भीग गया मन फिर चला, तेरी यादों की ओर,
सावन ने फिर छेड़ दिया, वो भीगा सा शोर।
टपक रही हर साँझ में, कुछ अधूरी बात,
छत पर बैठी पाती पढ़े, भीगी-भीगी रात।
झूला झूले याद में, पीपल की वह छाँव,
तेरे संग सावन जिया, अब लगता बेजान।
बूँद-बूँद में नाम तेरा, भीगा पत्र पुराना,
तेरे बिना हर मौसम में, खालीपन का गाना।
चाय की प्याली अकेली, खिड़की की तन्हाई,
भीतर गूंजे सावन, बाहर बारिश आई।
भेज रहा हूँ हवा से, फिर इक संदेश,
“तेरा इंतज़ार अब भी है, सावन का ये वेश।”