भाई पहला ऐसा लड़का होता है जिससे वह बिना झिझक प्यार करती है। वह उसके साथ खेलती है, लड़ती है, शिकायत करती है, फिर उसी से सबसे ज़्यादा हंसती है। भाई वह होता है जो उसे स्कूल ले जाता है, कभी चुपके से मां से पैसे लेकर उसकी फेवरेट आइसक्रीम दिला देता है तो कभी उसकी गुड़िया के बाल खुद सँवार देता है।

छोटे भाई के लिए बड़ी बहन मां जैसी होती है और बड़े भाई के लिए छोटी बहन उसकी दुनिया में सबसे कीमती और इस रिश्ते में जो चीज़ सबसे खूबसूरत है— वह है स्नेह। वह स्नेह जो कभी चॉकलेट के झगड़े में छिपा होता है, कभी खिलौनों की साझेदारी में और कभी उस वक्त में जब बहन चुपके से भाई के लिए उसकी फेवरेट शर्ट खरीद लाती है।

जैसे-जैसे समय बीतता है, भाई-बहन बड़े हो जाते हैं। उनके रास्ते बदल जाते हैं। कोई हॉस्टल चला जाता है, कोई शादी के बाद दूसरे शहर लेकिन जब राखी आती है तो बचपन की सारी यादें लौट आती हैं। भाई फिर से वही नटखट बच्चा बन जाता है जो राखी बंधवाकर बहन की थाली में सबसे पहले मिठाई उठाता था और बहन भी वही बन जाती है जो हर बार राखी बांधते वक्त बस इतना ही सोचती थी—मेरा भाई हमेशा खुश रहे।

भाई का स्नेह – एक अनकही ज़िम्मेदारी

 भाई का प्यार अक्सर चुप होता है। वह ना तो हर दिन कहता है-आई लव यू सिस,  ना ही सोशल मीडिया पर बहन की फोटो पर ढेरों दिल बनाता है लेकिन जब बहन बीमार होती है, तो उसकी दवाई लाने वाला पहला इंसान वही होता है। जब बहन किसी बात पर उदास होती है, तो उसे सबसे पहले समझने की कोशिश भी वही करता है — भले ही उसके पास कहने के लिए शब्द न हों।

भाई का स्नेह शब्दों में नहीं, कर्म में दिखता है। वह अपनी बहन की हर ज़रूरत को बिना कहे समझ जाता है। जब बहन के ससुराल में पहली राखी होती है तो भाई मीलों दूर से बस इसलिए आता है कि उसकी बहन अकेली महसूस न करे। जब बहन की शादी होती है तो सबसे ज्यादा भावुक उसका भाई होता है लेकिन वह आंसू छुपाकर सबको हंसाता है।

भाई का प्यार रक्षा तक सीमित नहीं होता। वह अपनी बहन के सपनों में भी उसकी ढाल बनता है। जब बहन डॉक्टर, इंजीनियर या कलाकार बनना चाहती है  और समाज ताने देता है, तब उसका भाई उसके लिए आवाज़ उठाता है। वह सिर्फ उसका रक्षक नहीं, उसका चीयर लीडर भी होता है—वह चुपचाप पीछे खड़ा होता है लेकिन बहन की हर उड़ान में उसकी ताकत बन जाता है।

बचपन की राखी से ज़िंदगी के रिश्ते तक

बहुत से भाई-बहन बचपन में राखी को बस एक रस्म मानते हैं। फिर से वही राखी? या कितनी बार ये धागा बाँधोगी? जैसे डायलॉग्स अक्सर सुनाई देते हैं लेकिन जैसे-जैसे वक़्त बीतता है और ज़िम्मेदारियां  बढ़ती हैं —राखी सिर्फ केवल त्यौहार नहीं रह जाती, वह एक भाव बन जाती है। जो भाई कभी राखी को बोझ समझता था, वही कलाई बहन के आगे कर देता है। जो बहन पहले उपहार को लेकर झगड़ती थी, वही बाद में कहती है— कुछ मत देना भाई, बस तुम खुश रहना।

