राजनीति

एसआईआर ने घुसपैठियों में भगदड़ मचा दी है 

राजेश कुमार पासी

आजकल सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया में बंगाल छोड़ने वाले बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं  की खबरें छाई हुई है। बिहार में जब एसआईआर हुआ था तो इस तरह की खबरें नहीं आईं थी जबकि बिहार में भी घुसपैठियों की संख्या कम नहीं है। सवाल यह है कि बंगाल में एसआईआर के कारण घुसपैठियों में ऐसी भगदड़ क्यों मच गई है। बंगाल-बांग्लादेश की सीमा पर बांग्लादेशिओं की भीड़ अपने देश जाने की कोशिश कर रही है। इसमें ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनके पास आधार कार्ड और वोटर कार्ड भी है, लेकिन वो अब भारत में रहना नहीं चाहते हैं। वास्तव में वो डरे हुए हैं कि अगर वो पकड़े गए तो उन्हें डिटेंशन सेंटर या जेल भेजा जा सकता है ।

मीडिया रिपोर्ट्स बता रही हैं कि कई लोग कई दशकों से भारत में बिना किसी डर के रह रहे थे लेकिन एसआईआर के कारण वो इतना डर गए हैं कि वापस अपने देश लौट जाना चाहते हैं। जो लोग यह कहते हैं कि जितना घुसपैठियों का शोर मचाया जाता है, उतने लोग भारत में नहीं हैं, भागते हुए घुसपैठियों को देखकर उनकी आंखें खुल जानी चाहिए। कई ऐसी बस्तियां देखने में आ रही हैं जिसमें हजारों लोग रहते हैं लेकिन मतदाताओं की संख्या बहुत कम है । कई बस्तियों को खाली करके लोग गायब हो गए हैं। इससे पता चल रहा है कि क्यों विपक्ष एसआईआर का विरोध कर रहा है। देखा जाए तो एसआईआर कोई नई चीज नहीं है बल्कि ये तो चुनाव आयोग का संवैधानिक अधिकार है जिसका इस्तेमाल वो 11 बार पहले कर चुका है। अजीब बात है कि देश में जो काम 11 बार हो चुका है, उसका विरोध ऐसे किया जा रहा है, जैसे चुनाव आयोग कोई नया काम शुरू कर रहा है।

 पिछली बार एसआईआर वाजपेयी सरकार के कार्यकाल के दौरान 2003 में की गई थी लेकिन तब किसी ने विरोध नहीं किया था। एक तरह से इस काम को आज से दस साल पहले ही हो जाना चाहिए था लेकिन चुनाव आयोग ने इस काम को नहीं किया। इसके कारण लाखों लोगों का नाम मतदाता सूची से हटाया जा रहा है। बिहार में लगभग 44 लाख मृतकों के नाम मतदाता सूची से हटाए गए हैं और अनुमान है कि बंगाल की मतदाता सूची में भी लगभग 34 लाख मृतकों के नाम दर्ज हैं । सच यह है कि ये लोग चुनावों में वोट भी डालने आते थे। ये समझना बहुत मुश्किल नहीं है कि मरे हुए लोग एक दिन के लिए कैसे जिंदा हो जाते थे। ऐसे लोगों का वोट डालना लोकतंत्र और चुनाव का मजाक है। 

