डा. शिवानी कटारा
जिस राष्ट्र के युवा जागते हैं, उसका भाग्य भी जाग उठता है। यह सत्य केवल विचार नहीं, बल्कि भारत के इतिहास की धड़कन है। जब-जब युवा पीढ़ी ने अपने जीवन को राष्ट्र के लिए समर्पित किया है, तब-तब समाज ने नवचेतना पाई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उदय इसी भावभूमि पर हुआ।
सन 1925 की विजयादशमी को नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी ने संघ की स्थापना की। उस समय भारत गुलामी, विखंडन और हताशा में डूबा था। उन्होंने अनुभव किया कि स्वतंत्रता का प्रथम शर्त संगठन है। उनके शब्द आज भी गूँजते हैं— ‘शक्ति का संचय तब होगा जब अनुशासन और संगठन होगा।’
स्वयंसेवक की संकल्पना संघ की आत्मा है। स्वयंसेवक वह है जो बिना किसी स्वार्थ या प्रतिफल की अपेक्षा के, राष्ट्र और समाज के लिए अपने तन, मन और समय को अर्पित करता है। उसका जीवन केवल निजी उपलब्धियों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि वह अपनी साँसों को भी मातृभूमि की सेवा का साधन बना देता है।
संगठन का आधार और राष्ट्र की त्रिवेणी
संघ की विचारधारा तीन दिव्य स्तंभों पर खड़ी है—हिन्दू राष्ट्र-विचार, नैतिकता और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद।
हिन्दू राष्ट्र-विचार युवाओं को यह स्मरण कराता है कि भारत केवल एक राजनीतिक इकाई नहीं, बल्कि एक जीवित संस्कृति है। यह विचार उन्हें उनकी जड़ों से जोड़ता है और यह विश्वास जगाता है कि उनकी पहचान किसी पश्चिमी छवि से नहीं, बल्कि अपने परंपरागत मूल्य और गौरव से निर्मित होती है। नैतिकता युवा मन को यह सिखाती है कि प्रगति केवल विज्ञान या तकनीक की उपलब्धि से नहीं आती, बल्कि सत्य, ईमानदारी और अनुशासन के अभ्यास से जीवन सार्थक बनता है। यह उन्हें आत्मकेंद्रित भोग से ऊपर उठाकर समाज और राष्ट्र की ओर उन्मुख करती है।सांस्कृतिक राष्ट्रवाद युवाओं को यह एहसास कराता है कि भारत का अस्तित्व केवल भूगोल तक सीमित नहीं, बल्कि गीत, भाषा, उत्सव, कला और लोक-परंपराओं की अखंड धारा है। यही वह शक्ति है जो उन्हें विविधता में एकता का अनुभव कराती है और भविष्य की राह पर आत्मविश्वास से खड़ा करती है।
अटल बिहारी वाजपेयी जी ने कहा था— संघ ने हमें यह सिखाया कि स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज का हित सर्वोपरि है। यही संस्कार आज के युवा भारत के लिए पथप्रदर्शक हैं।
शिक्षा और सेवा का संगम
संघ का विश्वास है कि राष्ट्रनिर्माण शिक्षा की नींव पर ही टिकता है। इसी उद्देश्य से विद्या भारती और शिशु मंदिर विद्यालयों का जाल देशभर में फैला है। आज लगभग 12,000 से अधिक विद्यालय संचालित हैं, जिनमें 35 लाख से अधिक विद्यार्थी और डेढ़ लाख से अधिक शिक्षक संस्कारयुक्त शिक्षा से जुड़े हैं। उत्तर-पूर्व और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों तक यह नेटवर्क पहुँचा है, जहाँ शिक्षा के साथ आत्मविश्वास और राष्ट्रीय चेतना का संचार हो रहा है। इन विद्यालयों का वातावरण केवल परीक्षा और अंक तक सीमित नहीं रहता। यहाँ प्रार्थना के स्वर, खेलों की हँसी और सेवा की भावना हर विद्यार्थी को यह सिखाती है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल करियर नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण है। मध्य प्रदेश के एक विद्यालय का उदाहरण उल्लेखनीय है, जहाँ छात्रों ने निर्धन बस्तियों में जाकर बच्चों को पढ़ाया और समाज की जिम्मेदारी को अपने जीवन का हिस्सा बनाया।
