सावन बोल पड़ा

सावन बोल पड़ा —
“मैं वो साज़ हूँ, जो मन को छूता है।
मैं वो गीत हूँ, जो बिन बोले गूंजता है।
मैं भीगते बालकों की हँसी हूँ,
और चुपचाप रोते खेतों की तृप्ति भी।”

सावन फिर बोला —
“मुझमें पनपता है प्रेम,
और मिटती है दूरी।
मैं झोपड़ी का गीत हूँ,
और महलों की चुप्पी भी।”

सावन बोला —
“मेरे संग बहती हैं स्मृतियाँ,
और उगती हैं उम्मीदें।
मैं आज भी वही हूँ —
बस तुमने देखना छोड़ दिया है मुझे।”

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