                ममता बनर्जी एसआईआर का विरोध कर रही हैं और उनके साथ-साथ कांग्रेस भी इसका विरोध कर रही है। कांग्रेस तो पूरे देश में एसआईआर का विरोध कर रही है और अब उसने इसके लिए पूरी मुहिम छेड़ दी है। राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके मतदाता सूची में गड़बड़ी को वोट चोरी और चुनाव चोरी बता दिया है, लेकिन मतदाता सूची में सुधार करने के काम का वो विरोध कर रहे हैं। कितनी अजीब बात है कि राहुल गांधी मतदाता सूची में गड़बड़ी को भाजपा के लिए फायदेमंद मानते हैं, लेकिन उस गड़बड़ी को ठीक करने के काम को वोट चोरी बताते हैं। कांग्रेस के पास इसका कोई जवाब नहीं है कि मरे हुए लोगों का नाम मतदाता सूची से हटाना गलत कैसे है । बिहार में 65 लाख लोगों का नाम मतदाता सूची से हटाया गया है, जिसमें से 44 लाख लोग इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं। पूरा विपक्ष और उसके समर्थक इन लोगों का नाम कटने से परेशान हैं। इसका सीधा सा मतलब यही निकलता है कि इन गड़बड़ियों का फायदा विपक्ष को मिल रहा था, इसलिए वो नहीं चाहता है कि मृतकों और बिहार छोड़ चुके लोगों का नाम मतदाता सूची से हटाया जाए।

देखा जाए तो बिहार के करोड़ों लोग दूसरे राज्यों में काम कर रहे हैं. वो कभी-कभी ही बिहार जाते हैं लेकिन उनके नाम मतदाता सूची में दर्ज हैं । एसआईआर के दौरान भी सिर्फ उन लोगों के नाम कटे हैं जिन्होंने स्थायी रूप से बिहार छोड़ दिया है। इसका सबूत यह है कि बिहार चुनाव में लाखों लोग दूसरे राज्यों से मतदान करने बिहार में आये थे, जो मतदान करके वापस चले गए। यही कारण है कि चुनाव आयोग ने जिन लोगों का नाम गलती से कट गया है, उनसे अपना नाम जुड़वाने के लिए आवेदन करने को कहा था। 65 लाख लोगों का नाम मतदाता सूची से हटने का शोर मचाया जा रहा है लेकिन 65 लोग भी सामने नहीं आये, जो यह कह सके कि उनका नाम मतदाता सूची से गलत हटाया गया है। जो काम बिहार में हो चुका है, अब वही काम दूसरे 12 राज्यों में चल रहा है। इस कार्यवाही को रूकवाने के लिए विपक्ष की कई राज्य सरकार अदालत चली गई हैं। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर लंबी सुनवाई कर चुका है लेकिन फिर इस मामले की सुनवाई शुरू होने वाली है। 

                ममता बनर्जी ने एसआईआर को एनआरसी बता दिया है और सड़क पर उतरकर इसका विरोध शुरू कर दिया है। वो इस प्रक्रिया को रोकने के लिए हर सम्भव कोशिश कर रही हैं। उनकी ऐसी कोशिशों और एसआईआर को एनआरसी बताने से बंगलादेशियों और रोहिंग्याओं  में डर पैदा हो गया है। ममता बनर्जी ने एसआईआर के विरोध में जो अभियान चलाया है, उसका उल्टा असर हो गया है। वो नहीं चाहती कि ये लोग बंगाल छोड़कर जाएं, लेकिन उनके ही बयानों ने घुसपैठियों में भय पैदा कर दिया है । एनआरसी का क्या मतलब है, यह बात घुसपैठिए अच्छी तरह जानते हैं क्योंकि असम में एनआरसी का काम सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रहा है। उन्हें लग रहा है कि अगर वो अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए तो उन्हें जेल जाना पड़ सकता है। घुसपैठियों में मची भगदड़ ने भाजपा के हाथ में यह हथियार थमा दिया है कि एसआईआर के कारण घुसपैठियों को देश छोड़ना पड़ रहा है। भाजपा को यह साबित करने का मौका मिल गया है कि विपक्षी दल इन घुसपैठियों को बचाने के लिए ही एसआईआर का विरोध कर रहे हैं। देखा जाए तो भाजपा का आरोप गलत नहीं है, क्योंकि मतदाता सूची में गड़बड़ी को सुधारने के काम के विरोध की दूसरी वजह क्या हो सकती है।