इसी प्रकार सेवा भारती की भूमिका भी प्रेरणादायी है। कोविड महामारी के दौरान जब लोग भयभीत थे, स्वयंसेवक युवाओं ने ऑक्सीजन, भोजन और दवाएँ घर-घर पहुँचाई। ओडिशा की बाढ़ में उन्होंने नावों के सहारे बच्चों और बुजुर्गों को सुरक्षित स्थान तक पहुँचाया। यह केवल सेवा नहीं, बल्कि राष्ट्र के प्रति प्रेम और करुणा का जीवंत रूप है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का कथन इसे पुष्ट करता है— भारत की असली ताकत उसकी युवा ऊर्जा है, और जब यह ऊर्जा सेवा से जुड़ती है तो चमत्कार होता है।
शाखा और अनुशासन की साधना
शाखा संघ का प्राण है। खुले मैदान में खेल, व्यायाम, गीत और प्रार्थना से यहाँ अनुशासन और आत्मविश्वास का संस्कार मिलता है। गुरुजी गोलवलकर जी ने कहा था— शाखा केवल खेल का मैदान नहीं, यह राष्ट्र निर्माण की प्रयोगशाला है। आज भारत में शाखाओं का विस्तार गाँव-गाँव और नगर-नगर तक है। हाल के आँकड़े बताते हैं कि देशभर में अस्सी हज़ार से अधिक शाखाएँ सक्रिय हैं। लाखों युवा प्रतिदिन इन शाखाओं में एक स्वर और एक लय में प्रार्थना और व्यायाम करते हैं।
पथ संचलन शाखाओं का उत्सव है। जब गणवेशधारी स्वयंसेवक एक लय और अनुशासन में सड़कों पर निकलते हैं, तो यह केवल मार्च नहीं होता, बल्कि यह समाज को दिया गया सशक्त संदेश होता है—युवा संगठित हैं और राष्ट्र की रक्षा के लिए तत्पर। यह दृश्य जनता को अनुशासन और एकता की शक्ति का सजीव दर्शन कराता है। शाखा में गाए जाने वाले गीत युवाओं को प्रेरणा और रोमांच से भर देते हैं। जैसे यह गीत—
राम कृष्ण की पावन धरती जो शक्ति संचार करे,
जन जन में बलिदान भावना कूट कूट कर नित्य भरे,
अर्जुन भीम शिवाजी जैसे गुण निर्माण कराने को,
शत शत नमन भारत भूमि को अभिनन्दन भारत माँ को
यह केवल गीत नहीं, बल्कि मातृभूमि के प्रति नमन और समर्पण का घोष है।
युग की पुकार
सौ वर्षों की यह यात्रा केवल स्मरण नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा भी है। आज चुनौतियाँ अनेक हैं—वैश्वीकरण की आँधी, उपभोक्तावाद की चकाचौंध, तकनीक का दबाव और नैतिक मूल्यों का क्षरण। परंतु संघ का इतिहास कहता है कि हर संकट अवसर बन सकता है। आपातकाल हो या विभाजन की त्रासदी, स्वयंसेवकों ने हर समय सेवा और साहस का परिचय दिया है।
वर्तमान संघ प्रमुख मोहन भागवत जी का संदेश युवाओं के लिए स्पष्ट है— आज का स्वयंसेवक तकनीक और विज्ञान में दक्ष हो, पर उसकी आत्मा भारतीय संस्कृति से जुड़ी रहे। यही संतुलन आधुनिक भारत की कुंजी है। गुरु गोलवलकर जी ने कहा था— युवक यदि राष्ट्र के साथ खड़ा हो जाए, तो भविष्य को कोई शक्ति रोक नहीं सकती। और यही भाव संघ गीतों में गूँजता है—
‘युग परिवर्तन की बेला में हम सब मिलकर साथ चलें,
देश धर्म की रक्षा के हित सहते सब आघात चलें’
जब यह गीत शाखा में उठता है, तो भारत का युवा यह अनुभव करता है कि राष्ट्रनिर्माण की नींव केवल शक्ति पर नहीं, बल्कि शक्ति के साथ-साथ चरित्र और सेवा पर भी टिकी होती है। यही संगम उसे साधारण से असाधारण बनाता है और उसके भीतर वह चेतना जगाता है जो युग की दिशा को आलोकित करती है। इस युग की पुकार यही है—अपनी ऊर्जा को केवल व्यक्तिगत सफलता तक सीमित मत करो, उसे मातृभूमि के पथ पर अर्पित करो। जब युवा आगे बढ़ता है, तो इतिहास की धारा बदलती है और समाज का वर्तमान व आने वाला कल दोनों ही दीप्तिमान हो उठते हैं। और अंत में वही भाव, जो हर ह्रदय में स्पंदित है—
“निर्माणों के पावन युग मे हम चरित्र निर्माण न भूले, स्वार्थ साधना की आंधी मे वसुधा का कल्याण न ना भूले”