शहादत-ए-हुसैन – ज़िन्दा इस्लाम को किया तूने

3
156

तनवीर जाफ़री

इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना अर्थात् मोहर्रम शुरु होते ही पूरे विश्व में करबला की वह दास्तां दोहाराई जाती है जो लगभग 1450 वर्ष पूर्व इराक़ के करबला नामक स्थान में पेश आई थी। यानी हज़रत मोहम्मद के नाती हज़रत इमाम हुसैन व उनके परिवार के सदस्यों का तत्कालीन मुस्लिम सीरियाई शासक की सेना के हाथों मैदान-ए-करबला में बेरहमी से कत्ल किये जाने की दास्तां। हालांकि इस घटना को 14 सदियां बीत चुकी हैं परंतु उसके बावजूद आज के दौर में जैसे-जैसे पूरे विश्व में इस्लाम रुसवा और बदनाम होता जा रहा है, जैसे-जैसे इस्लाम पर कट्टरपंथियों,आतंकवादियों,ग़ैरइस्लामी व ग़ैइंसानी हरकतें अंजाम देने वालों का शिकंजा कसता जा रहा है वैसे-वैसे बार-बार पूरी दुनिया के ग़ैर मुस्लिम समुदायों में खासतौर पर यह सवाल उठ रहा है कि वास्तव में इस्लामी शिक्षा है क्या?

क्या इस्लाम इसी प्रकार आत्मघाती हमलावर तैयार करने,मस्जिदों,दरगाहों,स्कूलों,जुलूसों,भीड़ भरे बाज़ार तथा अन्य सार्वजनिक स्थलों पर बेगुनाह लोगों की हत्याएं करने की शिक्षा देता है? यह सवाल भी उठता है कि हज़रत मोहम्मद उनके परिवार के सदस्यों व सहयोगियों ने क्या भविष्य में ऐसे ही इस्लाम की कल्पना की थी? आज दुनिया के मुसलमानों से प्रत्येक ग़ैर  मुस्लिम यह सवाल करता दिखाई देता है कि इस्लाम के नाम पर प्रतिदिन सैकड़ों लोगों की दुनिया में कहीं न कहीं हत्याएं करने वाले लोग यदि मुसलमान नहीं तो आख़िर वे किस विचारधारा का अनुसरण कर रहे हैं और यदि स्वयं को न केवल मुसलमान बल्कि ‘सच्चा मुसलमान’ कहने वाले यह लोग मुसलमान नहीं फिर आखिर यह लोग हैं कौन? सवाल यह भी है कि इस्लाम की वास्तविक शिक्षा हमें इस्लामी इतिहास की किन घटनाओं से और किन चरित्रों से लेनी चाहिए? इसमें कोई दो राय नहीं कि मोहर्रम का महीना तथा इसी माह में दसवीं मोहर्रम को करबला में घटी घटना इस्लामी इतिहास की एक ऐसी घटना है जोकि इस्लाम के दोनों पहलुओं को पेश करती है। हज़रत इमाम हुसैन व उनका परिवार उस इस्लामी पक्ष का दर्पण है जिसे वास्तविक इस्लाम कहा जा सकता है। यानी त्याग,बलिदान,उदारवाद,सहनशीलता,समानता,भाईचारा, ज़ुल्म और असत्य के आगे सर न झुकाने व सर्वशक्तिमान ईश्वर के अतिरिक्त संसार में किसी को सर्वशक्तिमान न समझने जैसी शिक्षाओं को पेश करता है। वहीं दूसरी ओर उसी दौर का सीरिया का शासक यज़ीद है जोकि इस्लाम का वह क्रूर व ज़ालिम चेहरा है जिसका अनुसरण करने वाले तथाकथित मुसलमान आज भी पूरे संसार में ज़ुल्म,अत्याचार तथा बेगुनाह व मासूम लोगों की हत्याएं करते आ रहे हैं। यज़ीद की सेना ने भी हज़रत इमाम हुसैन के सहयोगी व हज़रत मोहम्मद के 80 वर्षीय मित्र हबीब इब्रे मज़ाहिर से लेकर इमाम हुसैन के 6 महीने के दूध पीते बच्चे अली असगर तक को कत्ल करने में कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं की थी। मुसलमान पिता की संतान होने के बावजूद ज़ालिम यज़ीद ने इस बात की भी परवाह नहीं की कि करबला में जिन लोगों को कत्ल करने की उस ज़ालिम ने ठानी है वह इस्लाम धर्म के पैगंबर हज़रत मोहम्मद का ही परिवार है। और स्वयं यज़ीद भी हज़रत मोहम्मद के नाम का कलमा पढ़ता है। परंतु ज़ालिम यज़ीद ने इन बातों का लिहाज़ किए बिना तीन दिन के भूखे और प्यासे हज़रत इमाम हुसैन व उनके परिवार के पुरुष सदस्यों को बड़ी ही निर्दयता से करबला के तपते हुए रेतीले मैदान में कत्ल कर दिया। और परिवार की महिला सदस्यों को रस्सियों से बांधकर मुख्य मार्गों से पैदल अपने सीरियाई दरबार तक ले गया। इतिहास इस बात का साक्षी है कि किसी भी धर्म या संप्रदाय से जुड़ी किसी भी अत्याचार संबंधी घटना में ज़ुल्म व अत्याचार की वह इंतेहा नहीं देखी गई जोकि करबला के मैदान में देखी गई थी। इतिहासकारों के अनुसार हज़रत हुसैन के 72 साथियों का क़त्ल  करने के लिए यज़ीद ने अपनी लाखों सिपाहियों की सेना करबला में फुरात नदी के किनारे तैनात कर दी थी। करबला की घटना क्यों घटी और किस प्रकार करबला की घटना से हम वास्तविक इस्लाम और अपहृत किए गए इस्लाम के दोनों चेहरों को बखूबी समझ सकते हैं, आईए संक्षेप में यह समझने की कोशिश करते हैं। हज़रत इमाम हुसैन जहां अपने समय में हज़रत मोहम्मद द्वारा निर्देशित इस्लामी सिद्धांतों का पालन करते हुए मानवतावादी इस्लाम को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे थे वहीं यज़ीद इत्तेफ़ाक़ से सीरियाई शासक मुआविया के घर में पैदा होने वाला एक ऐसा दुष्ट शहज़ादा था जो व्यक्तिगत् तौर पर प्रत्येक इस्लामी शिक्षाओं का उल्लंघन करता था। उसमें शासक बनने के कोई गुण नहीं थे। वह निहायत क्रूर,दुष्ट, चरित्रहीन, बदचलन तथा अहंकारी प्रवृति का राक्षसरूपी मानव था। अपने पिता की मृत्यु के बाद वह सीरिया की गद्दी पर बैठा तो उसने हज़रत मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन से बैअत तलब की यानी यज़ीद ने हज़रत मोहम्मद के परिवार से इस्लामी शासक के रूप में मान्यता प्राप्त करने का प्रमाण पत्र हासिल करना चाहा। इमाम हुसैन ने यज़ीद की गैर इस्लामी आदतों के चलते उसको इस्लामी राज्य का राजा स्वीकार करने से इंकार कर दिया। इमाम हुसैन ने साफ़तौर पर यह बात कही कि यज़ीद जैसे बदकिरदार व्यक्ति को किसी इस्लामी राज्य का बादशाह स्वीकार नहीं किया जा सकता। हज़रत हुसैन यह बात भली-भांति जानते थे कि यदि उन्होंने यज़ीद के शासन को इस्लामी मान्यता दे दी और उसके हाथों पर बैअत कर उसे इस्लामी राज्य का शासक स्वीकार कर लिया तो भविष्य में इतिहास यज़ीद का चरित्र-चित्रण करते हुए यह ज़रूर लिखेगा कि यज़ीद सीरिया (शाम)का वह राजा था जिसे हज़रत मोहम्मद के नवासे और हज़रत अली व फ़ातिमा के बेटे हज़रत हुसैन की ओर से मान्यता प्राप्त थी। और हज़रत इमाम हुसैन इन्हीं काले शब्दों का उल्लेख इस्लाम संबंधी इतिहास में नहीं होने देना चाहते थे। वे नहीं चाहते थे कि यज़ीद को इस्लामी मान्यता प्राप्त राजा स्वीकार कर इस्लाम धर्म को बदनाम व कलंकित होने दिया जाए। वे इस्लाम की साफ़ -सुथरी, चरित्रपूर्ण व उदार छवि दुनिया में पेश करना चाहते थे। वे हज़रत मोहम्मद, फ़ातिमा तथा हज़रत अली द्वारा बताए गए इस्लामी सिद्धांतों का अनुसरण करते थे तथा स्वयं इन्हीं से प्राप्त इस्लामी शिक्षाओं के पैरोकार थे। दूसरी ओर ज़ालिम यज़ीद सत्ता और ताक़त के नशे में चूर शराबी,जुआरी,व्याभिचारी तथा अय्याश प्रवृति का वह शासक था जो अपनी सत्ता शक्ति के नशे में इस कद्र चूर था कि उसे दो ही बातें स्वीकार थीं। या तो हज़रत हुसैन उसके हाथों पर बैअत कर उसे सीरिया के इस्लामी शासक के रूप में मान्यता दें अन्यथा उसके हाथों शहीद होने के लिए तैयार हो जाएं। हज़रत इमाम हुसैन ने यज़ीद का बैअत संबंधी पहला संदेश आने के बाद कई स्तर पर वार्ताओं का दौर चलाकर उसे हर प्रकार से यह समझाने की कोशिश की कि वह इस्लामी राज्य का शासक बनने की अपनी जि़द छोड़ दे क्योंकि उसमें ऐसी योग्यता हरगिज़ नहीं है। परंतु यज़ीद ने हज़रत इमाम हुसैन की एक भी बात नहीं सुनी। और वह अपनी एक ही जि़द पर अड़ा रहा कि या तो हुसैन मेरे हाथों पर बैअत करें या फिर सपरिवार कत्ल होने के लिए तैयार हो जाएं। हिंसा को रोकने के लिए हज़रत इमाम हुसैन ने यज़ीद के समक्ष एक अंतिम प्रस्ताव यह भी रखा था कि वह अपने परिजनों के साथ मदीना छोडक़र हिंदुस्तान चले जाना चाहते हैं। परंतु यज़ीद जैसे दुष्चरित्र व्यक्ति को इस्लामी बादशाह के रूप में मान्यता देकर ख़ुद जीवित रहना उन्हें क़तई मंज़ूर नहीं था। यज़ीद ने हुसैन का यह प्रस्ताव भी स्वीकार नहीं किया। उसकी बार-बार एक ही रट थी या तो इस्लामी स्वीकृति या फिर हुसैन की शहादत। और आख़िरकार हुसैन ने असत्य के समक्ष घुटने न टेकते हुए अपनी व अपने पूरे परिवार की क़ुर्बानी देने का फ़ैसला किया। हज़रत इमाम हुसैन अपना पुश्तैनी घर मदीना छोडक़र इराक़ के करबला शहर में फुरात नदी के किनारे पहुंच गए। और दस मोहर्रम के दिन वे स्वयं, उनके भाई-बेटे, भतीजे, कई मित्र व सहयोगी यहां तक कि मात्र एक दिन पूर्व ही यज़ीद की सेना को छोडक़र हज़रत हुसैन की शरण में आया यज़ीद का ही सेनापति हुर व उसका पुत्र व गुलाम सभी शहीद कर दिए गए। परंतु दस मोहर्रम को दिन भर चलने वाले शहादत के सिलसिले के बावजूद तथा यजी़द की सेना द्वारा ज़ुल्म पर ज़ुल्म ढाने के बाद भी हज़रत इमाम हुसैन ने इस्लामी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। इतिहास इस बात का गवाह है कि मुस्लिम समुदाय में आज भी कोई शख्स अपने बच्चों का नाम यज़ीद नहीं रखता। इतिहास आज भी करबला की घटना को मोहर्रम का महीना आने पर बार-बार दोहराता है जो इस्लाम के दोनों पहलुओं पर रोशनी डालता है। हिंदुस्तान के मशहूर शायर कुंवर महेंद्र सिंह बेदी ‘सहर’ के शब्दों में –

जि़ंदा इस्लाम को किया तूने।

हक़क़ो -बातिल दिखा दिया तूने।।

जी के मरना तो सबको आता है।hussain

मर के जीना सिखा दिया तूने।।  

3 COMMENTS

  1. इस्लाम की सच्चाई और हकीकत इस लेख में बाखूबी बताई गई है… ये जरूरी है कि इस लेख को हर हिंदू और मुसलमान पढ़े…. तभी शायद जो गलीज धब्बे इस्लाम पर आतंकवाद के नाम पर लगाये जा रहे हैं उनसे आम मुसलमानों को शर्मिंदगी
    नहीं होगी….. और ये बिल्कुल सच है कि आज का इस्लाम सल्लाहो अलैह वसल्लम आँ हजरत मोहम्मद साहब के इस्लाम से पूरी तरह ज़ुदा है।

  2. तनवीर जाफरी जी को असल इस्लाम को सामने लाने के लिए साधुवाद. यह वही सन्देश है जिसको मैंने इस्लाम: ,चैलेन्ज टू रेलिजन में पढ़ा था. यह वहीं शिक्षा है,जो एक पाक इंसान के लिए जरूरी है. धर्म या मजहब का सार यही है. अगर हर धर्म,मजहब या रेलिजन अपने इस स्वरूप को उजागर करे ,उसके मानने वाले अपनी जिंदगी में त्याग और बलिदान को सर्वोपरि रखें ,तो कोई कारण नहीं कि धर्म या मजहब के नाम खून खराबा हो.

  3. आपका लेख बहुत लम्बा है . अच्छा लगा लेकिन संक्षिप्त लिखा करें .

    सुरेश माहेश्वरी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress