सनातन संस्कृति श्रेष्ठ जीवन दर्शन 

परन्तु सनातन के नाम पर पाखंड और अंधविश्वास समाज में बढ़ती विकृति

भारतीय सनातन संस्कृति को विश्व की सबसे प्राचीन, वैज्ञानिक और उत्कृष्ट जीवनशैली के रूप में जाना जाता है। यह मात्र एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन को संतुलित, नैतिक और सामाजिक रूप से समृद्ध बनाने की अद्वितीय व्यवस्था है। सहस्त्रों वर्षों पूर्व हमारे ऋषि-मुनियों ने अपने कठोर तप, अनुसंधान और चिंतन से मानव जीवन के लिए ऐसे नियम और व्यवस्थाएं निर्धारित कीं, जो आज भी पूर्णत: प्रासंगिक और वैज्ञानिक प्रमाणों से पुष्ट हैं।

भारतीय संस्कृति में जीवन को चार आश्रमों — ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास — में विभाजित कर व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन को चरणबद्ध और अनुशासित बनाया गया। इसके अतिरिक्त, मनुष्य के जीवन में 16 संस्कार निर्धारित कर प्रत्येक महत्वपूर्ण पड़ाव को पवित्र, सामाजिक और नैतिक दायित्वों से जोड़ा गया। इसी संस्कृति ने यह भी बताया कि मनुष्य न केवल व्यक्तिगत, बल्कि सामाजिक प्राणी है और उसके आचरण, आहार-विहार और व्यवहार से सम्पूर्ण समाज प्रभावित होता है।

वैज्ञानिक पद्धति और यौगिक क्रियाओं का महत्व

सनातन संस्कृति ने मनुष्य के स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन के लिए योग, प्राणायाम और आयुर्वेद जैसी वैज्ञानिक पद्धतियों को जन्म दिया। आज पूरा विश्व योग और भारतीय जीवनशैली की उपयोगिता को स्वीकार कर रहा है। हमारे पूर्वजों ने यौगिक क्रियाओं और संतुलित आहार-विहार के माध्यम से न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी सुदृढ़ बनाए रखने की व्यवस्था की थी। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने भी अब यह स्वीकार किया है कि योग और प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धतियां कई असाध्य रोगों में कारगर सिद्ध हो रही हैं।

धर्म का वास्तविक अर्थ और उसकी भूमिका

सनातन संस्कृति में धर्म का अर्थ किसी विशेष पंथ अथवा सम्प्रदाय से नहीं, बल्कि मानव जीवन की अच्छाइयों को धारण कर उनके नियमों का पालन करना है। धर्म, वह व्यवस्था है जो व्यक्ति को कर्तव्यपरायण, समाजोपयोगी और राष्ट्रप्रेमी बनाती है। इसमें राष्ट्रधर्म को सर्वोपरि मानते हुए, समाज में प्रेम, सद्भावना और नैतिकता का संदेश दिया गया है।

पाखंड और अंधविश्वास : समाज में बढ़ती विकृति

दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि वर्तमान समय में कुछ स्वार्थी, तथाकथित धर्माचार्य और पाखंडी बाबाओं ने सनातन संस्कृति का नाम लेकर समाज में भ्रम और अंधविश्वास फैलाना शुरू कर दिया है। तंत्र-मंत्र, गंडा-ताबीज और झाड़-फूंक जैसी अवैज्ञानिक गतिविधियों के माध्यम से ये भोले-भाले लोगों को ठगने में लगे हुए हैं। हैरानी की बात यह है कि पढ़े-लिखे और समझदार लोग भी इनके झांसे में आ रहे हैं।

हाल ही में एक राष्ट्रीय चैनल ने ऐसे पाखंडियों के विरुद्ध व्यापक मुहिम चलाई, जिसमें यह उजागर हुआ कि किस प्रकार इन ठगों ने धर्म और आस्था की आड़ में अंधविश्वास का व्यापार खड़ा कर रखा है।

सरकार और समाज की भूमिका

इस विकृति को समाप्त करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को चाहिए कि ऐसे पाखंडियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। इसके साथ ही, समाज में जागरूकता लाने के लिए धार्मिक और सामाजिक संस्थाएं भी आगे आएं। सच्चे सनातन धर्म के प्रचारकों और संत समाज को भी इस दिशा में सार्थक प्रयास करने होंगे।

धर्म के वास्तविक स्वरूप को जन-जन तक पहुँचाकर ही हम सनातन संस्कृति की गरिमा को अक्षुण्ण रख सकते हैं। अंधविश्वास और पाखंड का उन्मूलन कर, सनातन संस्कृति के वैज्ञानिक और नैतिक पक्ष को समाज के सामने प्रस्तुत करना ही समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

भारतीय सनातन संस्कृति न केवल प्राचीन जीवनशैली है, बल्कि यह एक वैज्ञानिक, नैतिक और श्रेष्ठ जीवन दर्शन है। इसे पाखंडियों की गिरफ़्त से मुक्त कराना समाज, शासन और हर जागरूक नागरिक का दायित्व है। यदि हम समय रहते इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाते, तो आस्था के नाम पर अंधविश्वास का यह जाल और गहराता जाएगा।

– सुरेश गोयल धूप वाला 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,670 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress