सावन, शिव और प्रेम: भावनाओं की त्रिवेणी

सावन का महीना भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना में एक विशेष स्थान रखता है। यह वह समय है जब धरती हरी चादर ओढ़ लेती है, आकाश सावन की फुहारों से सज उठता है और हर ओर हरियाली और शीतलता का एक अनुपम संगम दिखाई देता है। इस मौसम में न केवल प्रकृति खिल उठती है, बल्कि भक्तों के हृदयों में भी भोलेनाथ के प्रति अद्वितीय प्रेम और भक्ति का ज्वार उमड़ पड़ता है। सावन, शिव और प्रेम — यह त्रयी एक ऐसी अद्भुत रचना है, जिसमें भक्ति, सौंदर्य और आत्मीयता की गूंज समाहित है।

सावन आते ही जैसे धरती पर प्रेम की बरसात होने लगती है। हर पत्ता, हर फूल भीगता है, झूमता है, और जैसे आकाश से गिरती हर बूँद प्रेम का संदेश लेकर आती है। इस मौसम में कचनार के फूल खिलते हैं, मोर नाचते हैं, और पवन में भी एक मीठी सी सुगंध घुल जाती है। यह वही समय है जब प्रेमी अपने प्रिय के मिलन की आस में भीगते हैं, और विरह में तपते हृदयों को शीतल फुहारें सांत्वना देती हैं।

सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। कहते हैं, यही वह मास है जब शिव शंकर अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं। काँवड़ यात्रा, जलाभिषेक, रुद्राभिषेक — हर क्रिया में प्रेम छिपा होता है, वह प्रेम जो भोले बाबा को समर्पित होता है। भगवान शिव का प्रेम अत्यंत सरल, निस्वार्थ और सहज है। वे न किसी आडंबर के इच्छुक हैं, न किसी भव्य पूजा के। वे तो मात्र सच्चे हृदय से निकली ‘ॐ नमः शिवाय’ की ध्वनि से ही प्रसन्न हो जाते हैं।

शिव और पार्वती की प्रेम कथा भी सावन के इस श्रृंगारित वातावरण में गूंजती है। पार्वती जी का तप, उनका समर्पण और उनका अविचल प्रेम, हर प्रेमी के लिए एक आदर्श बन जाता है। सावन में व्रत रखने वाली कन्याओं के मन में भी यही कामना होती है — उन्हें ऐसा वर मिले, जो शिव जैसा सरल, धैर्यवान और प्रेममय हो।

प्रेम, सावन का मुख्य रस है। यह प्रेम केवल दैहिक नहीं, आत्मिक होता है। शिव को समर्पित प्रेम, प्रकृति के प्रति प्रेम, और आत्मा के उस परम पुरुष से मिलने की तीव्र चाह — यही सावन की आत्मा है। इस मौसम में अक्सर प्रेमी-प्रेमिकाओं की आँखें भी बादलों की तरह भारी हो जाती हैं, कभी मिलन की उमंग में, तो कभी विरह की वेदना में।

लोकगीतों में, कविताओं में, सावन और प्रेम की अनगिनत कहानियाँ बसी हैं। झूले पर झूलती बालाएँ, मेंहदी रचाती कन्याएँ, बूँदों में भीगते नवविवाहित जोड़े — सावन प्रेम का वह उत्सव है जिसमें हृदय अपने सबसे कोमल रूप में खिलता है।

जब सावन की फुहार, शिव की भक्ति और प्रेम की गहराई एक साथ मिलती है, तब एक ऐसी अनुभूति जन्म लेती है, जो शरीर से परे, आत्मा के स्तर पर महसूस होती है। शिव का रूप स्वयं प्रेम का प्रतीक है — उनका गले में सर्प धारण करना, भस्म लगाना, साधारण दिखना — सब यह सिखाते हैं कि प्रेम दिखावे में नहीं, सच्चाई और त्याग में बसता है।

सावन हमें यही सिखाता है कि जीवन में प्रेम को महत्व दें — चाहे वह ईश्वर से हो, अपने प्रिय से हो, या स्वयं से। शिव हमें यह सिखाते हैं कि प्रेम में धैर्य, समर्पण और सच्चाई जरूरी है। और प्रेम तो वह पुल है, जो हमें ईश्वर से जोड़ता है, जो सावन की बूंदों की तरह हमारे अंतर्मन को शीतल करता है।

सावन, शिव और प्रेम — ये तीनों मिलकर जीवन का सार बनाते हैं। सावन प्रकृति की सुंदरता है, शिव जीवन का आधार हैं, और प्रेम हृदय की शक्ति है। यदि जीवन में इन तीनों का संतुलन आ जाए तो हर दिन सावन बन जाता है, हर मन शिवमय हो जाता है, और हर धड़कन प्रेम की पावन ध्वनि से गूंजने लगती है।

सावन में शिव को याद करते हुए प्रेम करना — यही जीवन की सच्ची साधना है।

:- मनीषा कुमारी ‘आर्जवाम्बिका

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