जानिये शारदीय नवरात्री 2016 हेतु घट स्थापना मुहूर्त—-

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वर्ष 2016 में शारदीय नवरात्रों का आरंभ 1 अक्टूबर,2016 (शनिवार)आश्चिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होगा. दुर्गा पूजा का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है अत: यह नवरात्र घट स्थापना प्रतिपदा तिथि को 1 अक्टूबर,2016 (शनिवार) के दिन की जाएगी|

इस दिन सूर्योदय से प्रतिपदा तिथि, हस्त नक्षत्र, ब्रह्म योग होगा, सूर्य और चन्द्रमा कन्या राशि में होंगे|
आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत हो कर संकल्प किया जाता है | व्रत का संकल्प लेने के बाद, मिट्टी की वेदी बनाकर ‘जौ बौया’ जाता है। इसी वेदी पर घट स्थापित किया जाता है। घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है। इस दिन “दुर्गा सप्तशती” का पाठ किया जाता है। पाठ पूजन के समय दीप अखंड जलता रहना चाहिए।
नवरात्रि में माता दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। हर तिथि का एक विशेष महत्व होता है और माता के एक विशेष रूप की पूजा की जाती है। यह समय सिद्धि प्राप्ति के लिए भी उचित माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इन दिनों में माता के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी हो सकती है। इस पर्व के दौरान प्रमुख माता मंदिरों की रौनक देखते ही बनती है।
यहां श्रृद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। रंग-बिरंगी रोशनी और माता के भजनों में वातावरण और भी भक्तिमय हो जाता है। नगर के प्रमुख स्थानों पर माता की मूर्ति स्थापित की जाती है। माता को प्रसन्न करने के लिए सभी अपने-अपने तरीके से प्रयास करते हैं। कोई नौ दिन का उपवास रखता है, तो कोई चप्पल नहीं पहनता। साथ ही अनेक स्थानों पर गरबों का आयोजन भी किया जाता है।माता की भक्ति में ये दिन कब गुजर जाते हैं पता ही नहीं चलता। दसवें दिन माता की मूर्ति को नदी में प्रवाहित किया जाता है और यह प्रार्थना की जाती है कि माता सबके जीवन के दु:खों का अंत करें और सुख-शांति लाएं। यदि देखा जाए तो यह पर्व मन, वाणी व व्यसनों पर काबू करने की सीख देता है।

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जानिए शारदीय नवरात्री 2016 के लिए घट स्थापना मुहूर्त —
नवरात्री की पहली तिथि पर सभी भक्त अपने घर के मंदिर में कलश स्थापना करते हैं। इस कलश स्थापना की भी अपनी एक विधि, एक मुहूर्त होता है। कलश स्थापना को घट स्थापना भी कहा जाता है। घट स्थापना का मुहूर्त प्रतिपदा तिथि (1 अक्टूबर 2016 ) को प्रात: 06:17 बजे से 07:29 बजे तक है। इस समय के बीच ही घट स्थापना हो सकेगी।
इस बार 1 अक्टूबर 2016 को प्रतिपदा के दिन न हीं चित्रा नक्षत्र है तथा न हीं वैधृति योग है परन्तु शास्त्र यह भी कहता है की यदि प्रतिपदा के दिन ऐसी स्थिति बन रही हो तो उसका परवाह न करते हुए अभिजीत मुहूर्त में घट स्थापना तथा नवरात्र पूजन कर लेना चाहिए।
निर्णयसिन्धु के अनुसार —
सम्पूर्णप्रतिपद्येव चित्रायुक्तायदा भवेत।

वैधृत्यावापियुक्तास्यात्तदामध्यदिनेरावौ।।

अभिजितमुहुर्त्त यत्तत्र स्थापनमिष्यते।
अर्थात अभिजीत मुहूर्त में ही कलश स्थापना करना चाहिए। भारतीय ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार नवरात्रि पूजन द्विस्वभाव लग्न में करना श्रेष्ठ होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मिथुन, कन्या,धनु तथा कुम्भ राशि द्विस्वभाव राशि है। अतः हमें इसी लग्न में पूजा प्रारम्भ करनी चाहिए। 1 अक्टूबर 2016 (शनिवार) प्रतिपदा के दिन हस्त नक्षत्र और ब्रह्म योग होने के कारण सूर्योदय के बाद तथा अभिजीत मुहूर्त में घट/कलश स्थापना करना चाहिए।
नौ दिनों तक चलने नवरात्र पर्व में माँ दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है. आश्विन माह में आने वाले इन नवरात्रों को ‘शारदीय नवरात्र’ कहा जाता है. नवरात्र के इन प्रमुख नौ दिनों में लोग नियमित रूप से पूजा पाठ और व्रत का पालन करते हैं. दुर्गा पूजा के नौ दिन तक देवी दुर्गा का पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ इत्यादि धार्मिक किर्या कलाप संपन्न किए जाते हैं|

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जानिए 2016 में नवरात्र तिथि—

पहला नवरात्र, प्रथमा तिथि, 1 अक्टूबर 2016, दिन शनिवार

दूसरा नवरात्र, द्वितीया तिथि, 3 अक्टूबर 2016, दिन सोमवार.

तीसरा नवरात्र, तृतीया तिथि, 4 अक्टूबर 2016, दिन मंगलवार.

चौथा नवरात्र, चतुर्थी तिथि, 5 अक्टूबर 2016, बुधवार.

पांचवां नवरात्र , पंचमी तिथि , 6 अक्टूबर 2016, बृहस्पतिवार.

छठा नवरात्र, षष्ठी तिथि, 7 अक्टूबर 2016, शुक्रवार.

सातवां नवरात्र, सप्तमी तिथि, 8 अक्तूबर 2016, शनिवार

आठवां नवरात्र, अष्टमी तिथि, 9 अक्तूबर 2016, रविवार,

नौवां नवरात्र, नवमी तिथि, 10 अक्तूबर 2016, सोमवार

दशहरा, दशमी तिथि, 11 अक्तूबर 2016, मंगलवार .

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जानिए पूजन प्रारंभ की प्रक्रिया—

हिन्दू शास्त्रों में किसी भी पूजन से पूर्व, भगवान गणेशजी की आराधना का प्रावधान बताया गया है। माता जी की पूजा में कलश से संबन्धित एक मान्यता है के अनुसार कलश को भगवान श्री गणेश का प्रतिरुप माना गया है। इसलिये सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है। कलश स्थापना करने से पहले पूजा स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाना चाहिए। पूजा में सभी देवताओं आमंत्रित किया जाता है। कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, मुद्रा रखी जाती है। और पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बौये जाते है। जिन्हें दशमी की तिथि पर काटा जाता है। माता दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल के मध्य में स्थापित की जाती है।
कलश स्थापना के बाद, गणेश भगवान और माता दुर्गा जी की आरती से, नौ दिनों का व्रत प्रारंभ किया जाता है। कई व्यक्ति पूरे नौ दिन तो यह व्रत नहीं रख पाते हैं किन्तु प्रारंभ में ही यह संकल्प लिया जाता है कि व्रत सभी नौ दिन रखने हैं अथवा नौ में से कुछ ही दिन व्रत रखना है।

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जानिए की कैसे करें घट स्थापना—-
पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। फिर उनके ऊपर अपनी इच्छा अनुसार सोने, तांबे अथवा मिट्टी के कलश की स्थापना करें। कलश के ऊपर सोना, चांदी, तांबा, मिट्टी, पत्थर या चित्रमयी मूर्ति रखें। मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी, कागज या सिंदूर आदि से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति आने की संभावना हो तो उसके ऊपर शीशा लगा दें।

मूर्ति न हो तो कलश पर स्वस्तिक बनाकर दुर्गाजी का चित्र पुस्तक तथा शालिग्राम को विराजित कर भगवान विष्णु का पूजन करें। नवरात्रि व्रत के आरंभ में स्वस्तिक वाचन-शांतिपाठ करके संकल्प करें और सबसे पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें। फिर मुख्य मूर्ति का पूजन करें। दुर्गादेवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेयपुराणान्तर्गत निहित श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ नौ दिनों तक प्रतिदिन करना चाहिए।

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यह होनी चाहिए पूजन सामग्री—
माँ दुर्गा की सुन्दर प्रतिमा, माता की प्रतिमा स्थापना के लिए चौकी, लाल वस्त्र , कलश/ घाट , नारियल का फल, पांच पल्लव आम का, फूल, अक्षत, मौली, रोली, पूजा के लिए थाली , धुप और अगरबती, गंगा का जल, कुमकुम, गुलाल पान, सुपारी, चौकी,दीप, नैवेद्य,कच्चा धागा, दुर्गा सप्तसती का किताब ,चुनरी, पैसा, माता दुर्गा की विशेष कृपा हेतु संकल्प तथा षोडशोपचार पूजन करने के बाद, प्रथम प्रतिपदा तिथि को, नैवेद्य के रूप में गाय का घी माता को अर्पित करना चाहिए तथा पुनः वह घी किसी ब्राह्मण को दे देना चाहिए।
नवरात्री 2016 में पूजा का फल कैसे मिलेगा—
वैसे तो गीता में कहा गया है- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन अर्थात आपको केवल कर्म करते रहना चाहिए फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। फिर भी प्रयोजनम् अनुदिश्य मन्दो अपि न प्रवर्तते सिद्धांतानुसार विना कारण मुर्ख भी कोई कार्य नहीं करता है तो भक्त कारण शून्य कैसे हो सकता है।

माता सर्व्यापिनी तथा सब कुछ जानने वाली है एतदर्थ मान्यता है कि माता शैलपुत्री की भक्तिपूर्वक पूजा करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाये पूर्ण होती है तथा भक्त कभी रोगी नहीं होता अर्थात निरोगी हो जाता है।

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