दरअसल, रक्षाबंधन वक़्त के साथ बदलता नहीं, बल्कि और गहराता है। यह रिश्ता हर साल उस धागे से और मज़बूत होता है जो बहन अपने हाथों से प्यार से बांधती है। हर बार राखी भाई को उसकी ज़िम्मेदारियाँ याद दिलाती है — कि यह बहन तुम्हारी ताकत है, तुम्हारी गरिमा है, और तुम्हारी प्राथमिकता भी।

दूरी हो या मजबूरी, रिश्ता कमज़ोर नहीं होता

आजकल बहुत से भाई-बहन एक-दूसरे से दूर रहते हैं। कोई विदेश में पढ़ाई कर रहा है, कोई नौकरी के सिलसिले में शहर से दूर है। कभी-कभी बहन की शादी किसी ऐसे घर में होती है जहां राखी पर मायके आना मुमकिन नहीं होता। लेकिन तब भी, एक लिफाफे में भेजी गई राखी, एक वीडियो कॉल पर बांधा गया धागा, या सिर्फ एक “हैप्पी राखी भाई” का मैसेज भी वही भाव लिए होता है।

 रिश्ते ज़मीन से नहीं, दिल से जुड़े होते हैं और राखी का रिश्ता तो दिलों में बसता है। कई बार भाई अपनी बहन से दूर रहकर भी हर छोटी-बड़ी चीज़ का ख्याल रखता है — कभी ऑनलाइन गिफ्ट भेजकर, कभी अचानक सरप्राइज़ देकर या कभी चुपचाप उसके अकाउंट में पैसे डालकर।

और बहन? वह भी हर बार राखी के दिन अपने भाई को याद करती है, चाहे वह साथ हो या नहीं। वह अपने मन में वही दुआ दोहराती है जो बचपन से करती आई है — मेरे भाई को लंबी उम्र मिले, उसका जीवन खुशियों से भरा हो।

बदलते समय में बदलते रूप पर स्नेह वही पुराना

समय बदला है, पर रक्षाबंधन का महत्व कम नहीं हुआ। अब बहनें भी भाइयों की रक्षा करती हैं— आर्थिक रूप से, भावनात्मक रूप से और जीवन के हर मोड़ पर। आजकल कई बहनें अपने भाइयों को पढ़ाती हैं, उन्हें सहारा देती हैं  और ज़रूरत पड़े तो उनके लिए दुनिया से लड़ भी जाती हैं। इसलिए अब रक्षाबंधन का मतलब सिर्फ भाई की ओर से रक्षा नहीं बल्कि आपसी सुरक्षा, सहयोग और स्नेह का त्योहार बन गया है। यह रिश्ता अब बराबरी का है — जिसमें भाई-बहन दोनों एक-दूसरे के दोस्त, मार्गदर्शक और सहारा हैं। आजकल बहनें भी अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधते हुए बस इतना नहीं कहतीं कि तुम मेरी रक्षा करो, बल्कि वह ये भी कहती हैं — मैं भी तुम्हारे साथ खड़ी हूँ, हर हाल में।

एक डोरी जो जीवन भर साथ निभाती है

राखी एक ऐसी डोरी है जो वक़्त, दूरी, उम्र और हालात — किसी भी चीज़ से नहीं टूटती। यह एक ऐसा रिश्ता है जो बिना शर्त के बना रहता है। भाई चाहे कितना ही गुस्सैल हो, लापरवाह हो या मज़ाक उड़ाने वाला — बहन के लिए वह हमेशा वही प्यारा भाई होता है, जिसकी कलाई पर राखी बांधना सबसे प्यारा एहसास होता है। और भाई?  चाहे दुनिया के कितने भी झगड़े हो लेकिन राखी के दिन उसकी आंखों में नमी और दिल में नरमी ज़रूर होती है। वह चाहे जताए या नहीं पर हर भाई अपनी बहन को देखकर यही सोचता है— ये मेरी ज़िम्मेदारी है और मेरी ताकत भी। इसलिए इस रक्षाबंधन पर अगर आपका भाई दूर है तो उसे एक कॉल ज़रूर करें। अगर आपकी बहन व्यस्त है तो उसे एक सन्देश अवश्य भेजें और अगर आप दोनों साथ हैं तो एक साथ बैठकर उन बचपन की बातों को फिर से जिएं।

 राजेश जैन  

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