घुसपैठियों की समस्या सिर्फ बंगाल और बिहार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह तो पूरे देश की समस्या बन चुकी है। बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए पूरे देश में फैले हुए हैं, जो विपक्ष का बड़ा वोट बैंक बन चुके हैं। यह तो हमारे देश की वर्तमान राजनीति का बड़ा सच है कि मुस्लिम समाज एकजुट होकर भाजपा के विरोध में मतदान करता है। ये घुसपैठिये भी मुस्लिम हैं, इसलिए इनका वोट विपक्षी दलों के खाते में जाता है। भाजपा इस सच्चाई को जानती है, इसलिए वो एसआईआर का समर्थन कर रही है। बंगाल से आ रही खबरें बता रही है कि विपक्ष का वोट बैंक खतरे में है । सवाल यह है कि घुसपैठियों की ये भगदड़ क्या बंगाल तक सीमित रहेगी या फिर दूसरे राज्यों में भी फैलेगी । देखा जाए तो ये भगदड़ बंगाल तक सीमित रह ही नहीं सकती, इसलिए केरल और तमिलनाडु में भी एसआईआर का विरोध शुरू हो गया है। यही कारण है कि इस प्रक्रिया को रुकवाने के लिए ये राज्य अदालत का दरवाजा खटखटा रहे हैं। ममता बनर्जी ने तो इसे रोकने के लिए चुनाव आयोग को चिट्ठी भी लिखी है। उन्होंने इस प्रक्रिया को तत्काल रोकने को कहा है। 

               विपक्षी दलों का कहना है कि इस प्रक्रिया के काम में लगे बीएलओ मानसिक तनाव और काम के बोझ के कारण परेशान हैं और कुछ लोगों ने आत्महत्या भी कर ली है। वो इस काम को ज्यादा समय देने की मांग कर रहे हैं। देखा जाए तो एसआईआर का मोदी सरकार से कोई लेना देना नहीं है बल्कि यह तो पूरी तरह से चुनाव आयोग का काम है । विपक्षी दल इस काम को लेकर भाजपा का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इस कार्यवाही की आड़ में भाजपा उनके समर्थकों का नाम मतदाता सूची से हटा सकती है। सवाल यह है कि भाजपा और चुनाव आयोग को कैसे पता चलेगा कि कौन विपक्ष का समर्थक है और कौन भाजपा का समर्थक है । इस आरोप का तब कोई मतलब नहीं रह जाता, जब सुप्रीम कोर्ट कहता है कि जिन लोगों का नाम गलत तरीके से मतदाता सूची से हटाया जाता है, वो उसको शिकायत कर सकते हैं। वास्तव में विपक्ष की सारी कवायद घुसपैठियों को बचाने की है। दूसरी तरफ घुसपैठियों को भी पता चल गया है कि विपक्षी दल अब उन्हें बचा नहीं सकते । इसके कारण घुसपैठियों में भगदड़ मच गई है।

 घुसपैठियों में मची भगदड़ पूरा देश देख रहा है, इसके कारण विपक्ष का एजेंडा सबको समझ आ रहा है। देश देख रहा है कि घुसपैठियों को बचाने के लिए विपक्षी दल किस हद तक जाने को तैयार हैं ।  विपक्षी दलों के आश्वासन के बाद भी घुसपैठियों की भगदड़ रुक नहीं रही है। दूसरी तरफ विपक्षी दलों के लिए घुसपैठिए अब किसी काम के नहीं रहने वाले हैं क्योंकि उनका नाम अब मतदाता सूची से हटने वाला है। जब ये घुसपैठिए वोट डालने के काबिल नहीं रह जाएंगे तो विपक्षी दल इनका क्या करेंगे। एसआईआर अपना काम अच्छी तरह से कर रहा है क्योंकि घुसपैठियों में ऐसी भगदड़ आज से पहले कभी देखी नहीं गयी है। 

राजेश कुमार पासी