बढ़ सकता है भाजपा पर संघ का नियंत्रण

1
189

सुनील अमर

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी का कार्यकाल पूरा होने के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी उनका स्थान ले सकते हैं, ऐसी चर्चा है। श्री गडकरी का मनोनयन जिस प्रकार से हुआ था उससे यह साफ हो गया था कि भाजपा की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अब बहुत ज्यादा परदे में नहीं रहना चाहता। पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव से हासिल परिणाम तथा भाजपा शासित राज्यों के ताकतवर क्षत्रपों द्वारा की जा रही असहनीय मनमानी को देखते हुए संघ और उसके कैडर के भाजपाइयों में यह सलाह होती बतायी जा रही है कि भाजपा के मौजूदा निजाम के बूते सन् 2014 के लोकसभा चुनाव को दांव पर नहीं लगाया जा सकता। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए श्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर संघ द्वारा विचार किया जाना इस बात का संकेत है कि देश के इस प्रमुख विपक्षी दल के लिए एक बार फिर धार्मिक कट्टरता का चोला ओढ़ने के अलावा और कोई रास्ता बचा नहीं है।

बीते कुछ वर्षों के कई चुनावों-उप चुनावों से यह साबित हुआ है कि भाजपा का आधार वोट भी उससे छिटका है। यह आधार वोट उसके अपने विचार-साम्य वाले मतदाताओं का है जिनके बीच में भाजपा के लगातार पथ-च्युत होने का संदेश गया है। प्रत्येक राष्ट्रीय राजनीतिक दल किन्हीं अर्थों में क्षेत्रीय भी होता है और इस प्रकार उसे क्षेत्रीय मतदाताओं की आकांक्षा पर भी खरा उतरने की कोशिश करनी पड़ती है। भाजपा के साथ दिक्कत यह हुई कि एक वृहद राष्ट्रीय फलक प्राप्त करने के लिए उसने तमाम क्षेत्रीय दलों से चुनावी गठबंधन किया और इस पर तालमेल बनाने के लिए उसे अपने कई मूल चुनावी मुद्दों को छोड़ना/भूलना पड़ा, और जिन मुद्दों को लेकर उसके सहयोगियों की सर्वानुमति बनी वह मुद्दे अन्य राजनीतिक दलों के भी एजेन्डे में पहले से ही थे। यह राजनीतिक गठबंधनों की विवशता है लेकिन आम मतदाता इतनी बारीक पेचदगियों को नहीं समझता। सतत् चुनाव परिणामों ने दिखाया कि ऐसी विवशता से भाजपा को दीर्घकालिक नुकसान हुआ है। क्षेत्रीय दल किस तरह गठबंधन का नेतृत्व करने वाले दल का भयादोहन करते हैं, इसे केन्द्र में सत्तारुढ़ संप्रग को देखकर जाना जा सकता है।

भाजपा के वैचारिक परिवर्तन की पराकाष्ठा श्री लालकृष्ण आडवानी के कार्यकाल में थी। उनके द्वारा कायदे-आजम जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताने पर संघ की भवें टेढ़ी हो गयीं और उन्हें अपने इस नव-उदारवाद की खासी कीमत चुकानी पड़ी, लेकिन उनकी यह ‘वैष्णवी फिसलन’ फिर भी नहीं थमी और अभी पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से पूर्व उन्होंने जब रथ यात्रा निकालने का ऐलान किया तो संघ ने प्रस्थान-पूर्व ही उन्हें नागपुर तलब कर साफ कर दिया कि वे अब प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं। इसका अपरोक्ष संदेश यह निकला था कि संघ इस दावेदारी के लिए मोदी को योग्य मानता है। सभी जानते हैं कि श्री आडवाणी का एक नाम ‘प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री’ ही हो गया था! श्री आडवाणी के साथ संघ के दोनों बार के इस रवैये ने यह साफ कर दिया कि भाजपा के लिए रेल-पटरी बिछाने का काम संघ ही करेगा और इसकी पुष्टि श्री गड़करी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने से हो गयी। असल में श्री अटल बिहारी बाजपेयी के स्वास्थ्य कारणों से नेपथ्य में चले जाने के बाद संघ का पूरा नियंत्रण भाजपा पर हो गया। संघ ने श्री गड़करी को अध्यक्ष तो बना दिया लेकिन प्रांतीय स्तर के इस भाजपा नेता के पास वह क्षमता नहीं थी जो भारत जैसे विविधता वाले देश में किसी राष्ट्रीय राजनीतिक दल के अध्यक्ष के लिए दरकार होती है। वैसे भी भाजपा में शीर्ष स्तर पर अभी उत्तर भारत के नेताओं का वर्चस्व है। संघ की मंशा संभवतः शीर्ष पर दक्षिण भारत के नेताओं को स्थापित करने की है। श्री गड़करी की नियुक्ति इस दिशा में प्रथम प्रयास थी। श्री नरेन्द्र मोदी अगर अगले अध्यक्ष बनाये जाते हैं तो यह माना जाना चाहिए कि भाजपा का राजनैतिक एजेन्डा अब खत्म हो चुका है और यह दायित्व भी अब संघ ही निभायेगा।

श्री नरेन्द्र मोदी किन कारणों से चर्चित हैं, इसे सभी जानते हैं। उनकी छवि यह है कि भाजपा के गठबंधन मे शामिल दल ही उन्हें अपने शासन वाले राज्यों में चुनाव के दौरान देखना पसन्द नहीं करते और अमेरिका जैसा मुक्त सोच वाला देश भी अपने यहाँ उनकी मौजूदगी नहीं चाहता। उनके सुशासन के बारे में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की एक ताजा रिपोर्ट बताती है कि बीते दो वर्षों में ही उन्होंने दो निजी कम्पनियों को अनुचित लाभ पहॅुचाने में राज्य को 42,000 करोड़ रुपयों का नुकसान करा दिया है। लेकिन क्योंकि वे संघ के उद्देश्यों को पूरा करते हैं इसलिए संघ उन्हें सारे देश में आजमाना चाहता है। ऐसा लगता है कि इस राह पर चलने की योजना बना ली गयी है। संघ का प्रमुख सहयोगी संगठन विश्व हिन्दू परिषद है जिसने अयोध्या में मंदिर आंदोलन के लिए संघ के मुखौटे की भूमिका अभी तक निभायी है। बीते एक दशक से विहिप की मशीनरी एक तरह से ठप्प थी लेकिन अब उसमें तेल-पानी डालकर उसे गतिशील किया जा रहा है। अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए वांछित पत्थरों की तराशी हेतु विहिप ने वहाँ स्थिति अपने मुख्यालय कारसेवकपुरम तथा वाराणसी, मथुरा व जयपुर में कार्यशालाऐं शुरु कर रखी थीं जिसमें वर्षों तक पत्थर तराशे गये लेकिन पिछले 6-7 वर्षो से सभी कार्यशालाऐं यह कहकर बंद कर दी गयी थीं कि विहिप के पास धन खत्म हो गया है। खबर है कि बीते दिनों अयोध्या स्थित दोनेां कार्यशालाओं को पुनः शुरु किया गया है। यह मंदिर आंदोलन की बासी पड़ चुकी कढ़ी में उबाल लाने का प्रयास है!

उत्तर प्रदेश में अभी सम्पन्न ताजा विधानसभा चुनाव के परिणाम ने भी संघ परिवार पर अपनी सोच की दिशा बदलने का दबाव डाला होगा। उत्तर प्रदेश में वर्ष 1989 से धर्म और जाति की राजनीति ने अपने पर फैलाना शुरु कर दिया था। इसकी फसल समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी, दोनों ने काटी। एक के मजबूत होने पर दूसरा प्रतिक्रिया स्वरुप मजबूत हो जाता था लेकिन हालिया चुनाव ने बता दिया कि अब मतदाताओं की सोच बदल गयी है। भाजपा जहां और कमजोर हुई है उसके उलट सपा सारे अनुमानों को ध्वस्त करते और मुसलमानों का विश्वास पुनः प्राप्त करते हुए नया प्रतिमान स्थापित कर गयी है। 1989 के बाद से उत्तर प्रदेश मेे यह पहली बार है जब बिना किसी धार्मिक कट्टरता के भय के मुसलमान सपा के साथ हैं लेकिन हिन्दू भाजपा के साथ नहीं हैं। यह भाजपा के लिए खतरे की घंटी है। इसलिए इस बात की संभावनाऐं हैं कि एक तरफ विहिप जहां अयोध्या में मंदिर आंदोलन को जागृत करने की कोशिश करेगी वहीं नरेन्द्र मोदी गुजरात फार्मूले को आजमाने की। इसी क्रम में अब यह अनायास नहीं लगता कि बीते 30 मार्च को राज्य सभा तथा लोकसभा दोनों में भाजपा ने रामसेतु मुद्दे को उठाया। राजनीतिक प्रेक्षकों का अनुमान है कि संघ अगर इसी दिशा में चला तो आने वाले दिनों में सिर्फ अयोध्या ही नहीं बल्कि काशी व मथुरा भी गर्म किये जायेंगें। रामसेतु जैसे अन्य मुद्दे भी देश के अन्य भागों में संघ के कार्यक्रम के विषय हो सकते हैं। बीते दो दशक से संघ की बहुचर्चित ‘शाखाएं’ समाप्तप्राय हैं। ये शाखाऐं ही संघ की उत्पत्ति-केन्द्र कही जाती हैं जहां नये कार्यकर्ताओं को दीक्षित और पुराने का दीक्षांत कर संघ की सेवा में भेजा जाता रहा है। बीते दिनों अयोध्या में संपन्न एक कार्यक्रम में संघ के वरिष्ठ नेताओं ने ऐलान किया कि शाखाऐं फिर से शुरु की जाएगीं। समझा जाता है कि चुनाव से पूर्व संघ अपने ढाँचे को सही कर लेना चाहता है।

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,239 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress