अब तो हर रिश्ता भी
मतलब पर नज़र आता है,
रोते हुए इंसान पर
ताली बजाते हैं लोग।
हर कोई दुखी है यहाँ
किसी न किसी बात से,
कोई अपने ग़म से,
कोई दूसरे की खुशी से।
सहानुभूति के दो बोल भी
उम्रभर याद रहते हैं,
जैसे मरुस्थल को छू ले
पहली बूंद बारिश की।
कहते हैं दवा से ज़्यादा
दुआ असर करती है,
जो दिल से निकले
हर ज़ख्म भर देती है।
स्वार्थ के लिए अब
बोल भी मीठे हो जाते हैं,
हर मुस्कान के पीछे
कोई हिसाब छिपा होता है।
जो दिल से निकले
वही दुआ असर करती है,
वरना हर रिश्ते में अब
सौदे की गंध आती है।
मुनीष भाटिया